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सपना मूलचंदानी
– फोटो : अमर उजाला
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भागमभाग भरी जिंदगी में थकना मना है। रुकना मना है। लेकिन, कई बार ऐसा लगता है कि थोड़ा वक्त को खुद को देना ही चाहिए। कुछ वक्त अपने साथ गुजारना ही चाहिए। खुद को समझाना नहीं, खुद को समझना भी चाहिए। “लाखों सदमे ढेरों गम, फिर भी नहीं हैं आंखें नम। एक मद्दत से रोए नहीं, क्या पत्थर के हो गए हम”- अदब और तहजीब की महफिल में बैठकर अगर आप रूबरू होना चाहते हैं ऐसी बातों से तो रविवार की शाम अपने नाम कर सकते हैं। पटना लिटरेचर फेस्टिवल के तहत रूबरू-6 के दरम्यान ऐसी ही बातें होंगी।
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