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बिहार में 1 अप्रैल 2016 को राज्य सरकार ने पूर्व शराबबंदी कानून लागू कर दिया। राज्य में शराब के उत्पादन, पीने और उसे बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ऐसा करने वालों को कठोर सजा देने का प्रावधान किया गया। कानून लागू होने के कुछ ही दिनों के अंदर बिहार की जेलों में कैदियों की भीड़ जमा हो गई। शराब पीने और उसकी तस्करी के जुर्म में लाखों लोगों की गिरफ्तारी हुई। जेल के अंदर स्थिति भयावह हुई, वहीं शराबबंदी के बाद सूबे में एक बड़ी समस्या ने अपनी पैठ बनानी शुरू की…
हाइलाइट्स
- बिहार में शराबबंदी के डेंजर साइड इफेक्ट
- राज्य के लाखों युवाओं ने चुनी गलत राह
- नशे की तलाश में भटकने लगी युवा पीढ़ी
‘ड्रग्स की गिरफ्त में नौजवान पीढ़ी’
बक्सर जिले के कोरान सराय पंचाय में वर्षों से लोगों की चिकित्सा कर रहे वरिष्ठ और अनुभवी चिकित्सक डॉ। धर्मवीर उपाध्याय कहते हैं कि शराबबंदी के बाद अचानक उनके क्लीनिक पर माइग्रेन, सिर दर्द और भूख न लगने की शिकायत वाले युवाओं की संख्या बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि ज्यादात्तर युवा सुबह से ही हेरोइन पीने लगते हैं। उन्हें खाने-पीने तक की चिंता नहीं रहती। उन्होंने बताया कि उनके क्लिनिक में आने वाले युवा पहले शराब का सेवन करते थे। अब उन्होंने ड्रग्स लेना शुरू कर दिया है। डॉ. धर्मवीर उपाध्याय के मुताबिक पंचायत के दर्जनों युवाओं की हालत खराब होने के बाद उनका इलाज वाराणसी में किया गया। उन्होंने कहा कि शराबबंदी के बाद से पंचायत के गांव-गांव में ड्रग्स की पैठ बढ़ी है। बेचने वाले बेच रहे हैं। उसे खरीदकर युवा पी रहे हैं। उन्होंने अपने सामाजिक अनुभव को शेयर करते हुए कहा कि शराबबंदी के बाद काफी युवाओं में विकल्प के तौर पर ड्रग्स का चयन किया है।
युवाओं में मेमोरी लॉस की समस्या
डॉ। धर्मवीर उपाध्याय की बातों में सच्चाई भी है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का पिछला आंकड़ा उनकी बात को सही साबित करता है। ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक शराबबंदी वाले साल में बिहार में कुल 496.3 किलो गांजा जब्त हुआ। वहीं 2017 में ये आंकड़ा बढ़कर 6884.47 किलो तक जा पहुंचा, यानी शराबबंदी के बाद ड्रग्स की ओर युवाओं ने स्विच किया। राजधानी पटना के वरिष्ठ डॉक्टर और डॉ. वीके ठाकुर, सामान्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख कहते हैं कि ड्रग्स से पीड़ित युवाओं के मामले पहले से ज्यादा आ रहे हैं। ड्रग्स से मेमोरी लॉस की समस्या होती है। उसकी लत में फंसा युवाओं को कुछ भी सही से याद नहीं कर सकता। उसकी मनोदशा में बदलाव होने लगता है। मस्तिष्क में डोपामिन के स्तर में भी गिरावट होने लगती है। शरीर के सभी अंग शिथिल पड़ने लगते हैं। उन्होंने कहा कि ड्रग्स से पीड़ित लोगों में दूसरे को दर्द देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। सुसाइड टेंडेंसी बढ़ती है। उन्होंने कहा कि शराब का नशा एक निर्धारित वक्त तक शरीर को प्रभावित करता है। ड्रग्स की कोई अवधि नहीं है। इसलिए इसकी चंगुल में फंसे युवा इससे निकल नहीं पाते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि बिहार में ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या में इजाफा हुआ है।
चोरी की घटनाएं बढ़ीं
बक्सर जिले के वरिष्ठ शिक्षक पूर्णानंद मिश्रा कहते हैं कि शराबबंदी के बाद छोटी-मोटी चोरी की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ है। किसी का नल चोरी कर लेना। किसी के दरवाजे से साइकिल गायब कर देना। किसी के पशु को खोलकर उसे बेच देना। ये घटनाएं ग्रामीण इलाके में बढ़ी हैं। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले वहीं युवा हैं, जिन्हें ड्रग्स के लिए पैसे की कमी हो जाती है। शराबबंदी के बाद ‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ की समस्या बढ़ी है। युवाओं में ड्रग्स के प्रति आकर्षण बढ़ा है। ये आसानी से उपलब्ध है। इसे लेने के लिए शराब की तरह चखना (खाने की सामग्री) नहीं चाहिए। युवा कहीं किसी झाड़ियों में छुपकर इसे ले लेते हैं। हमेशा छात्रों की नशे की लत से दूर रहने का संदेश देने वाले शिक्षक उपेंद्र पाठक कहते हैं कि बिहार के किसी भी ग्रामीण इलाके में चले जाइए, आपको पूरा गांव ड्रग्स सेवन करने वाले युवकों से परेशान दिखेगा। ये गांजा, चरस और हेरोइन का सेवन करते हैं। मारपीट करते हैं। गाली-गलौज करते हैं। पहले ये शराब का सेवन करते थे और अब ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं।
