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मोतिहारी. जन सुराज यात्रा के 69वें दिन चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव रहे. उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव लालू यादव के बिना कुछ भी नहीं हैं. जिस चाचा-भतीजा के बारे में आप बात कर रहे हैं वे जनता के साथ सिर्फ धोखा कर रहे हैं. जब से ये चाचा-भतीजा सत्ता में आये तब से तीन उप-चुनाव हुए हैं, जिनमें दो में हार का सामना करना पड़ा है, एक चुनाव में जीत मिली, क्योंकि वह बाहुबली की सीट थी. उपचुनाव तो इनसे जीता नहीं जाता, ये मुझे चुनाव लड़ना क्या सिखाएंगे. 2015 में मैंने इनकी मदद नहीं की होती तो क्या महागठबंधन को जीत हासिल होती?
प्रशांत किशोर ने कहा कि पहली कैबिनेट की बैठक में तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरी का जो वादा किया था उसका क्या हुआ? राज्य की अर्थव्यवस्था की चर्चा करते हुए कहा कि सरकार की नाकामी की वजह से बिहार बर्बाद हो रहा है. आज बिहार के पैसों से गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उद्योग लगाया जा रहा है. बिहार के लोग उन राज्यों में जाकर मजदूरी कर रहे हैं. मतलब बिहार को दोगुनी मार झेलनी पड़ रही है. राज्यों में पूंजी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी बैंकों की है. हम और आप बैंकों में पैसे जमा करते हैं और बैंक लोगों को लोन देती है, ताकि रोजगार के अवसर पैदा हो सके. देश के स्तर पर क्रेडिट डिपोजिट का आंकड़ा 70 प्रतिशत है और बिहार में यह आंकड़ा पिछले 10 सालों से 25-40 प्रतिशत रहा है. लालू जी के जमाने में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से भी नीचे था. नीतीश जी के 17 साल के कार्यकाल में यह औसत 35 प्रतिशत है जो पिछले साल 40 प्रतिशत था. इसका मतलब है कि बिहार में जो भी पैसा बैंकों में लोग जमा करा रहे हैं, उसका केवल 40 फीसदी ही ऋण के तौर पर लोगों के लिए उपलब्ध है. जबकि विकसित राज्यों में 80 से 90 प्रतिशत तक बैंकों में जमा राशि ऋण के लिए उपलब्ध है.
राज्य की राजनीति को जातिगत कहने पर प्रशान्त किशोर ने कहा कि पिछले पांच साल के आंकड़ें बताते हैं कि बिहार की जनता जातिवाद से ऊपर उठकर वोट किया है. उन्होंने कहा कि 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु से उपजी हुई सहानुभूति के लहर में लोगों ने जातियों से ऊपर उठ कर वोट किया था. 1989 में बोफोर्स के मुद्दे पर देश में वीपी सिंह की सरकार बनी थी. 2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पूरे देश के लोगों ने भाजपा को वोट किया. 2019 में राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के नाम पर वोट किया. इतना ही नहीं पूरे बिहार के लोगों ने बीजेपी को फिर से सरकार बनाने का मौका दिया. इसलिए ये कहना गलत होगा कि बिहार के लोग केवल जातिगत आधार पर वोट करते हैं, चुनावों में जाति एक फैक्टर हो सकता है. लेकिन बिहार में भी ये उतना ही बड़ा फैक्टर है, जितना दूसरे राज्यों में है.
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टैग: बिहार की राजनीति, सीएम नीतीश कुमार, Prashant Kishor, तेजस्वी यादव
प्रथम प्रकाशित : 09 दिसंबर, 2022, 18:56 IST
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