Home Bihar हिंसा कंट्रोल करने में नीतीश से बढ़िया थे लालू! याद है 1992 की वो घटना

हिंसा कंट्रोल करने में नीतीश से बढ़िया थे लालू! याद है 1992 की वो घटना

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हिंसा कंट्रोल करने में नीतीश से बढ़िया थे लालू! याद है 1992 की वो घटना

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लेखक रमाकांत चंदन | द्वारा संपादित ऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 7 अप्रैल 2023, 11:43 पूर्वाह्न

Lalu Prasad Yadav and Nitish Kumar Secularism : लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार, दोनों ही सेक्युलर छवि वाले नेताओं में शुमार किए जाते हैं। लेकिन दोनों ने ही सेक्लुरिज्म को अपने अपने ढंग से किया और जिया। इसकी बानगी 1992 में सीतामढ़ी का दंगा और हाल में हुई बिहारशरीफ हिंसा है।

फिर बनाम नीतीश

हाइलाइट्स

  • लालू जब हेलीकॉप्टर से पहुंच गए थे दंगे से सुलग रहे इलाके में
  • लालू ने तब कहा था- एक मुसलमान के लिए 10 यादव कुर्बान
  • लालू ने उसके बाद हनक दिखा कर हिंसा कराई थी शांत
  • नीतीश फोन पर ही शांत करा देते हैं हिंसा
पटना: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक सेक्युलर छवि वाले नेता रहे हैं। कई दफे दोनों ने अपनी बात या व्यवहार से इसे साबित करने की कोशिश भी की है। शायद इसलिए कि सत्ता की कुर्सी के लिए न केवल लालू प्रसाद ने बल्कि नीतीश कुमार ने भी भाजपा का दामन थामा। हां, इनके दामन थामने के अंदाज थोड़े अलग थे। लालू जी की शब्दावली इस्तेमाल करें तो वे नीतीश कुमार के संदर्भ में कहते थे कि नीतीश भाजपा की गोद में जा बैठे हैं। लेकिन उन्होंने नीतीश कुमार को कभी कम्यूनल नहीं कहा। मेरी समझ में ये दोनों अपने-अपने समय के नेता थे और अपने अपने तरीके से राजनीति की नाव के खेवनहार। लोहिया को आधार की राजनीति मानने वाले नीतीश कुमार और लालू प्रसाद भी थे। लोहिया ने भी कांग्रेस के विरुद्ध एकता कायम कर मजबूत विपक्ष की ओर कदम बढ़ाया तो कम्यूनलिज्म के एजेंडे को किनारे कर भाजपा के साथ भी हाथ मिलाया। जब लोहिया को सेक्युलर नेता माना जा रहा है तो इस फलसफे पर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार क्यों नहीं?

लालू प्रसाद और उनका सेक्युलरिज्म

लालू प्रसाद के सेक्युलरिज्म को आंका जायेगा तो इसके आड़े राजद का वोट बैंक यानी एम वाई समीकरण सामने आएगा। लालू प्रसाद को राजनीति के लिए यादव और मुस्लिम दोनों की जरूरत रही और वे येन केन प्रकारेन दोनों को ही संतुष्टि के रथ पर चढ़ाते भी रहे। याद करें वर्ष 1992, जब सीतामढ़ी में उपद्रव हुआ था। सीतामढ़ी में उपद्रव के कारण दो गुटों में हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा में 65 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे। ऐसे में लालू प्रसाद का आक्रामक अंदाज सामने आया। उन्होंने स्थानीय विधायक शाहिद अहमद खान के एक फोन पर उपद्रव पर काबू पाने के लिए सीतामढ़ी कैंप करने का मन बना डाला।

