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जहां तक बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रमई राम का सवाल है, अब उनकी ओर से राजद के मुखिया लालू प्रसाद पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि उनकी पुत्री पूर्व विधान परिषद सदस्य गीता देवी को सिंबल दिया जाए। हालांकि पिछले कुछ चुनावों में बोचहां विधानसभा क्षेत्र से रमई राम की करारी हार ने गीता देवी की दावेदारी की साख को कमजोर कर दिया है। संभव है, यहां से राजद किसी नये चेहरे पर पत्ता खेले। लेकिन बिहार सरकार में विभिन्न विभागों में मंत्री रहे रमई राम की दावेदारी को कमतर आंकना अभी राजद के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
निर्दलीय जीत चुकी हैं बेबी कुमारी
दूसरी ओर एनडीए प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक बेबी कुमारी की दावेदारी सशक्त दिख रही है। जहां तक इस क्षेत्र में काम का सवाल है, विधायक के कार्यकाल में बेबी कुमारी ने न सिर्फ विकास कार्यों को अहमियत दी बल्कि लोगों के दिल में भी जगह बनायी। जहां तक बेबी कुमारी के राजनैतिक जीवन का सवाल है, उन्होंने सार्वजनिक जीवन में कांग्रेस नेत्री के रूप में कदम रखा और चुनाव के दौरान सिंबल के लिए तकरीबन सभी प्रमुख दलों का दरवाजा खटखटाया, जिसमें भाजपा, राजद, लोजपा और वीआईपी शामिल है। हालांकि बाद के दिनों में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उपचुनाव में जीत हासिल करने वाली बेबी कुमारी को भाजपा का मुख्य समर्थन मिला था।
बीजेपी की ओर बेबी कुमारी की दावेदारी मजबूत
नतीजतन चुनाव जीतने के बाद बेबी कुमारी ने खुले तौर पर भाजपा का दामन थामा। हालांकि पिछले चुनाव में गठबंधन धर्म को महत्त्व देते हुए भाजपा ने अपनी झोली में आए इस विधानसभा क्षेत्र को बीआईपी को सौंपी, जहां से मजदूर नेता मुसाफिर पासवान ने चुनाव जीतने में सफलता हासिल की थी। मजदूर नेता के रूप में सशक्त पहचान रखने वाले मुसाफिर पासवान को पहले लोजपा प्रत्याशी के रूप में यहां से उपचुनाव में जीत हासिल हुई थी। अब उनके निधन के बाद लोगों की निगाहें उनके पुत्र अमर पासवान पर टिकी हैं।
अमर पासवान कर रहे दावेदारी
हालांकि मुश्किल यह है कि पिछले कुछ दिनों से वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी का एनडीए गठबंधन में बड़े भाई माने जा रहे भाजपा से तल्खी बढ़ी है। खासकर यूपी चुनाव में भाजपा के खिलाफ मुकेश साहनी का प्रचार में कूदना केंद्रीय नेतृत्व को रास नहीं आया। नतीजतन भाजपा सांसद अजय निषाद ने खुले तौर पर मुकेश सहनी को गठबंधन से हटाने का अभियान चला रखा है। बावजूद इसके बिहार की राजनीति में नया करवट लेने की आशंका है। ऐसे में बीआईपी को एनडीए अथवा राजद अपनी टीम में रखने को बाध्य हो सकती है। ऐसे में अमर पासवान को बीआईपी का सिंबल भी हासिल हो सकता है। संभव है कि सहानुभूति लहर में अमर पासवान बोचहां विधानसभा क्षेत्र से नए चेहरे के रूप में चुनावी बिसात पर नए वजीर साबित हो सकते हैं। हालांकि उनकी पहचान फिलहाल उनके दिवंगत पिता मुसाफिर पासवान के चुनावी कार्यकर्ता के रूप में ही है।
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