Home Bihar लालू यादव के सिंगापुर से लौटने का बिहार में बेसब्री से इंतजार, RJD-JDU में सुधाकर और डील की बात पर अटकी सांस

लालू यादव के सिंगापुर से लौटने का बिहार में बेसब्री से इंतजार, RJD-JDU में सुधाकर और डील की बात पर अटकी सांस

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लालू यादव के सिंगापुर से लौटने का बिहार में बेसब्री से इंतजार, RJD-JDU में सुधाकर और डील की बात पर अटकी सांस

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Bihar News: लालू प्रसाद यादव को इसी महीने सिंगापुर से स्वदेश लौटना है। उनके आते ही कई बातों से पर्दा हट जाएगा। अव्वल तो यह तय होना है कि कुशवाहा जेडीयू से किनारे होंगे या नहीं और सुधाकर सिंह आरजेडी में ही रहेंगे या बाहर जाएंगे। हालांकि अभी तक इस पर सस्पेंस है।

पटना: बिहार में राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के आगमन का बेसब्री से इंतजार है। लालू पिछले कई महीने से सिंगापुर में हैं। इसी महीने उनके भारत लौटने का इंतजार है। महागठबंधन के घटक दलों में आरजेडी और जेडीयू को लालू के आते ही कई फैसलों की प्रतीक्षा है। इसे इन दलों के लोग सार्वजनिक तो नहीं कर रहे, लेकिन भीतर ही भीतर सबकी सांसें अटकी हैं। आरजेडी की सांस इसलिए अटकी है कि उसे अपने विधायक सुधाकर सिंह के बारे में फैसला लेना है। बार-बार आरजेडी की ओर से यही कहा गया है कि लालू प्रसाद आएंगे, तभी सुधाकर पर कोई फैसला होगा। जेडीयू की सांसें इसलिए टंगी हैं कि कहीं शर्तों के मुताबिक नीतीश कुमार को गद्दी न छोड़नी पड़े। विपक्ष में बैठी बीजेपी तो महागठबंधन में अनबन से आनंद लेने की फिराक में है।

कुशवाहा को किनारे कर जेडीयू ने गठबंधन धर्म निभाया

बागी नेता उपेंद्र कुशवाहा के प्रति सख्ती दिखा कर जेडीयू ने गठबंधन धर्म का पालन किया है। उपेंद्र कुशवाहा अपने नेता नीतीश कुमार के प्रति जितना तल्ख तेवर अपनाये हुए हैं, उससे कम आक्रोश उन्हें आरजेडी को लेकर नहीं है। पहले उन्होंने आरजेडी पर ही आरोप लगाया था कि उसके शीर्ष नेतृत्व की बीजेपी से मिलीभगत है। बाद में यही बात उन्होंने अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं के बारे में कही। हद तो तब हो गयी, जब उन्होंने जगदेव प्रसाद की जयंती समारोह में लालू-नीतीश राज में बिहार की दुर्गति की चर्चा कर दी। जाहिर है कि कुशवाहा के इस तरह के बोल-बयान से आरजेडी आहत हुआ होगा। जेडीयू ने आरजेडी की नाराजगी का ख्याल रखते हुए उपेंद्र कुशवाहा को किनारे कर उन्हें अपनी राजनीतिक मौत मरने के लिए छोड़ दिया है। कुशवाहा अब न पार्टी की बैठकों में शामिल हो रहे और न उन्हें कोई बुला ही रहा है। जेडीयू ने उनके पार्टी कार्यक्रमों पर रोक लगा दी है। कहने का मतलब यह कि आरजेडी की नाराजगी से बचने के लिए जेडीयू ने उपेंद्र कुशवाहा को अकेला छोड़ दिया है। पार्टी से उनके निष्कासन और विधान परिषद की सदस्यता रद्द करने की औपचारिकता भर बाकी है।
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सुधाकर सिंह पर लटकी है निष्कासन की तलवार

लालू के आने से सबसे बड़ा खतरा सुधाकर सिंह पर है। आरजेडी ने उन्हें शो कॉज दिया और उन्होंने जिस तरह का जवाब दिया है, वह तकनीकी रूप से सही होते हुए भी व्यावहारिक रूप से महागठबंधन धर्म के खिलाफ है। इसलिए कि सुधाकर ने उस आदमी के बारे में अपशब्द कहे, जो महागठबंधन का अभी सर्वमान्य नेता है और बिहार में महागठबंधन सरकार का मुखिया है। सुधाकर ने इसका तो ख्याल नहीं रखा, ऊपर से अपनी बात पर यह कह कर अड़े हैं कि उन्होंने जो कहा, वह पार्टी लाइन के खिलाफ नहीं है। साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी आरजेडी पर भी तोहमत लगा दिया कि अकेले उनको शो कॉज देकर ए टू जेड की अवधारणा को खत्म किया जा रहा है। लालू के बाद आरजेडी में दूसरे बड़े नेता तेजस्वी यादव ने सभी जातियों को आरजेडी से जोड़ने के लिए ए टू जेड का नारा दिया था। सुधाकर सिंह के तेवर देख कर ऐसा लग रहा है कि वे भी आर-पार के मूड में हैं। लालू पर एक नैतिक दबाव यह भी होगा कि जब जेडीयू ने उपेंद्र कुशवाहा को शंट कर दिया है तो उसे सुधाकर सिंह को लेकर भी यही अपेक्षा होगी।
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लोकसभा चुनाव के लिए लालू महागठबंधन को देंगे मंत्र

लालू प्रसाद किडनी ट्रांसप्लांट के बाद शारीरिक रूप से कितना सक्रिय रह पायेंगे, यह तो उन्हें ही पता होगा या डाक्टरों की सलाह पर यह निर्भर करता है, फिर भी सलाह तो दे ही सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी महागठबंधन को करनी हैं। सात दलों के महागठबंधन में लोकसभा के लिए सीटों का बंटवारा भी कठिन काम होगा। उपेंद्र कुशवाहा बार-बार जिस डील की बात कर रहे हैं, उसके बारे में भी स्थिति स्पष्ट करने की जिम्मेवारी लालू पर होगी। डील के बारे में यही कहा जाता है कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी का आहिस्ता-आहिस्ता आरजेडी में विलय कर देंगे और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राष्ट्रीय राजनीति में खुद को लगाएंगे। बिहार की गद्दी वे तेजस्वी यादव को सौंप देंगे। डील की इस बात में कितनी सच्चाई है, यह भी लालू के आने पर स्पष्ट होने की उम्मीद है। इसलिए कि नीतीश को अगर सच में राष्ट्रीय राजनीति का रुख करना है तो इसके लिए अब समय नहीं बचा है। वैसे नीतीश कुमार भी कह चुके हैं कि इस महीने होने वाले विधानसभा के बजट सत्र के बाद वह देश के दौरे पर निकलेंगे।
रिपोर्टः ओमप्रकाश अश्क

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