[ad_1]
पटना हाईकोर्ट।
– फोटो : Amar Ujala
विस्तार
राज्य के हर आदमी की जाति पूछते हुए उसकी सारी जानकारी गणना रिकॉर्ड के रूप में दर्ज करने को असंवैधानिक और जातियों का नाम बदलने या विलोपित करने को साजिश बताते हुए सुप्रीम कोर्ट तक लगाई गई फरियाद का असर रहा कि पटना हाईकोर्ट में चार मई की जगह 1 मई को याचिका की सुनवाई होने वाली थी। लेकिन, सोमवार को भी सुनवाई टल गई। अब मंगलवार की तारीख मिली है। सुनवाई के बाद पटना हाईकोर्ट यह तय करेगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट जाति आधारित गणना संवैधानिक है या असंवैधानिक।
जातीय जन-गणना का पूरा GK सिर्फ एक क्लिक पर
आज क्यों टली सुनवाई, वजह भी जान लीजिए
याचिकाकर्ता ने जल्दी सुनवाई की अपील की थी, जिसके आधार पर सोमवार की तारीख मिली थी। सोमवार को दोनों पक्ष हाईकोर्ट में खंडपीठ के समक्ष थे। राज्य के लाखों लोगों के साथ सरकार की भी नजर इस केस की सुनवाई पर थी। लेकिन, सुनवाई शुरू करने से पहले ही सामने आया कि 396, 400 और 360 पेज की याचिकाओं में दिए गए सवालों का बिंदुवार जवाब कोर्ट के सामने रिकॉर्ड के रूप में नहीं था। तीन जनहित याचिकाओं के अलावा भूमिहार, कुर्मी, ट्रांसजेंडर, बंगाली समाज की ओर से भी अलग-अलग केस हैं। याचिकाओं पर बिंदुवार लिखित सरकारी जवाब पर ही आगे बहस होती, लेकिन रिकॉर्ड में नहीं रहने के कारण सुनवाई मंगलवार के लिए टाल दी गई।
असंवैधानिक माना गया तो प्रक्रिया रुकेगी
अगर पटना हाईकोर्ट इसे संविधान के दायरे में और राज्य के अधिकार क्षेत्र का मानता है तो 15 मई के बाद जातीय जनगणना की रिपोर्ट तैयार होकर निकल जाएगी और अगर इसे असंवैधानिक माना गया तो पूरी प्रक्रिया रद्द करना राज्य सरकार की मजबूरी होगी। फैसला जो भी आए, दोनों पक्ष के पास इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार होगा।
जाति गिनने पर stay granted या refused से पहले जानिए किस पक्ष का क्या है तर्क
खंडपीठ करेगी याचिका पर सुनवाई
मंगलवार को पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कृष्णन विनोद चंद्रण और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ इस याचिका पर सुनवाई करेगी। महाधिवक्ता पी. के. शाही राज्य सरकार की ओर से दलील रखेंगे कि जाति आधारित गणना एक ऐसा सर्वे है, जिसके जरिए सरकार लाभार्थियों की सही संख्या निकालते हुए उस हिसाब से नीतिगत फैसले ले सकेगी। सरकार की ओर से यह पक्ष रखा जाएगा कि इस सर्वे के जरिए तैयार रिकॉर्ड के आधार पर योजनाओं और सुविधाओं को राज्य के हर आदमी तक पहुंचाने की योजना है। दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अपराजिता सिंह और हाईकोर्ट के अधिवक्ता दीनू कुमार यह दलील देंगे कि राज्य सरकार को संविधान के तहत जनगणना का अधिकार नहीं है और जातीय गणना के नाम पर सरकार राज्य के हरेक आदमी की जाति पूछकर रिकॉर्ड तैयार कर रही है। इससे समाज बंटेगा और अराजकता फैलेगी। हाईकोर्ट इस याचिका पर फिलहाल एक पंक्ति का फैसला दे सकती है।
[ad_2]
Source link