लालू यादव

लालू प्रसाद यादव की फाइल फोटो

उन्होंने तब मीडिया के सामने उद्घोष किया कि मुस्लिमों को बचाने की जिम्मेवारी यादवों की है और एक मुस्लिम को बचाने में 10 यादव भी शहीद हो जाएं तो कोई बात नहीं। तब उन्होंने एक हेलीकॉप्टर का इंतजाम किया और सीतामढ़ी निकल गए। थोड़ी कम ऊंचाई पर जब हेलीकॉप्टर सीतामढ़ी के ऊपर उड़ रहा था, लालू प्रसाद ने लोगों को हथियारों से लैस देखा। उन्हें समझने में देर नहीं लगी। हेलीकॉप्टर से उतरने के पहले खुली जीप मंगाई और वे उस पर खुद सवार हो गए और मेगाफोन से घोषणा करने लगे कि ‘कर्फ्यू लग गया है। घर में घुस जाओ। जो दिखेगा पुलिस उसकी गोली मार देगी।’ लोग तो ये भी कहते हैं कि लालू यादव ने फोर्स से हवाई फायरिंग करने को कहा। इसका भरपूर असर हुआ। लोग घरों के अंदर चले गए। उपद्रव पर नियंत्रण हो गया। बावजूद इसके लालू प्रसाद कई दिन तक वहीं रहे और राहत और पुनर्वास के मामले की मॉनिटरिंग भी की।

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सेक्युलरिज्म में लालू का कमजोर पक्ष भी था

लेकिन लालू प्रसाद का भी एक कमजोर पक्ष रहा है। उसे कह सकते हैं प्रशासनिक विफलता। जब 1992 में हुए सीतामढ़ी के सांप्रदायिक दंगों के 33 आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया तो कुछ छीटें लालू यादव के दामन पर भी पड़े। भागलपुर के दंगाइयों को भी बचाने का आरोप लालू प्रसाद पर लगा था। नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही आयोग बनाकर भागलपुर दंगा कांड केस को री-ओपन कराया और दंगाइयों को सजा दिलवाई।
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नीतीश कुमार और उनका सेक्युलरिज्म

अब बात नीतीश कुमार और उनके सेक्युलरिज्म की, पिछले दिनों बिहारशरीफ में हुए उपद्रव के बाद नीतीश कुमार की निष्क्रियता को ले कर आरोप भी लगे। सीतामढ़ी में लालू प्रसाद के उठाए गए कदम के बरक्स नीतीश कुमार को छोटा दिल वाला भी कहा गया। लेकिन नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की जो इमेज बनी, उसके पीछे प्रशासन का बड़ा हाथ रहा है। एक वजह यह भी रही कि अधिकारियों ने उन्हें यह समझा डाला कि स्थिति नियंत्रण में है। दूसरा कारण यह रहा होगा कि बिहारशरीफ उनके घर जैसा है। सूचना परिजनों, मित्रों और शुभेक्षिओं से मिली होगी, इस वजह से वे लालू प्रसाद वाला आक्रामक तेवर नहीं उठा पाए होंगे। पत्रकारों से बात करते उन्होंने कहा भी कि मेरी बात क्षेत्र के लोगों से हो रही है। वैसे भी नीतीश कुमार इस संकट की घड़ी में वोट बैंक के खिलाड़ी की तरह प्रस्तुत नहीं होते। बल्कि वो साइलेंट रहकर काम करने वालों में हैं। नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ रहकर भी मुस्लिम हितों की बात बड़ी गर्मजोशी की।
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क्या है विशेषज्ञों की राय?

वरीय पत्रकार अरुण पांडेय कहते है कि लालू प्रसाद सेक्युलर रह कर सामाजिक न्याय के समीकरण को जीते रहे। भाजपा के सहयोग से सरकार जरूर बनाई पर भाजपा के साथ सरकार में भागीदारी नहीं की। लेकिन नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ सरकार बनाई और भाजपा को हिस्सेदारी भी दी। लेकिन इस हिस्सेदारी पर भाजपा नीतिगत रूप से भी कभी हावी भी नही रही। नीतीश कुमार जिस मिनिमम प्रोग्राम के तहत भाजपा से हाथ मिलाए वह उसी पर अडिग भी रहे। भाजपा ने भी कभी नीतीश कुमार की नीतियों का विरोध नहीं किया। दंगाइयों को जेल के सलाखों के पीछे धकेलने में नीतीश कुमार ने आयोग बना कर अपनी धर्मनिरपेक्षता साबित भी की है।

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