Home Bihar Bhumihar Politics: बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण की राजनीति करने वाले कौन लोग हैं? क्या है उनकी राजनीतिक हैसियत?

Bhumihar Politics: बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण की राजनीति करने वाले कौन लोग हैं? क्या है उनकी राजनीतिक हैसियत?

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Bhumihar Politics: बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण की राजनीति करने वाले कौन लोग हैं? क्या है उनकी राजनीतिक हैसियत?

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पटना. बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण (Bhumihar and Brahmin) वोट बैंक को लेकर पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक (Politics) पारा उफान पर है. राज्य के राजनीतिक गलियारे में इस बात को लेकर चर्चा है कि क्या भूमिहारों का बीजेपी-जेडीयू गठबंधन से मोह भंग हो गया है. इधर भूमिहार-ब्राह्मण समाज लगातार जातीय सम्मेलन कर राजनीतिक पार्टियों पर दवाब भी बना रही है. सम्मेलन में बोला जा रहा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में यह समाज उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को सहयोग करेगी, जहां इस समाज के लोगों का सम्मान मिलेगा. भूमिहार-ब्राह्मण फ्रंट की ओर से इस साल 25 दिसंबर को मुजफ्फरपुर में महाकुंभ और अगले साल 24 दिसंबर को गांधी मैदान में विशाल रैली का आयोजन किए जाने का भी निर्णय लिया गया है. बीजेपी भी अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई है. पिछले दिनों ही राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने इसको लेकर बड़ा बयान दिया था. ऐसे में सवाल उठता है क्या वाकई में भूमिहार-ब्राह्मण वोट बैंक एनडीए से खिसकता जा रहा है? वे कौन लोग हैं, जो भूमिहार-ब्राह्मण वोट बैंक को गोलबंद करने में लगे हुए हैं? आने वाले चुनावों में इस वोट बैंक किस तरफ रुख करेगा?

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बोचहां विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट आने के बाद से ही चर्चा होने लगी है कि बीजेपी के हाथ से भूमिहार-ब्राह्मण वोट बैंक खिसकता जा रहा है. हालांकि, बिहार बीजेपी के बड़े नेता लगातार सफाई दे रहे हैं कि बीजेपी ने ब्राह्मण और भूमिहारों के लिए क्या-क्या किया है. साथ ही ये भी बता रहे हैं कि अन्य पार्टियों ने ब्राह्मण और भूमिहारों के साथ क्या किया है.

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बोचहां विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट आने के बाद बीजेपी के हाथ से भूमिहार-ब्राह्मण वोट बैंक खिसकता जा रहा है?

भूमिहार-ब्राह्मण क्यों गोलबंद हो रहे हैं बिहार में?
सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि ब्राह्मण-भूमिहार समाज को बीजेपी ने हमेशा से ही सम्मान दिया है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भूमिहार समाज के 15 और ब्राह्मण समाज के 11 सहित कुल 26 लोगों को पार्टी ने टिकट दिया. जबकि, राष्ट्रीय जनता दल ने इन दोनों जातियों का अपमान करते हुए सिर्फ एक ही टिकट दिया. पहली बार केंद्र में भूमिहार समाज के किसी व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री के पद से नवाजा. बिहार में भी बीजेपी कोटे से दो कैबिनेट मंत्री और विधानसभा का अध्यक्ष भी भूमिहार जाति से ही हैं. लालू-राबड़ी राज में भूमिहार-ब्राह्मण समाज का जितना अपमान-उत्पीड़न हुआ, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. ऊंची जातियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का विरोध करने वाली लालू प्रसाद की पार्टी आज किस मुंह से भूमिहार-ब्राह्मण समाज की हितैषी बन रही है?’

