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Bihar Politics: गाछे कटहर, ओठे तेल- लोकसभा चुनाव के साल भर पहले ही बिहार में बढ़ी सियासी हलचल

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Bihar Politics: गाछे कटहर, ओठे तेल- लोकसभा चुनाव के साल भर पहले ही बिहार में बढ़ी सियासी हलचल

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साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। चुनाव के पहले बीजेपी के वरिष्ठ अमित शाह का लगातार बिहार में दौरा हो रहा है। जबकि अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से अलग-अलग सम्मेलन और कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

नीतीश

हाइलाइट्स

  • उपेंद्र कुशवाहा कर रहे दो दिन का सम्मेलन
  • अब आरसीपी सिंह 26 फरवरी को करेंगे रैली
  • 25 को पूर्णिया में होगी महागठबंधन की रैली
  • अमित शाह भी 25 को पटना में रहेंगे मौजूद
पटना: लोकसभा का चुनाव अगले साल होने वाला है, लेकिन बिहार में चहल पहल अभी से बढ़ गयी है। बिहार में महागठबंधन की कामयाबी से इसके नेताओं में गजब का उत्साह है। उत्साह का आलम यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी को उखाड़ फेकने का सपना भी महागठबंधन देखने लगा है। महागठबंधन के नेताओं को विश्वास है कि बिहार का प्रयोग देश भर में सफल हो सकता है। इसका जिम्मा नीतीश कुमार को मिला है। नीतीश कहते भी हैं कि सभी एकजुट हो जाएं तो बीजीपी को 100 सीटों पर समेट सकते हैं। इसी कड़ी में बिहार में अभी सम्मेलनों और रैलियों का सिलसिला शुरू हुआ है।

25 फरवरी को पूर्णिया में महागठबंधन की रैली

पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार जेडीयू के बागी नेता उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी को बचाने के लिए कार्यकर्ताओं-नेताओं की दो दिवसीय बैठक 19 फरवरी से शुरू की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 25 फरवरी को पटना में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। उसी दिन पूर्णिया में आरजेडी-जेडीयू ने महागठबंधन के अन्य घटक दलों के साथ रैली का कार्यक्रम तय किया है। कभी जेडीयू में कद्दावर नेता रहे आरसीपी भी नीतीश सरकार के खिलाफ 26 फरवरी को रैली करने वाले हैं। शनिवार को सीपीआई (एमएल) ने पटना में बड़ा कार्यक्रम किया। उस कार्यक्रम में आरजेडी से तेजस्वी यादव, जेडीयू से सीएम नीतीश कुमार और कांग्रेस से सलमान खुर्शीद ने शिरकत की थी।

उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश के खिलाफ खोला मोर्चा

उपेंद्र कुशवाहा ने तो उसी दिन नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, जब वे एम्स में चेकअप करा दिल्ली से पटना लौटे थे। दरअसल जब वे चेकअप के लिए दिल्ली गये तो यह हवा उड़ी कि कुशवाहा बीजेपी से सांठगांठ करने गये हैं। संयोगवश बीजेपी के कुछ नेता उनसे मिलने एम्स पहुंच गये। इस पर नीतीश ने कहा कि वे पहले भी इस दल से उस दल में आते-जाते रहे हैं। उनको अगर बीजेपी में जाना है तो चले जाएं। इस पर भड़के उपेंद्र कुशवाहा जब पटना लौटे तो उन्होंने यह कह कर नीतीश पर प्रहार किया कि उनसे पहले जेडीयू के बड़े नेता बीजेपी के संपर्क में हैं। उसके बाद तो दोनों ओर से तलवारें तन गयीं। पहले तो हालत यह थी कि कुशवाहा कुछ बोलते तो पलट कर नीतीश या जेडीयू के दूसरे नेता उनको जवाब देते। बयानबाजी से तंग नीतीश ने तो बाद में यहां तक कह दिया कि अब कुशवाहा पर कुछ नहीं बोलेंगे। उन्होंने अपने नेताओं को भी कुशवाहा पर बयानबाजी से रोक दिया।

