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पुरस्कार की घोषणा के बाद आधी रात तक उठा रहे एक-एक कॉल।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
बुधवार की रात पद्म पुरस्कारों की घोषणा होने वाली थी, लेकिन सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार की दिनचर्या दिन में भी रोज की तरह थी और रात में भी। जिस समय पद्मश्री पुरस्कार के लिए आनंद कुमार के नाम की खबर पहुंची, जक्कनपुर में वह अपने घर पर परिवार के साथ बैठकर खाना खा रहे थे। घर में खुशी का माहौल दोपहर में ही बन गया था, क्योंकि दोपहर में वह जब अपनी दिनचर्या के अनुसार आईआईटी की तैयारी कर रहे बच्चों को परीक्षा के गूढ़ रहस्य समझाकर कुछ देर के लिए आराम करने वाले थे कि गृह मंत्रालय से उनके नाम इस उपलब्धि की सूचना पहुंच गई।
किसके नाम की आनंद कुमार ने यह उपलब्धि, जानें
पुरस्कार की घोषणा के बाद ‘अमर उजाला’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि “यह पुरस्कार एक आनंद कुमार के नाम नहीं। उस मां के लिए भी है, जिसने अपने बेटे की जिद को पूरा करने के लिए गरीब बच्चों के रहने-खाने का इंतजाम देखा। उस भाई के लिए भी है, जिसने अपने बड़े भाई की योजना को जीवन का उद्देश्य मान लिया। उस पत्नी और उस बच्चे का भी है, जो हमेशा एक ही इच्छा रखते हैं कि आनंद कुमार को लोग हमेशा गरीब होनहार बच्चों को आगे ले जाने के लिए जाने। इसके साथ ही यह पुरस्कार आनंद कुमार के उन सभी शुभेच्छुओं के नाम भी है, जिन्होंने हमेशा सुपर 30 को ईमानदार कोशिश के रूप में देखा, किसी फैक्टी के रूप में नहीं।”
हजार आलोचक होंगे, मगर उस जिद के सामने कौन
जिस आनंद कुमार को आज पूरी दुनिया बड़े-बड़े मंचों पर सम्मानित करती रही है, वह एक समय गर्दिश में थे। ऐसे कि गणित के मुश्किल सवालों का हल लेकर किसी से मिलते तो मजाक उड़ाने वाले भी उससे ज्यादा। उनके प्राथमिक विचार पर गरीब होनहारों को आईआईटी तक पहुंचाने पर बनी संस्था ‘सुपर 30’ पर बनाई फिल्म भी उतना नहीं दिखा सकी, जितना हकीकत में होता था। आज भी उनके हजार आलोचक हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि जब आनंद कुमार ने गरीब होनहारों के लिए सोचा, तब जातिगत दायरे में रहने वाले लोगों ने उनका मनोबल तोड़ने की हर कोशिश की। उन कोशिशों का फल पहली बार जब सुपर 30 के रिजल्ट के रूप में सामने आया, तब से आजतक आनंद कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बुधवार को जब पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा हुई, तब पूरी दुनिया को पता चला। लेकिन, आनंद कुमार के परिवार वालों को दोपहर में ही इसका पता था। इसके बावजूद कोई हो-हंगामा नहीं था, जबकि उनके छात्रों तक खबर पहुंचती तो उसी समय से जश्न शुरू हो गया होता। बुधवार रात जब घोषणा हुई तो आधी रात तक वह हर कॉल पर जवाब देते रहे। पड़ोस से लेकर भाई की ससुराल तक से लोग मिठाई लेकर पहुंचते रहे और वह हरेक का अभिवादन स्वीकारते रहे।
गणितज्ञ के साथ अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के संपादक भी
आनंद कुमार एक गणितज्ञ होने के साथ-साथ कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं। इनका बस एक ही जुनून था गरीब और काबिल छात्रों को आईआईटी-जेईई में प्रवेश के लिए तैयारी करवाना। पटना के यारपुर में रहने के बाद दशकों से जक्कनपुर में रह रहे हैं। जक्कनपुर में कोई पता मिले न मिले, किसी से पूछने पर आनंद कुमार का घर आसानी से मिल जाता है। गरीब बच्चों को पढ़ाकर काबिल बनाने के कारण गरीबों के मन में उनके लिए खास जगह हमेशा रही है। 50 वर्षीय आनंद कुमार की शुरुआती जिंदगी और शिक्षा वर्तमान से बिल्कुल अलग थी। उनके पिता पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। उनकी हालत और आनंद कुमार के संघर्ष को काफी हद तक लोग फिल्म में भी देख चुके हैं।
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