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बिहार जातीय गणना।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
बिहार में करीब 50-60 हजार लोग खुद को ‘सिख’ बताते हैं। ज्यादा भी हो सकते हैं। 15 अप्रैल से शुरू हो रही जातीय जनगणना में उनके लिए धर्म की श्रेणी में ‘सिख’ लिखने का विकल्प भी है। लेकिन, जैसे ही बात जाति की आएगी तो यह धर्म संकट में पड़ जाएगा। क्यों? क्योंकि सिख धर्म के लिए जातीय जनगणना में जातीय कोड दिया ही नहीं गया है। धर्म सिख लिखेंगे और जाति हिंदु वाली। अबतक जिन्हें ‘सिख’ होेने के आधार पर अल्पसंख्यक वर्ग का लाभ मिलता था, उन्हें आने वाले वक्त में फायदा मिलेगा या नहीं- यह बड़ा सवाल खालसा पंथ के अनुयायियों को परेशान कर रहा है।
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सिखों के लिए जातीय कोड ही नहीं रखा गया
जातीय जनगणना में 214 जातियों का कोड है। इनमें ज्यादातर जातियां हिंदू धर्म की हैं। उसके बाद मुस्लिमों को वर्गीकृत किया गया है। ईसाइयों के लिए भी विकल्प हैं। लेकिन, सिखों के लिए नहीं। सिखों को जातियों में नहीं बांटा गया है। मतलब, सिखों के लिए जातियों की व्यवस्था ही नहीं दी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि धर्म में ‘सिख’ लिखने का फायदा ही कैसे मिलेगा, जब जाति के नाम पर वह हिंदू की किसी जाति का जिक्र करेंगे। खालसा पंथ के लोगों ने ‘अमर उजाला’ के सामने यह परेशानी खुलकर बयां की। इनका कहना है कि बिहार में हिंदू धर्म के जिन लोगों ने खालसा पंथ को अपनाया, उन्हें अबतक सिख के रूप में अल्पसंख्यक होने का लाभ मिलता रहा है। अब जातीय जनगणना होगी और सिखों के लिए अलग जातीय कोड नहीं होगा तो ऐसे लोग मजबूरी में वापस हिंदू धर्म की जातियों को दर्ज कराएंगे।
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इस उदाहरण से समझें पूरी परेशानी
राजविंदर सिंह का पूरा परिवार कई पुश्तों से अबतक बिहार में ‘सिख’ के रूप में अल्पसंख्यक समुदाय से गिना जाता है। राजविंदर को पता है कि उनके पुरखे हिंदू धर्म की राजपूत जाति से थे, लेकिन खालसा पंथ अपनाने के बाद सिख हो गए। उनके बेटों को इसकी जानकारी भी नहीं। अब राजविंदर परेशान हैं कि वह जातीय जनगणना में धर्म तो सिख लिखाएंगे, लेकिन जाति ‘राजपूत’ लिखाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। राजपूत दर्ज कराने से दो तरह की परेशानी है- 1. पुश्तों से सिख धर्म वाले कहला रहे थे, लेकिन अब हिंदू धर्म की जाति वापस मिलेगी। 2. यह संशय रहेगा कि राजपूत होने के कारण सिख वाला दर्जा और अल्पसंख्यक वर्ग का लाभ मिलेगा या नहीं।
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आजादी के बाद पहली बार ऐसा संकट
खालसा पंथ अपनाकर सदियों या दशकों पहले सिख बने परिवारों का कहना है कि “आजादी के बाद ऐसी परेशानी पहली बार दिख रही है।” इनका कहना है कि उन्होंने जातीय जनगणना के कोड की सूची में सिखों के लिए प्रावधान नहीं किए जाने पर कई स्तर से एतराज जताया, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई।
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न सत्ता ने सोचा, न विपक्ष ही बना आवाज
बिहार में सिखों की संख्या भी कम है और राजनीतिक रूप से इनका प्रतिनिधित्व भी नहीं दिखता है। बिहार में सिखों का वोट आम तौर पर भाजपा और कांग्रेस में बंटता है, हालांकि कुछ वर्षों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रकाशोत्सव के जरिए इस समुदाय से काफी करीब आए हैं। सत्ता के करीब दिखने और विपक्ष के करीब होने, दोनों में से किसी का फायदा सिख समुदाय को इस जातीय जनगणना में नहीं होता दिख रहा है।
तो, क्या अपील करने वाले हैं बहिष्कार की
बिहार में जातीय जनगणना का सिख समुदाय बहिष्कार कर दे तो अचरज नहीं होना चाहिए। सिख समुदाय के लोग इस जनगणना को सिखों का अस्तित्व खत्म करने की साजिश भी बता रहे हैं। सरकार से सीधी लड़ाई की जगह यह जातीय जनगणना का बहिष्कार करने का रास्ता निकाल रहे हैं। पूछने पर कहते हैं- “रास्ता यह निकाल रहे हैं कि खालसा पंथ के लोग धर्म में सिख लिखवा दें और जाति का नाम नहीं लें। इस स्थिति में जाति ‘अन्य’ दर्ज करने की मजबूरी होगी।” और, ऐसा हुआ तो इनके घर पहुंचे हर प्रगणक को सिख धर्म के हर व्यक्ति की जाति में ‘अन्य’ दर्ज कराने के लिए अंचलाधिकारी से लिखित अनुमति की दौड़ लगानी पड़ेगी।
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