कुशवाहा ने नीतीश को घेरने की कई चालें चलीं

उपेंद्र कुशवाहा ने बाद में यह भी साफ कर दिया कि जीते जी वे बीजेपी में नहीं जाएंगे। वे जेडीयू में रह कर ही पार्टी की कमजोरी दूर करने की कोशिश करेंगे। वे शरद यादव नहीं है, जिन्हें नीतीश ने किनारे लगा दिया। वे जेडीयू में अपना हिस्सा लेकर रहेंगे। कुशवाहा को काबू में करने के लिए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ऐलानिया कहना पड़ा कि उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू संससदीय बोर्ड के अब अध्यक्ष नहीं हैं। वे पार्टी में पदधारी नहीं हैं। उनकी हैसियत महज एक एमएलसी की है। लेकिन कुशवाहा कहां रुकने वाले थे। उन्होंने 19-20 फरवरी को पार्टी के कार्यकर्ताओं-नेताओं की बैठक बुलाने का पत्र जारी कर दिया। उनकी इस बैठक को जेडीयू ने अनधिकारिक बता दिया है। साथ ही यह भी चेतावनी जेडीयू की ओर से जारी की गयी कि कुशवाहा की बैठक में शामिल होने पार्टी कार्यकर्ताओं-नेताओं पर कार्वाई की जाएगी।

उपेंद्र कुशवाहा की पीड़ा- जेडीयू कमजोर हो रहा है

नीतीश कुमार और ललन सिंह को जिम्मेवार ठहराते रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा बार-बार यह बात कह रहे हैं कि कुछ नेताओं की वजह से जेडीयू कमजोर हो रहा है। इसके लिए वे ललन सिंह और नीतीश कुमार को दोषी बता रहे हैं। उन्होंने यहां तक आरोप लगा दिया कि नीतीश कुमार जेडीयू का विलय आरजेडी के साथ करना चाहते हैं। इसीलिए नीतीश ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। कुशवाहा बार-बार आरजेडी के साथ नीतीश की डील को सार्वजनिक करने की मांग करते रहे हैं। उनका मानना है कि आरजेडी में जेडीयू के विलय की शर्त पर ही नीतीश को सीएम की कुर्सी मिली है। अब तो वे पार्टी में उनकी तरह नाराज चल रहे कार्यकर्ताओं-नेताओं को गोलबंद करने के लिए बैठक भी कर रहे हैं।

लव-कुश के नये अवतार में उपेंद्र व आरसीपी सिंह

दरअसल 1994 में हुए कुर्मी सम्मेलन में लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण की नींव पड़ी थी। वहीं से नीतीश कुमार का उठान शुरू हुआ। लव-कुश समीकरण ही नीतीश का आधार वोट बैंक था। बाद में उन्होंने आरजेडी से मुस्लिम वोट झटक लिये। सामाजिक न्याय के मसीहा बतौर ने लालू ने दलित वोटों पर भी कब्जा कर लिया था। नीतीश कुमार दलित-महादलित में दलित तबके को बांटा और उन्हें सुविधाएं देकर अपने पाले में लाने में वे कामयाब हो गये थे। एनडीए का हिस्सा बनने के बाद मुस्लिम वोटर नीतीश कुमार से छिटक कर फिर आरजेडी के साथ चले गये। अब चूंकि नीतीश ने आरजेडी के साथ हाथ मिला लिया है, इसलिए उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह लव-कुश समुदाय के वोट पर चोट कर सकते हैं। अगर लव-कुश समीकरण बिखर गया तो फिर नीतीश के हाथ खाली हो जाएंगे। उपेंद्र कुशवाहा के तर्ज पर आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार की नीतियों को लेकर लगातार हमलावर रहे हैं। नीतीश की आलोचना का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते। अब आरसीपी ने एलान किया है कि 26 फरवरी को वे भी नीतीश सरकार के खिलाफ रैली करेंगे।
रिपोर्टः ओमप्रकाश अश्क

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