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Upendra Kushwaha-Nitish Kumar: नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के बयान से साफ है कि जेडीयू में भूचाल आना तय है। मुख्यमंत्री के बयान पर जिस तरह जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष ने पलटवार किया, उससे साफ है कि उपेंद्र कुशवाहा जॉर्ज या शरद यादव नहीं बनने जा रहे। जिस तरह के सियासी कदम आगे बढ़ा रहे हैं, उससे साफ है कि हम तो डूबेंगे सनम पर तुमको भी ले डूबेंगे…!

हाइलाइट्स
- उपेंद्र कुशवाहा जॉर्ज जॉर्ज फर्नां और शरद यादव नहीं बनेंगे!
- हम तो डूबेंगे सनम पर तुमको भी ले डूबेंगे की राह पर कुशवाहा
- नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में सियासी भूचाल आना तय
- उपेंद्र कुशवाहा का हश्र जॉर्ज और शरद यादव जैसा नहीं होगा
नीतीश कुमार ने क्या कहा
नीतीश कुमार ने क्या कहा
जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा खुद ही भाजपा के सम्पर्क में जाना चाहते हैं, जिस कारण वे जदयू नेताओं को लेकर अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। पार्टी को कमजोर कहने वाले वही लोग हैं जो भाजपा के संपर्क में हैं। जो लोग कहते हैं कि पार्टी कमजोर हुई है उन्हें कहें कि खूब खुशी मनाएं। उन्हें जहां जाना है जाएं। अच्छा तो यह होता कि पार्टी फोरम पर इस बात को रखते कि कौन-कौन नेता भाजपा के संपर्क में है।
फटकार वाली भाषा ने भी तोड़ दी उपेंद्र की सीमा
जाहिर है जो बुरे दिनों में नीतीश कुमार से कंधा से कंधा मिला कर चलते रहे। दोस्ती इतनी पक्की कि बार बार उपेंद्र कुशवाहा के जाने पर भी अपना प्रेम नीतीश कुमार ने बनाया रखा और लगभग सभी सदन में उनकी भागीदारी का कारण भी बनते रहे। बावजूद नीतीश कुमार की यह फटकार वाली भाषा का जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और वह सारी राजनीतिक और सामाजिक सीमा लांघते कुछ यूं निकली
‘बिना हिस्सा लिए वे कही जाने वाले नहीं है। पूरी संपत्ति को अकेले हड़पने नहीं देंगे। उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि ऐसे बड़े भाई के कहने से छोटा भाई घर छोड़कर जाने लगे तब तो हर बड़का भाई अपने छोटका को घर से भगाकर बाप-दादा की पूरी संपत्ति अकेले हड़प ले। अपना हिस्सा छोड़कर ऐसे कैसे चले जाएं।’
उपेंद्र कुशवाहा का हश्र जॉर्ज और शरद यादव जैसा नहीं होगा
जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव का जो हश्र नीतीश कुमार ने किया वही हश्र उपेंद्र कुशवाहा का नहीं होने जा रहा है। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। पहला तो यह कि ये दोनों नेता बिहार के नहीं थे। और जब नीतीश कुमार राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे तो वह काल घोर जातिवाद का था। जातीय आधार ने समाजवाद के चिंतन को जाति के खोल में कमजोर कर चुका था। जॉर्ज जाति की राजनीति में कहीं नहीं टिकते। सो, नीतीश कुमार ने जैसा चाहा किया। शरद यादव तो यादव की राजनीत करते थे, पर बिहार के नहीं रहने के कारण यादव की जातीय बैंक की चाबी लालू प्रसाद के पास थे। वे यादव वोट के सहारे नीतीश कुमार को चुनौती देने की स्थिति में नहीं थे।
उपेंद्र कुशवाहा की बात कुछ और है
बिहार में यादव के बाद कोई बड़ी जाति अगर है तो वह है कुशवाहा। कुर्मी वोट तो बिहार में काफी कम है। जो आबादी थी भी वह बंटवारे के बाद अधिकांश झारखंड में चली गई। यह वही कुशवाहा वोट है जिसे लव-कुश की राजनीति के मोलम्म में नीतीश कुमार जीत का समीकरण गढ़ते रहे। और यह आधार भी रहा कि नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को तरजीह दी। पहली बार विधायक जब उपेंद्र कुशवाहा बने तो नीतीश कुमार ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाकर कई वरीय नेताओं से खटास मोल ले ली। वैसे भी राजनीति में पूछ उसी की है, जिसके पास वोट बैंक और उसकी चाभी भी हो। उपेंद्र कुशवाहा ऐसे ही नेताओं में शामिल है। ये वही उपेंद्र कुशवाहा हैं जिन्होंने एनडीए में बतौर रालोसपा शामिल हो कर 2014 के लोकसभा चुनाव लड़े और तीन पर खड़े हुए और 100 फीसदी परिणाम के साथ तीनों पर चुनाव भी जीते। सो, अभी भी कुशवाहा के वरीय नेता होना इनकी राजनीति की धार को तब भी तेज करेगी, जब वे नीतीश कुमार के साथ नहीं भी रहें।
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