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अग्निपथ स्कीम को लेकर हुए हंगामे में ट्रेन को डिस्टर्ब करना ट्रेंड में रहा। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक में प्रदर्शनकारियों ने सबसे ज्यादा ट्रेनों को निशाने पर रखा। तीन दिनों के बवाल के दौरान सबसे ज्यादा बिहार में रेलगाड़ियों को आग के हवाले किया गया था। गोपालगंज से इसकी शुरुआत हुई थी। इसके बाद तो फैशन बन गया। चूंकि ट्रेनों में लंबी दूरी के यात्री होते हैं। काफी पहले से सफर की प्लानिंग करते हैं। अपनी जरूरतों के हिसाब से यात्रा तय करते हैं, ऐसे में उनकी परेशानियों को सुनने वाला कोई नहीं। यात्रियों ने बताया कि ये तो लॉकडाउन से भी ज्यादा खराब स्थिति है, हम तो फंस गए। घर पहुंचना काफी जरूरी है। मगर बीच रास्ते में ट्रेन को जला दिया गया। यहां से आगे जाने के लिए भी कोई गाड़ी नहीं मिल रही है। इस भीषण गर्मी में आखिर हम कहां जाएं। हम तो यहां पर फंस गए हैं। अधिकारी भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है।
अग्निपथ योजना का कर रहे विरोध
दरअसल, 2020 तक आर्मी अभ्यर्थियों की कई परीक्षाएं हुई थी। कोरोना की वजह से प्रॉसेस को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। बहाली का इंतजार कर रहे नौजवानों को लग रहा था कि अब कोरोना का असर कम हो रहा है तो इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। प्रदर्शन करनेवालों में ज्यादातर लड़कों से बात करने पर मालूम हुआ कि किसी का मेडिकल बाकी था तो किसी का रिटेन। ऐसे सभी अभ्यर्थियों की योग्यता एक झटके में रद्द कर दी गई। सरकार ने साफ-साफ बता दिया कि सिर्फ और सिर्फ अग्निपथ योजना के जरिए ही सेना में बहाली होगी।
स्थाई नौकरी होने का डर
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि आर्मी की ये नौकरी पहले स्थाई हुआ करती थी। मतलब सरकारी नौकरी का ख्वाब इससे नौजवान पूरा करते थे। नई स्कीम की तहत बताया गया कि अब चार साल की नौकरी होगी। इसमें सिर्फ 25 प्रतिशत अग्निवीरों को स्थाई किया जाएगा। 75 प्रतिशत चार साल बाद रिटायर हो जाएंगे। उनको पेंशन समेत बाकी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। बिहार जैसे राज्य में जहां ज्यादातर युवाओं का ख्वाब सरकारी नौकरी होता है, ऐसे में सपना टूटता देख नौजवान सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर गए।
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