ग्रामीण इलाकों में ड्रग्स की खपत
वहीं, एक और शिक्षक संजय सिंह कहते हैं कि नशे की लत ने युवाओं को बर्बाद करके रख दिया है। चोरी छुपे शराब भी बेची जा रही है। प्रशासन गाहे-बगाहे कार्रवाई करता है, लेकिन आपने ये कम सुना होगा कि आज हेरोइन पकड़ी गई, या चरस की जब्ती हुई। छोटे बाजार और गांव में ड्रग्स लेने वाली संख्या बेतहाशा बढ़ी है। जिसकी वजह से एक नई समस्या खड़ी हो गई है। संजय सिंह कहते हैं कि नशे के लिए युवा कुछ भी करने को तैयार हैं। छपरा में जहरीली शराब से हुई दो दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत के बाद एक बार फिर बहस शुरू हो गई है कि आखिर शराबबंदी है कहां? वहीं, एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताते हैं कि बिहार में शराबबंदी के बाद ‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ ने युवाओं को पूरी तरह अपने गिरफ्त में ले लिया है। युवा कफ सीरप, नशे की गोलियां और ड्रग्स का सेवन करते हैं। शराब की बिक्री धड़ल्ले से जारी है। सब कुछ चोरी-छुपे चल रहा है। इसमें स्थानीय प्रशासन भी मिला हुआ है। वहीं कई ग्रामीण इलाकों में आज बी देशी दारू का धंधा जारी है। जिसे रोकने में पुलिस नाकाम है।
वैकल्पिक नशे की तलाश
‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ एक ऐसी समस्या है, जिसमें नशा करने वाला इंसान वैकल्पिक नशे की तलाश में होता है। बिहार के चिकित्सक मानते हैं कि शराबबंदी के बाद नशेड़ियों और इसकी लत में गिरफ्तार लोगों के लिए कुछ नहीं सोचा गया। अचानक शराबबंदी कर दी गई। सामाजिक और नशे के खिलाफ जागरूकता का अभाव रहा। जिसकी वजह से नशेड़ी समझ नहीं पाए। उन्हें लगा कि अचानक उनके हक पर डाका डाला गया है। फिर उन्होंने नशे के लिए नये-नये तरीके इजाद करने शुरू किए। नशेड़ियों ने शराब की जगह वैकल्पिक नशे को चुना। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और नशे की लत में गिरफ्तार बच्चों पर शोधपरक रिपोर्ट लिख चुके डॉ. उज्जवल बताते हैं कि जुलाई 2022 में हुई दो घटनाओं पर आप गौर करें। एक घटना गोपालगंज में हुई। जहां के सुकुल कला गांव में एक युवा ने अपने पिता की हत्या इसलिए कर दी कि उन्होंने ड्रग्स के लिए पैसे नहीं दिए। वहीं दूसरी ओर किशगंज से एक घटना प्रकाश में आई की स्थानीय पुलिस ने ऐसे गिरोह को गिरफ्तार किया, जो युवकों के खून के बदले पैसे देते थे।
युवाओं में ड्रग्स की लत
डॉ. उज्जवल बताते हैं कि ‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ की समस्या का परिणाम है कि भारी संख्या में युवाओं ने ड्रग्स की राह चुनी। इन दिनों जिसका शराब तस्कर से कनेक्शन है, उसे शराब मिल जाती है। वहीं, बिहार सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि हाल के दिनों में चोरी और लूट की वारदात बढ़ी है। स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा कहता है कि शराबबंदी के बाद से चोरी घटनाओं में गजब की वृद्धि दर्ज की गई है। इसलिए कि ड्रग्स के लिए पैसे चाहिए और पैसे के लिए युवा चोरी जैसी घटनाओं में शामिल होते हैं। कुल मिलाकर जितने लोगों से बात कीजिए, उनका साफ कहना है कि ‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ की समस्या शराबबंदी के बाद शुरू हुई। बिहार की एक पूरी पीढ़ी नशे की आगोश में समाती जा रही है। प्रशासन सिर्फ शराबबंदी रोकने में लगा है। फिर भी, छपरा जैसी घटनाएं सामने आती हैं और जहरीली शराब पीकर लोग अपनी जान गंवा देते हैं। जानकार बताते हैं कि सरकार को ‘स्विच ओवर ऑफ ड्रग्स’ की समस्या पर भी ध्यान देना होगा। वरना आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावह होने वाली है।
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