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किसके साथ जाएंगे आनंद मोहन?
आनंद मोहन की रिहाई की लड़ाई एक लंबे अर्से से चल रही है। इनके समर्थकों का मानना रहा है कि इस केस में जान-बूझकर आनंद मोहन को फंसाया गया है। लंबे संघर्ष के बाद भी आनंद मोहन रिहा नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में अब जब महागठबंधन की सरकार में इन्हें रिहा किया गया है तो लोगों की सहानुभूति भी महागठबंधन को मिलेगी। बिहार में महाराजगंज, औरंगाबाद सहित करीब आठ से 10 ऐसे लोकसभा क्षेत्र माने जाते हैं कि जहां राजपूत मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी मानी जाती है। सबसे गौर करने वाली बात है कि आनंद मोहन की राजनीति में पहचान लालू प्रसाद के विरोध के कारण ही बनी है।
90 के दशक में जब अगडे और पिछड़े खुलकर सामने आने लगे थे, तब अपनी अपनी जातियों के नेता भी खुलकर सामने आए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि जिस गठबंधन में राजद होगा, उसमें क्या सवर्ण के नेता के रूप में पहचान बनाने वाले आनंद मोहन रहेंगे। वैसे, यह भी गौर करने वाली बात है कि भाजपा भी आनंद मोहन को लेकर ज्यादा मुखर नहीं दिख रही है। भाजपा के निशाने पर 26 अन्य रिहा होने वाले लोग हैं, जिसमें यादवों और मुस्लिमों की संख्या अधिक है।
आनंद मोहन कोई बड़ा फैक्टर नहीं
राजनीति के जानकार अजय कुमार भी कहते हैं कि सवर्णों का वोट कभी भी एक दल को नहीं जाता है। कोई भी दल इसका दावा नहीं कर सकते हैं कि उन्हें एकमुश्त सवर्ण मतदाताओं का वोट मिलता है। ऐसे में आनंद मोहन कोई बड़ा फैक्टर नहीं है। वैसे भी आनंद मोहन का दायरा सीमित रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी पत्नी लवली आनंद चुनाव नहीं हारती।
इधर, भाजपा के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा कहते हैं कि सांसद आनंद मोहन की आड़ में सरकार ने आधा दर्जन से अधिक कुख्यात अपराधियों को जेल से छोड़ने का निर्णय लेकर राज्य में गुंडाराज स्थापित करना चाहती है। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि भाजपा और बिहार के लोग कतई यह नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा ने प्रदेश के लोगों को जंगलराज से मुक्ति दिलाई है और अब गुंडाराज से भी मुक्ति दिलाएगी।
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