Home Bihar विधान परिषद चुनाव में पीके की जीत को कम कर मत देखिए, बहुत जल्द होगा बड़ा खेल!

विधान परिषद चुनाव में पीके की जीत को कम कर मत देखिए, बहुत जल्द होगा बड़ा खेल!

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विधान परिषद चुनाव में पीके की जीत को कम कर मत देखिए, बहुत जल्द होगा बड़ा खेल!

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पटना: बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर उर्फ पीके की एंट्री पहले से ही रही है। अभी बिना किसी पार्टी के वह वैकल्पिक राजनीति में जगह तलाश-बना रहे हैं। जन सुराज समर्थित एमएलसी उम्मीदवार अफाक अहमद की जीत अपने बूते पीके की पहली सफलता है। बिहार की पदयात्रा के बाद पीके राजनीतिक पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। पिछले पांच महीने से बिहार में घूम रहे प्रशांत किशोर की मेहनत रंग दिखाने लगी है। सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से पीके समर्थित अफाक अहमद एमएलसी चुन लिये गये हैं। यह पीके की पहली कामयाबी है। बिहार में एमएलसी की पांच सीटों के लिए चुनाव हुए थे। इनमें एक सीट पर बीजेपी तो दूसरी सीट पर पीके समर्थित उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। बाकी की तीन सीटें महागठबंधन के खाते में गयी हैं। पांच सीटों के लिए हुए एमएलसी चुनाव में 48 उम्मीदवार मैदान में थे। सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से पहले केदारनाथ पांडेय एमएलसी हुआ करते थे। इस सीट पर स्व. केदारनाथ पांडेय के पुत्र आनंद पुष्कर महागठबंधन समर्थित सीपीआई के उम्मीदवार थे।

जनसुराज यात्रा पर हैं प्रशांत किशोर

प्राशांत किशोर ने 2 अक्तूबर 2022 को बापू की भूमि माने जाने वाले पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांधी आश्रम से जन सुराज यात्रा शुरू की थी। उनकी यात्रा का पड़ाव फिलहाल सारण जिले में है। पूर्वी चंपारण, सारण, सीवान और गोपालगंज जिलों में उनकी यात्रा हो चुकी है। इस दौरान उन्होंने वैकल्पिक राजनीति पर लोगों से संवाद तो किया ही, साथ ही अफाक अहमद के लिए उन्होंने शिक्षक निर्वाचन सीट से सारण में जमीन भी तैयार की। पीके अपनी चुनावी रणनीति से बिहार और पश्चिम बंगाल में पहले भी कमाल दिखा चुके हैं। बंगाल में बीजेपी को आक्रामक प्रचार अभियान के बावजूद अगर कामयाबी नहीं मिली तो इसके पीछे पीके का ही दिमाग माना गया। जिन दिनों चुनावी सर्वेक्षणों में बीजेपी को सरकार बनाने की स्थिति में बताया जा रहा था, पीके डंके की चोट पर कहते थे कि बीजेपी डबल डिजिट से आगे नहीं बढ़ पाएगी। पीके का अनुमान सही निकला, बीजेपी 77 पर ही सिमट गयी।

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पीके के निशाने पर नीतीश-तेजस्वी

प्रशांत किशोर अपनी यात्रा में मौजूदा राजनीति की विफलता लोगों को समझाते रहे हैं। उनके निशाने पर पीएम नरेंद्र मोदी भी होते हैं। सर्वाधिक मुखालफत वह सीएम नीतीश कुमार और डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव की करते हैं। वह जोर देकर कहते हैं कि 32 साल में दो नेताओं ने बिहार को रसातल में पहुंचा दिया है। इनमें एक लालू को वह बताते हैं और दूसरा नीतीश को। संसदीय राजनीति से लालू के बाहर होने के कारण अब उनका निशाना बन रहे हैं उनके बेटे डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव। पीके कहते हैं कि लोग हमारी जन सुराज यात्रा पर होने वाले खर्च को लेकर सवाल करते हैं। इसका मेरे पास जवाब है, लेकिन तेजस्वी यादव के पास इसका क्या जवाब है कि हवाई जहाज में बर्थडे मनाने के लिए इतने पैसे उनके पास कहां से आ गये। यह सबको पता है कि मैं चुनावी रणनीतिकार हूं। जिनके लिए मैं चुनावी रणनीति का काम करते रहा, उनसे मुझे पैसे भी मिले हैं। लेकिन तेजस्वी के पास इतनी अधिक आमदनी का कोई स्रोत ही नहीं दिखता। बिहार के विकास पर किसी का ध्यान ही नहीं। किसी को कुर्सी की चिंता सताती रही है तो कोई अपने परिवार को राजनीति में स्थापित करने में लगा रहा। बिहार के विकास की बात बेमानी हो गयी।

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नीतीश के कभी करीबी रहे हैं पीके

प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के लिए चुनावी रणनीति का काम कर चुके हैं। नीतीश को इसका फायदा भी हुआ था। बाद में नीतीश ने प्रशांत किशोर को अपना सलाहकार बना लिया। उन्हें मंत्री स्तर की सुविधाएं मिलीं। कुछ दिन बाद पीके जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिये गये। उनकी सलाह के बिना नीतीश कभी कोई काम नहीं करते थे। बाद में रिश्ते बिगड़े तो जेडीयू ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। फिर वे बंगाल में ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार बन गये। ममता की जीत के बाद वे बिहार लौटे और राजनीति में प्रवेश का निर्णय लिया। किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के बजाय उन्होंने अपनी पार्टी बनाने की बात कही। पार्टी की घोषणा से पहले वे बिहार में जन सुराज यात्रा पूरी कर लेना चाहते हैं।

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रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

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