[ad_1]
नेताओं ने साझा किया स्मरण
जननायक कर्पूरी ठाकुर को लेकर बिहार राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य रहे निहोरा प्रसाद यादव ने ‘साक्ष्य’ में एक बेहतरीन स्मरण साझा किया है। निहोरा प्रसाद यादव ने लिखा है कि मुख्यमंत्री रहते कर्पूरी ठाकुर हर दिन पटना में जरूर मौजूद रहते थे। वे साढ़े सात बजे तैयार होकर अपने सरकारी आवास पर बैठ जाते। वहां एक बड़ा सा टेबल, जो कहीं-कहीं से टूटा हुआ रहता, उसी के पास लगे बेंच पर बैठते। इस दौरान बिहार भर से गरीबों का हुजूम पहुंचता। आने वाले लोगों के तन पर साफ कपड़े नहीं होते। कईयों के पैर में चप्पल नहीं होता। वे अपनी पीड़ा सुनाते। कर्पूरी ठाकुर उनकी समस्या को सुनते।
‘लोगों की सुनते थे’
निहोरा प्रसाद यादव ने अपने स्मरण में बताया है कि उस दौरान मुख्यमंत्री के तौर पर लोगों की समस्या को लेकर अधिकारियों को तत्काल फोन करते। समस्या के निवारण का निर्देश देते। उसके साथ ही कई अधिकारियों को पत्र भी लिखते। इतना ही नहीं दूर से आने वाले लोगों से एक निवेदन भी करते। जननायक उनसे कहते कि-इतना पैसा लगाकर आने की जरूरत क्या थी? मैं खुद आपके इलाके में आने वाला था। कर्पूरी ठाकुर गरीबों को नम्र भाव से ये बात समझाते। निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं कि एक रात जब उनसे मिलकर चलने लगा। उन्होंने कहा कि छह बजे आ जाइएगा। सुबह कहीं चलना है। उन्होंने स्मरण साझा करते हुए लिखा है कि वे अक्सर मुझे अपने साथ लेकर जाया करते थे।
पत्रकारों से मिलने जाना था
निहोरा प्रसाद यादव अगले दिन ठीक छह बजे तैयार होकर जननायक के आवास पर पहुंच जाते हैं। उसके बाद अपनी बाइक बंद कर जैसे ही खड़े होने का प्रयास करते हैं। कर्पूरी ठाकुर उन्हें आवाज देते हैं। निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं कि मुख्यमंत्री उनसे कहते हैं कि- चलिए। उसके बाद वे अचरज भरी निगाह से दबी आवाज में जननायक कर्पूरी ठाकुर से प्रश्न करते हैं कि गाड़ी तो अभी आपकी आई नहीं। उसके बाद मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर कहते हैं कि आपकी मोटरसाइकिल से ही चलेंगे। निहोरा प्रसाद यादव अपने स्मरण में लिखते हैं कि इतना सुनने के बाद मेरा खून सुख गया। थोड़ी देर तक मैं शून्यता की स्थिति में चला गया। फिर उन्होंने आवाज दी। कहा- स्टार्ट करिए।
‘उनका पैर कट गया’
निहोरा प्रसाद यादव आगे कहते हैं कि बड़ी हिम्मत और साहस के साथ अपने आपको नियंत्रित करते हुए मैंने मोटरसाइकिल स्टार्ट की। बैठने के क्रम में पीछे लगे कैरियर से कर्पूरी ठाकुर के पैर छिल गये। मैंने अफसोस और दुख प्रकट किया। उन्होंने कहा कि मेरा कद छोटा है। इसलिए ऐसा हुआ। चलिए कोई बात नहीं। बैठने के बाद दोनों हाथ मेरे कंधो पर उन्होंने रख दिया और कहा कि बेली रोड चलिए। निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं कि मैं उस समय अजीबो-गरीब स्थिति में था। जब सड़क से गुजरने वाले, पैदल हों या गाड़ी से या साइकिल से सभी लोग जननायक कर्पूरी ठाकुर को मोटरसाइकिल से देख रहे थे। सभी के चेहरे पर अविश्वास था।
‘बाइक पर सवार होकर चल दिए’
लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने बड़े राजनेता और बिहार के मुख्यमंत्री मोटरसाइकिल से सफर कर रहे हैं। यह नहीं हो सकता। आपस में तर्क वितर्क सही गलत होने लगा। कईयों ने उंगली से इशारा कर बताना चाहा कि देखें कर्पूरी ठाकुर जी मोटरसाइकिल से जा रहे हैं। कईयों ने सिर झुकाकर अभिवादन किया। कईयों ने हाथ उठाकर प्रणाम किया। उसके बाद कर्पूरी ठाकुर ने निहोरा प्रसाद यादव को बताया कि कई दिनों से विदेश के कुछ पत्रकार मुझसे मिलने आए हैं। समय नहीं रहने के कारण उन्हें प्रेसिडेंट होटल में ठहरने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैंने पत्रकारों से वादा किया था कि सुबह छह बजे मैं स्वयं होटल में ही आकर बात करूंगा।
गरीबों के मसीहा
निहोरा प्रसाद यादव ने उस पल को याद करते हुए कहा है कि जैसे ही होटल के पास बाइक रुकी। होटल स्टॉफ और कर्मचारी दौड़ कर आ गए। जब विदेशी पत्रकारों के समूह को इसकी जानकारी मिली। वे भी बाहर आए। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को देखते ही कहा- You are really a leader of downtrodden people. We have not seen any leader as you in the entire world. निहोरा प्रसाद यादव बताते हैं कि उनका विशाल व्यक्तित्व एवं बड़े राजनेता होने का एहसास गरीबों की आवाज बनने में कभी और कहीं भी बाधक नहीं बना। यहीं कारण रहा कि वे आवाज को मजबूती प्रदान करने में साधन नहीं, अपने आपको साध्य मानकर आगे बढ़ते गए। लक्ष्य तक पहुंचने में रास्ता चाहे जैसा भी हो। उनकी तनिक भी परवाह नहीं की। न रात देखा और न दूरी देखी। न साधन देखा। न मुसीबतें देखी। निर्भीक होकर सीना फैलाकर पैर अड़ाकर लड़ने और संघर्ष से तनिक भी नहीं रुके पूरी जिंदगी ही मानें गरीबों के अपना जीवन गिरवी रख दिया।
[ad_2]
Source link