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पहले थानाध्यक्ष-चौकीदार जिम्मेदार थे
साल भर पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की थी तो उन्होंने इसे पालन कराने की जिम्मेदारी थानाध्यक्ष और चौकदारों पर सौंपी थी। समीक्षा बैठक में कानून को सफल बनाने के लिए थानाध्यक्ष और चौकीदारों की जिम्मेदारी तय की गई थी। लापरवाह पाए जाने पर क्या एक्शन लिया जाएगा, वो भी बताया गया था। शराबबंदी जैसे बड़े और महत्वपूर्ण कानून को लागू कराने के लिए थानाध्यक्ष और चौकीदारों को जिम्मदारी सौंपे जाने पर सवाल भी उठाए गए थे। चौकीदारों के संगठन ने इसका विरोध भी किया था। धरना-प्रदर्शन भी हुए थे। तब कहा गया था कि बड़े अफसर अपनी खाल बचाने के लिए चौकीदारों को बलि का बकरा बना रहे हैं।
अब डीएम-एसपी की तय की गई जवाबदेही
मगर ताजा निर्देश में बिहार के मद्य निषेध और उत्पाद मंत्री सुनील कुमार ने कहा कि अगर शराबबंदी कानून को मुस्तैदी से लागू करने में कोई भी लापरवाही बरती जाती है, तो आलाधिकारी इसके लिए जिम्मेदार होंगे। उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। गलती होने के बाद जिले के डीएम और एसपी पर सीधा एक्शन लिया जाएगा। सचिवालय स्थित अपने कार्यालय में सुनील कुमार ने जिलाधिकारियों के साथ सभी एसपी से बातचीत की। उन्होंने कहा कि शराब से जुड़े धंधेबाजों का स्पीडी ट्रायल कराया जाए और उन पर तेजी से कार्रवाई की जाए। इस मीटिंग में उत्पाद विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक और एडीजी मुख्यालय जितेंद्र सिंह गंगवार ने शराबबंदी कानून को मुस्तैदी से लागू करने से संबंधित विस्तृत दिशा निर्देश सभी जिलाधिकारियों को दिए।
शराबबंदी कानून के लिए राजसत्ता कब जिम्मेदार होगी?
ऐसे में सवाल उठता है कि मुख्यमत्री नीतीश कुमार और मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार के निर्देशों में इतना विरोधाभास क्यों है? शराबबंदी कानून का पालन नहीं होने पर पहले थानाध्यक्ष और चौकीदार को जिम्मेदार बताया गया था। अब डीएम और एसपी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। अपने इशारे पर इन्हें नचानेवाली राजसत्ता कब जिम्मेदार होगी? सत्ताधारी दल से जुड़े कई ऐसे नेताओं के रिश्तेदारों पर शराबबंदी कानून के उल्लंघन के आरोप लगे। ऐसे में सरकार को वैसे नेताओं को भी जिम्मेदार ठहराने पर विचार करना चाहिए कि जिनके रिश्तेदारों पर शराबबंदी कानून को तोड़ने का आरोप लगा है।
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