सुशील मोदी ने क्या कहा
बीजेपी के अंदर ही सुशील मोदी के इस ट्वीट पर प्रतिक्रियाएं आने लगीं. बीजेपी के पांच बार के विधायक रहे अवनीश सिंह ने सुशील मोदी से पूछा कि आप इतने बड़े नेता कैसे बने? सालों तक सत्ता की मलाई खाते रहे इसके पीछे किसका हाथ था? याद कीजिए कि बिहार की धरती पर जब बीजेपी का झंडा उठाने को कोई तैयार नहीं था तो उस दौर में भूमिहार समाज से आने वाले कद्दावर नेता कैलाशपति मिश्र ने पार्टी का झंडा बुलंद किया. आप उनके संरक्षण में पले-बढ़े और बाद में इसी समाज को हाशिये पर पहुंचा दिया. भूमिहारों ने बिहार में कांग्रेस को कब्रगाह बनाया और बीजेपी के रास्ते फूल बिछाया. जब आपके इर्द-गिर्द कोई खड़ा होने से डरता था उस दौर में भूमिहार-ब्राह्मणों ने न सिर्फ आपकी सुरक्षा की बल्कि आपको सियासी तौर पर मजबूत और खड़ा भी किया, लेकिन आपने इस समाज के लिए क्या किया?

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सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि ब्राह्मण-भूमिहार समाज को बीजेपी ने हमेशा से ही सम्मान दिया है.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?
बिहार के करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘इसमें कोई दो राय नहीं कि भूमिहारों ने ही लालू यादव के शासनकाल में हो रहे तांडव का जमकर विरोध किया. इसमें भी सच्चाई है कि बिहार में कांग्रेस को कब्रगाह बनाया और ये भी सच है कि बीजेपी के रास्ते को बिहार में और आसान बनाया, लेकिन भूमिहार-ब्राह्माण सामाजिक फ्रंट में शामिल लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए और भूमिहार होने का फायदा लेना चाह रहे हैं. ये लोग पहले किसी न किसी पार्टी में शामिल रहे हैं या मंत्री रह चुके हैं. अब क्योंकि उनकी राजनीति हाशिये पर चली गई है तो उन्होंने मोर्चा खोल दिया है. हां, सच्चाई है कि भूमिहारों ने बीजेपी को बिहार में राजनीतिक जमीन दी और लालू यादव के शासनकाल में सबसे ज्यादा संघर्ष किया. लेकिन, यह भी सच्चाई है कि कैलाशपति मिश्रा के बाद बिहार में इस जाति का कोई बड़ा नेता अब तक पैदा नहीं लिया.’

पांडेय आगे कहते हैं, भूमिहार-ब्राह्माण सामाजिक फ्रंट के अध्यक्ष सुरेश शर्मा पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. शर्मा नीतीश कैबिनेट का हिस्सा रह चुके हैं. वहीं, कार्यकारी अध्यक्ष अजीत कुमार भी नीतीश कैबिनेट का हिस्सा रह चुके हैं और जेडीयू के टिकट पर कई बार चुनाव भी लड़े हैं. इसी तरह सुधीर शर्मा जैसे भूमिहार नेता भी बीजेपी से जुड़े रहे हैं. इन लोगों को पार्टी ने जब दरकिनार किया तो अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए फ्रंट बना कर राजनीति कर रहे हैं. हां, कुछ लोग जरूर हैं, जिन्हें जमात और समाज की चिंता है.’

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भूमिहारों के नाम पर बिहार में इस समय कई फ्रंट्स ने मोर्चा संभाल लिया है. पिछले दिनों ही भूमिहार-ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन की ओर से परशुराम जयंती का आयोजन किया गया. इस आयोजन में तेजस्वी यादव ने कहा था कि अगर भूमिहार समाज औऱ यादव एकजुट हो जाएं तो कोई माई का लाल हरा नहीं सकता है. कुलमिलाकर साफ है कि तेजस्‍वी यादव का ए टू जेड का फॉर्मूला बोचहां विधानसभा उपचुनाव में हिट रहा था और वह अब इसी फॉर्मूला के साथ भविष्य के चुनावों में उतरने की बात कर रहे हैं, जिससे बीजेपी-जेडीयू में बेचैनी मची हुई है.

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