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बांका. जिले के अमरपुर में गुड़ की खूशबू अब धीरे-धीरे गायब होने लगी है. पहले यहां से तैयार गुड़ को बंगाल, झारखंड सहित अन्य राज्यों में सप्लाई किया जाता था. एक दौर था जब बांका जिले में 100 से अधिक गुड़ की मिलें थी. इसमें अकेले अमरपुर में आठ दर्जन से अधिक गुड़ की मिलें थी. अमरपुर का पूरा इलाका गुड़ निर्माण के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन सरकार और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता के चलते एक-एक कर सारी मिलें खंडहर में तब्दील होती चली गई.
चार हजार एकड़ में होती थी गन्ने की खेती
बांका जिले के अमरपुर में पहले चार हजार एकड़ में गन्ने की खेती होती थी, लेकिन आज यह रकबा महज 50 एकड़ पर सिमट गया है. आठ दर्जन मिलों की जगह अभी यहां पर दो या तीन मिलें चल रही हैं. इसका सबसे बड़ा कारण गन्ने की खेती करने वाले किसानों को सरकारी सहायता नहीं मिलना, बाजार में सही कीमत का अभाव, मिट्टी की अम्लीयता बढ़ना और सही प्रभेद के बीज का अभाव होना है. किसानों की मानें तो सही कीमत के अभाव में गन्ने की खेती छोड़ने को विवश होना पड़ा.
व्यापारियों द्वारा गुड़ की कीमत तय करने से शुरू हुई दिक्कत
अमरपुर के इंदिरा गुड़ मिल के संचालक गौरी शंकर वैद्य ने बताया कि आज से दो दशक पूर्व तक इस इलाके के लोग बेटी की शादी से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर रहते थे. उस वक्त सही कीमत मिलती थी. लेकिन बाद में व्यापारी गुड़ की कीमत तय करने लगे. इससे परेशानी बढ़ गई. जितनी कीमत मिलनी चाहिए, उतनी किसानों को नहीं मिल पाती थी. व्यापारियों ने किसानों का जमकर शोषण किया. उन्होंने बताया कि एक क्विंटल गुड़ को तैयार करने के लिए 11 क्विंटल गन्ने की जरूरत होती है. धूप निकलने के बाद सात से आठ क्विंटल गन्ने की जरूरत पड़ती है. अभी गन्ने की कीमत 220 रुपये से लेकर 300 रुपये क्विंटल है.
मिट्टी की समय-समय पर करानी होगी जांच
मिट्टी जांच प्रयोगशाला के सहायक निदेशक कृष्ण कांत ने बताया कि अमरपुर की मिट्टी में पीएच हाइड्रोजन का मान 6.5 से कम है. मिट्टी भी अम्लीय है. पोषक तत्वों की कमी के कारण गन्ने की फसल में सुक्रोज नहीं बन पाता है. इससे गन्ने में मिठास की कमी होती है. इसके साथ ही रेडरॉट रोग गन्ने की खेती के लिए मुख्य समस्या है. किसानों को मिट्टी की जांच कराकर दवा का प्रयोग करने से इस समस्या से राहत मिल सकती है.
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प्रथम प्रकाशित : 04 जनवरी, 2023, 10:04 पूर्वाह्न IST
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