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सवालों में नीतीश की पॉलिटिकल लॉयलिटी
दरअसल, राजनीति की दुनिया में अभी नीतीश कुमार के लिए सबसे जरूरी है विश्वसनीयता। पॉलिटिकल लॉयलिटी उनको साबित करना है। ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार ने राजद का साथ दो बार दिया और दो बार तोड़ भी दिया। उस पर बार-बार श्रद्धेय अटल जी को याद कर एनडीए के सुनहरे दिन को याद करना या फिर अमित शाह से या राजनाथ सिंह से बात करना कुछ संशय का वातावरण बना देता है। उस पर अचानक पूर्व उपमुख्यमंत्री तरकिशोर प्रसाद के निजी कार्यक्रम में जाना भी भाजपा से मोहभंग होने जैसी बात का उदाहरण भी नहीं बन पाता ।
बयानों में तीखापन, मगर निजी तौर पर?
जब-जब ऐसी स्थितियां बनती है, भाजपा के विरुद्ध कुछ कठोर बयान देते हैं। हाल ही में पत्रकारों से बात करते बड़े मुखर होकर कहे थे कि ‘मर जाऊंगा, भाजपा में नहीं जाऊंगा। कैसी-कैसी बात करने लगी है भाजपा।’ फिर तेजस्वी की तरफ इशारा करते ये भी कहने से नहीं चूकते कि ‘इनके पिता को लगातार परेशान किया जा रहा है। कहता है कि कंप्लेनर हैं। क्या-क्या कहता है आप तो जानते ही हैं।’
वैसे, इसके पहले भी नीतीश कुमार ने कहा था कि ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा, भाजपा में नहीं जाऊंगा।’ इसके पहले भी कहा था कि संघ मुक्त भारत बनाएंगे। लेकिन नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा के साथ गए और राजनीति को अपने अंदाज से चलाया। इस बार भी वजह विश्वसनीयता ही है। खासकर कांग्रेस के लिए कि क्या फिर भाजपा की उंगली पकड़ सकते हैं नीतीश? सो, चुनावी मूड में आए नीतीश के पहले निशाने पर भाजपा है।
चुनाव को देखते हुए शिक्षकों की नई नियमावली?
सातवें चरण के शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया को नई नियमावली के जरिए करना भी चुनावी मूड का परिणाम है। एक सोची समझी रणनीति के तहत ये सब किया गया। प्रशासनिक पदाधिकारियों का एक आकलन भी था कि इसका विरोध होगा। लोग कोर्ट जाएंगे। मामला उलझेगा। ऐसा नहीं हुआ तो बीपीएससी की लेट लतीफी जगजाहिर है। परीक्षा लेने में तो दो साल लग ही जाएंगे ऐसे में चुनाव की वैतरणी भी पर कर जाएंगे। हुआ भी ऐसा ही।
शिक्षक अभ्यर्थियों को बीपीएससी से परीक्षा लेना रास नहीं आ रहा है। नीतीश सरकार के विरुद्ध वो सड़कों पर उत्तर आए हैं।
ललन सिंह बिहार में मटन और चावल की राजनीति चला रहे हैं
2024 के लोकसभा चुनाव में अभी भले समय हो लेकिन जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह चुनावी तैयारी में लगे हैं। इन्होंने हर जिले में मटन चावल पार्टी देने में लगे हैं। इसमें जेडीयू के साथ-साथ राजद और कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं को भी बुलाया गया। ललन सिंह की ओर से कहा गया कि महागठबंधन के कार्यकर्ताओं के सम्मान में इस महाभोज का आयोजन किया गया। इसके निहितार्थ चुनावी संदेश के प्रसारण के अलावा कुछ और मकसद हो सकता हैं क्या?
आनंद मोहन को बार-बार पेरोल का वोट एंगल
बाहुबली आनंद मोहन को जेल से हमेशा के लिए बाहर लाने पर विचार कर रहे नीतीश कुमार का ध्यान भी एक जाति विशेष वोट पर पकड़ मजबूत करने की है। शादी समारोह में इस बात की सहमति भी मिली है। बहरहाल, एक साल के भीतर पूर्व सांसद आनंद मोहन का तीसरी बार पेरोल पर जेल से बाहर आना भी किसी जाति विशेष का भरोसा बढ़ाना है। इस बार बेटे की शादी कह कर पेरोल पर बाहर आए हैं। इसके पहले पूर्व सांसद आनंद मोहन अपनी बेटी सुरभि की सगाई में शामिल होने के लिए नवंबर महीने में 15 दिनों के लिए जेल से बाहर आये थे। इसके बाद बेटी की फरवरी में होनेवाली शादी में शामिल होने के 15 दिनों के लिए पेरोल पर बाहर आने की अनुमति मिली थी। बहरहाल, खरामा-खरामा राजनीति के चाल चले जा रहे हैं। लेकिन ये तो भविष्य की बात है कि उनकी राजनीति, वोट के मायने में कितनी राहत महागठबंधन को देगी।
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