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बिहार में बिहारी अस्मिता पर हमले के बावजूद सरकार की चाल सुस्त है।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी IG विकास वैभव को DG शोभा अहोटकर से पड़ रही गालियों के केस की रिकॉर्डिंग भी सामने आ गई तो सरकार क्या करेगी? पूरे प्रकरण में ‘असंबद्ध शब्द’ का उपयोग जैसा कुछ लिखकर आ जाएगा, इससे ज्यादा कुछ नहीं। बिहार में अफसरशाहों पर सरकारी इनायत की यही हकीकत है। पिछले साल IAS केके पाठक ने भरी मीटिंग में, वीडियो कांफ्रेंसिंग के दरम्यान, महिलाओं के बीच में बिहार प्रशासनिक सेवा (BAS) अधिकारियों को मां-बहन की गालियां दीं, बिहार और बिहारियों को क्या नहीं कह दिया…लेकिन कुछ नहीं हुआ है अबतक। हालत यह है कि 2 फरवरी को पहली बार वीडियो सामने आने के बाद बिहार प्रशासनिक सेवा संघ (BASA) ने सचिवालय थाने में तहरीर दी, लेकिन उसे सनहा के रूप में रख लिया गया। प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। सात दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्य सचिव से जांच कराने की बात कही थी। उसके बाद दूसरा वीडियो आए भी छह दिन बीत गए। यह हालत भी तब है, जब सरकारी कागज पर स्वीकार कर लिया गया है कि हां, ऐसी बात हुई थी।
बिहारी अस्मिता और भाषा की गरिमा ताक पर
बिहार में बिहारी अस्मिता और भाषा की गरिमा ताक पर रखकर सरकार भी भूल गई है। यह कोई बयान नहीं, बल्कि हकीकत के आधार पर दी जा रही जानकारी है। नवंबर-दिसंबर में बिहार सरकार में निबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव और बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड रूरल डेवलपमेंट (BIPARD) के महानिदेशक IAS के. के. पाठक ने सामने आए वीडियोज़ में दोनों मीटिंग के दरम्यान जो कहा, उसमें से कई शब्द ‘अमर उजाला’ लिख नहीं सकता। केके पाठक ने सचिवालय के विभागीय सभा कक्ष में अफसरों को गालियां दीं। बिहार और बिहारियों को लेकर ढेर सारे अपशब्द कहे। अफसरों को मां-बहन की न केवल गालियां दीं, बल्कि यह तक कहा कि इसके बगैर सुनते-समझते नहीं हैं ये। मीटिंग के दौरान फिजिकल और वर्चुअल रहे अधिकारियों ने शिकायत भी की, लेकिन दबा दी गई। पहला वीडियो दो फरवरी को वीडियो सामने आया और दूसरा चार फरवरी को। दो फरवरी को ही सचिवालय थाने में बासा ने प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई के लिए तहरीर दी। इसके अगले दिन 3 फरवरी को मुख्यमंत्री ने समाधान यात्रा के दौरान कहा कि उन्हें इसकी जानकारी मिली है और उन्होंने मुख्य सचिव को खुद जांच करने कहा है।
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