Home Bihar राजनीतिक ‘रंजो गम’ के दौर से गुजर रहे नीतीश कुमार, विपक्षी एकता के बहाने सियासी प्रायश्चित की राह पर मुख्यमंत्री

राजनीतिक ‘रंजो गम’ के दौर से गुजर रहे नीतीश कुमार, विपक्षी एकता के बहाने सियासी प्रायश्चित की राह पर मुख्यमंत्री

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राजनीतिक ‘रंजो गम’ के दौर से गुजर रहे नीतीश कुमार, विपक्षी एकता के बहाने सियासी प्रायश्चित की राह पर मुख्यमंत्री

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पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों राष्ट्रीय राजनीति को लेकर काफी गंभीर हैं। अपने सियासी जीवन की अंतिम पारी में सत्ता के शीर्ष को चुनौती देने के मूड में हैं। बिहार की सत्ता संभाल रहे मुख्यमंत्री लगातार डेप्यूटी सीएम तेजस्वी यादव को अपनी सियासी विरासत सौंपने की बात कह रहे हैं। सियासी जानकारों की मानें, तो नीतीश कुमार इन दिनों राजनीतिक ‘रंजो गम’ के दौर से गुजर रहे हैं। जिस तेजस्वी यादव से भ्रष्टाचार के आरोपों पर सफाई मांगते-मांगते उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ दिया। अब वहीं तेजस्वी यादव नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे। जानकार ये भी कहते हैं कि नीतीश कुमार ने 2025 में तेजस्वी के नेतृत्व करने की बात कही है। यानी नीतीश कुमार 2025 तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। नीतीश कुमार क्या सच में सियासी प्रायश्चित के दौर से गुजर रहे हैं? क्या लालू यादव की तबीयत नासाज हो जाने के बाद नीतीश कुमार मानवता के नाते तेजस्वी के साथ खड़े हो गए हैं?

राजनीतिक ‘रंजो गम’

सवाल उठता है कि नीतीश कुमार कौन सी सियासी गलती का प्रायश्चित कर रहे हैं। उसका जवाब ढूंढने से पहले हम आपको 2017 के उस सावन महीने में लेकर चलना चाहते हैं। साल 2017 का वो सावन महीना था। प्रकृति ने धरती पर हरियाली की चादर बिखेर दी थी। इसी महीने में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़कर सबके चेहरे पर निराशा बिखेर दी थी। राज्यपाल को अपना इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो कहा था। वो आज भी जानने लायक है। इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि मैंने अभी राज्यपाल जी से मिलकर इस्तीफा सौंप दिया है। हमने महागठबंधन सरकार 20 महीने से ज्यादा समय तक चलाई। जितना संभव हुआ, हमने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए बिहार की जनता के समक्ष चुनाव के दौरान जिन बातों की चर्चा की, उसी के मुताबिक काम करने की कोशिश की। हमने बिहार में सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद रखी। बिहार में शराबबंदी लागू की गई। जो कुछ भी काम पहले से चल रहे थे, चाहे वह कृषि विकास का हो या बुनियादी विकास,सड़क, पुल आदि हो, बिजली हो, कल्याणकारी योजनाएं हों, सबके लिए हमने काम किया। जितना संभव है, हमने वह काम करने की पूरी कोशिश की। 20 महीने पूरे हुए, लेकिन अब जो चीजें उभरकर सामने आईं, अब उस माहौल में मेरे लिए काम करना संभव नहीं। अंतरात्मा की आवाज पर मैंने इस्तीफा दिया है। मैंने किसी का इस्तीफा नहीं मांगा था। तेजस्वी के मामले में राहुल गांधी से भी बात की। हमने अच्छा काम करने की कोशिश की।

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तेजस्वी को आगे बढ़ाने की अपील

जानकार मानते हैं कि 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से अलग होने के जो कारण बताए, वो बिल्कुल सुपाच्य नहीं थे। नीतीश कुमार को यदि भ्रष्टाचार और जांच से इतनी ही समस्या थी, तो तेजस्वी से ज्यादा लालू यादव के खिलाफ मामले चल रहे थे। उन्होंने किस मुंह से लालू के साथ गठबंधन किया और गलबहियां डालकर फोटों खिंचाए। नीतीश कुमार को नैतिकता की इतनी ही चिंता थी, तो वे राजद से हाथ ही नहीं मिलाते। नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तो तोड़ लिया, लेकिन उनका बीजेपी में जाना उन्हें राजनीतिक रूप से हल्का कर गया। बीजेपी उन पर पहले से ज्यादा हावी रहने लगी। उसकी पराकाष्ठा तो तब हो गई, जब 2020 में जेडीयू को बीजेपी से भी कम सीटें मिली। बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री तो बनाया, लेकिन प्रदेश बीजेपी नेता गठबंधन में रहते हुए राज्य सरकार पर हमला बोलने लगे।

