Home Bihar Darbhanga: एक हाउसवाइफ की सफलता की कहानी, मशरूम की खेती कर हर महीने कमा रही 40 हजार, मिल चुके हैं कई अवार्ड

Darbhanga: एक हाउसवाइफ की सफलता की कहानी, मशरूम की खेती कर हर महीने कमा रही 40 हजार, मिल चुके हैं कई अवार्ड

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Darbhanga: एक हाउसवाइफ की सफलता की कहानी, मशरूम की खेती कर हर महीने कमा रही 40 हजार, मिल चुके हैं कई अवार्ड

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रिपोर्ट- अभिनव कुमार

दरभंगा. दरभंगा शहर के बलभद्रपुर में रहने वाली हाउसवाइफ पुष्पा झा आज मशरूम की खेती कर महीने में 30 से 40 हजार तक कमा ले रही है. इन्हें इस वजह से कई अवार्ड भी मिल चुके हैं. पुष्पा और भी लोगों को मशरूम की खेती करने के लिए प्रेरित करती हैं. ट्रेनिंग देती हैं. पुष्पा मशरूम की खेती के साथ-साथ इसके बीज के उत्पादन के लिए प्लांट लगा रखी हैं.

कैसे आया मशरूम की खेती का आइडिया

आपके शहर से (दरभंगा)

पुष्पा झा बताती है कि वर्ष 2010 में इनके पति पूसा गए थे. वहां कुछ महिलाएं मशरूम की खेती कर रही थीं. वहां से वो कुछ मशरूम खरीद कर लाए और पुष्पा से सब्जी बनाने के लिए कहा. तब पुष्पा झा ये बोलकर उसे फेंक देती हैं कि ये गोबर छत्ता है. हम इसे नहीं बनाएंगे. लेकिन पति की बात को मानते हुए पुष्पा मशरूम की सब्जी बनाई जो पूरे परिवार को काफी पसंद आया. जिसके बाद उसने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया.

पुष्पा राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर में मशरूम की खेती के बारे में प्रशिक्षण लेने पहुंची. लेकिन सीट फुल होने के कारण उसे निराशा हाथ लगी. हालांकि पति के द्वारा वहां के प्रोफेसरों से आग्रह करने पर पुष्पा को ट्रेनिंग पाने का मौका मिला. पूसा विश्वविद्यालय में जब ट्रेनिंग कर रहे थी तो काफी दिक्कत हो रही थी. क्योंकि वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी और अंग्रेजी उसे समझ में नहीं आ रही थी. वहां के प्रोफेसर ज्यादातर अंग्रेजी में समझाते थे. शुरुआती दौर की परेशानी के बाद पुष्पा धीरे-धीरे सब कुछ समझने लगी.

अब लोगों को दे रही प्रशिक्षण

पुष्पा झा बताती है कि विभाग के द्वारा जो ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाता है. उसमें किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए उन्हें बुलाया जाता है और अब तक लगभग 23 हजार से ज्यादा लोगों को वह ट्रेनिंग दे चुकी है. जिनमें से कई लोग आज खुद ट्रेनर बन गए हैं.

पुष्पा झा बताती है कि जब शुरुआती दौर में मशरूम की खेती उन्होंने शुरू की, तब लोग इसे जानते तक नहीं थे. शहर में 200 ग्राम मिलना भी मुश्किल था. लोग इसे गोबर छत्ता बोलकर निराशा कर देते थे. दो-तीन सालों तक फ्री में लोगों को मशरूम बांटा. लेकिन जब लोगों को पता चला कि यह एक पौष्टिक आहार है तब लोग उनसे खरीदना शुरू किया.

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