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इस युवक की मौत से पहले इलाज के दौरान परिजन शराब की बात कह रहे थे।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
सारण में शराब से मौतें जनवरी में भी हुईं, लेकिन 23 दिसंबर को जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम सारण से लौटी तो जिला प्रशासन की ओर से मौतों का आंकड़ा छिपाए जाने की खबरों के पीछे की हकीकत खंगालती हुई। जिला प्रशासन ने मौतों का आंकड़ा 42 बताया था। ‘अमर उजाला’ की ग्राउंड जीरो पर काम कर रही टीम ने 76 मृतकों के नाम रखे थे। अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने पूरे तीन महीने बाद रिपोर्ट जारी की है, जिसमें 77 मौतों की पुष्टि की गई है। विधानमंडल के बजट सत्र के दौरान आई इस रिपोर्ट की गूंज अब शुक्रवार को सदन में भी सुनाई देगी।
3 माह बाद यह रिपोर्ट जारी की गई
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में यह दावा किया गया है कि सारण में जहरीली शराब से 42 नहीं बल्कि 77 लोगों की जान गई थी। इनमें से कई की आंखों की रोशनी भी गई। हालांकि यह मामला 3 माह पुराना है लेकिन 23 मार्च यानी बुधवार को रिपोर्ट आई है। दरअसल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम जहरीली शराब कांड की जांच के लिए 21, 22 और 23 दिसंबर को आई थी। 3 माह बाद यह रिपोर्ट जारी की गई तो लोग दंग रह गए। 18 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब पीकर मरे 32 लोगों की लाश को बिना पोस्टमार्टम के जला दिए गए।
2016 से 2021 तक सिर्फ 23 जहरीली मौत
बिहार में जहरीली शराब से मौत के आंकड़ों में यह पहली गड़बड़ी नहीं है। 2016 से 2021 तक NCRB के डेटा में बिहार में सिर्फ 23 जहरीली मौतों को दिखाया गया है। NCRB के डेटा के मुताबिक, बिहार में 2016 में छह, 2017 में कोई नहीं, 2018 में कोई नहीं, 2019 में नौ, 2020 में छह और 2021 में दो मौतें जहरीली शराब से हुई थीं। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। इस दौरान, बिहार में जहरीली शराब से मौत की कम से कम 20 घटनाएं सामने आई हैं और इनमें लगभग 200 लोगों की जान गंवानी पड़ी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 2021 में, जहरीली शराब के नौ मामले सामने आए और इनमें 106 लोगों की मौत हुई।
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