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2017 में की गई गलती का एहसास

सियासी जानकार मानते हैं कि 2020 में कम सीट आने के बाद नीतीश कुमार को 2017 में की गई अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने उसके प्रायश्चित का प्लान बनाया और लालू परिवार से नजदीकी बढ़ा दी। अचानक नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देने वाले लालू यादव के दोनों पुत्र चुप हो गए। नीतीश ने राबड़ी आवास पर आयोजित दावते-ए-इफ्तार में भाग लिया। जानकारों की मानें, तो उस दिन नीतीश कुमार के चेहरे पर एक अलग तरह की चमक थी। वो चमक ईद के चांद की नहीं, लालू परिवार से दोबारा हुई सांठ-गांठ की थी। जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार ने इसी बहाने बीजेपी को सबक सिखाने के लिए राजद के साथ हाथ भी मिला लिया और अपने 2017 में लिये फैसले का प्रायश्चित भी कर लिया। अब नीतीश कुमार लगातार तेजस्वी को आगे बढ़ाने की बात कह रहे हैं। जानकार, तो यहां तक बता रहे हैं कि बहुत जल्द जेडीयू के राजद में विलय की घोषणा होने वाली है। उसके बाद बिहार की कमान अब तेजस्वी संभालेंगे।

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सियासी प्रायश्चित का दौर

बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान आयोजित महागठबंधन विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार ने ऐलान कर दिया कि 2025 के विधानसभा चुनाव में नेतृत्व तेजस्वी करेंगे। उन्होंने कह दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। नीतीश के इस ऐलान के मायने निकाले जा रहे हैं। जेडीयू की राजनीति को नजदीक से समझने वाले पार्टी के पूर्व वरिष्ठ प्रवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक नवल शर्मा कहते हैं कि देखिए नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव से इतना ही प्रेम है, तो तारीख की घोषणा कर दें। ये 2025 क्या हुआ? नवल शर्मा कहते हैं कि इसका मतलब 2025 तक नीतीश कुमार सीएम बने रहेंगे। उन्हें जब कमान ही सौंपनी है, तो वे अभी तेजस्वी को कमान सौंप दें। नवल शर्मा ये आशंका जताते हुए कहते हैं कि देखिए ये नीतीश कुमार की शातिर चाल है और कुछ नहीं। हालांकि, जानकार ये मानते हैं कि नीतीश कुमार अब सीधे विपक्षी एकता की कवायद में भिड़ेंगे। उन्होंने तेजस्वी को आगे करने की बात कहकर अपना प्रायश्चित कर लिया है। जानकार ये भी मानते हैं कि आप उनका बिहार विधानसभा के अंदर अचानक आए व्यवहार परिवर्तन को भी देख सकते हैं। बहुत जल्द हत्थे से उखड़ जा रहे हैं।

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मोदी के खिलाफ प्लानिंग

इससे पूर्व नीतीश कुमार ने नालंदा में डेंटल कॉलेज के उद्धाटन के मौके पर कहा कि हमारे तेजस्वी जी हैं। इनको हम बिल्कुल आगे बढ़ा रहे हैं। जितना करना था कर दिए। इनको और आगे करना है। आप लोग एक एक बात समझ ही रहे हैं। हम लोग कोशिश कर रहे हैं काम करने का। हमको सेवा करना था। कर लिए। कुढ़नी उपचुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने जेडीयू के खुले अधिवेशन में ये साफ कहा कि विपक्षी एकता की कवायद में उनका साथ नहीं देने वाले बाद में भुगतेंगे। उन्होंने यहां तक कह दिया कि हम तो कर रही रहे हैं। लोगों को एक मंच पर आने के लिए समझा रहे हैं। हमरा बतवा नहीं मानेंगे, तो हम क्या करेंगे। जानकारों की मानें, तो नीतीश का ये बयान उनके राजनीतिक ‘रंजो गम’ के दौर से गुजरने का ही गवाह है। नीतीश कुमार अब पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा बनाने पर तुले हुए हैं। इस दौरान वे बिहार की कमान पूरी तरह से तेजस्वी को सौंपकर आराम से दिल्ली की राजनीति करेंगे। चर्चा तो ये भी है कि नीतीश कुमार आने वाले दिनों में राज्यसभा जाएंगे और वहीं, यानी दिल्ली रहकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ रणनीति तैयार करेंगे।

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