Home Bihar मुख्यमंत्री ने गुस्से में खरीदी 400 दोनाली बंदूक, इस फैसले के बाद विधायकों ने दे दी थी सरकार गिराने की धमकी

मुख्यमंत्री ने गुस्से में खरीदी 400 दोनाली बंदूक, इस फैसले के बाद विधायकों ने दे दी थी सरकार गिराने की धमकी

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मुख्यमंत्री ने गुस्से में खरीदी 400 दोनाली बंदूक, इस फैसले के बाद विधायकों ने दे दी थी सरकार गिराने की धमकी

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पटना : बिहार सरकार में दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक के साथ विरोधी दल के नेता रहे कर्पूरी ठाकुर ने अपने शासनकाल में कई कठोर फैसले लिए। फरवरी 2014 में प्रकाशित बिहार विधान परिषद की पत्रिका ‘साक्ष्य’ में जननायक से जुड़े कई स्मरण को साझा किया गया है। जननायक को समर्पित ये अंक कई मायनों में संग्रहणीय है। ‘साक्ष्य’ में बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य गौतम सागर राणा ने कर्पूरी ठाकुर से जुड़े कई संस्मरणों का साझा किया है। गौतम सागर राणा कहते हैं कि उन्होंने पहली बार कर्पूरी ठाकुर को 1974 के आंदोलन के दौरान हजारीबाग में देखा। मोटी आवाज, मोटा कुर्ता, मोटा खादी का कोट और मोटा चश्मा पहने हुए थे। शाम की नुक्कड़ सभा में कर्पूरी जी का अहिंसा पर भाषण हुआ।

‘मानव जीव के प्रति चिंता’
गौतम सागर राणा बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर को इमरजेंसी वाले काल में हजारीबाग केंद्रीय कारागार में बंद कर दिया गया। इमरजेंसी समाप्त होने के बाद गौतम सागर राणा पहली बार बगोदर विधानसभा से निर्वाचित होते हैं। उसी समय कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं। गौतम सागर राणा को कर्पूरी ठाकुर अपना संसदीय सचिव नियुक्त करते हैं। गौतम सागर राणा ने बिहार विधान परिषद की ‘साक्ष्य’ पत्रिका को बताया है कि दलितों के नरसंहार से कर्पूरी ठाकुर काफी क्षुब्ध रहते। सुदूर क्षेत्रों में नरसंहार के पश्चात पुलिस और अन्य सुरक्षात्मक उपाय के पहुंचने में विलंब होने से दुःखी रहते थे। राणा बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर का विचार था कि दलितों को प्रशिक्षित कर उन्हें आत्मरक्षार्थ सरकार की ओर से हथियार दिया जाए। ताकि, दलित अपनी सुरक्षा कर सकें।

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‘400 बंदूकें खरीदी’
कर्पूरी ठाकुर ने दलितों की रक्षा के लिए अपनी योजना को लागू करने का विचार किया। उन्होंने इसी उद्देश्य से 400 दोनाली बंदूकें खरीदी। उसके बाद बिहार में हंगामा हो गया। उन्हें असमय सरकार गिरा देने की धमकी दी गई। उसके बाद ये योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। गौतम सागर राणा कहते हैं कि उस वक्त इस योजना के लागू होने से नक्सली हिंसा और अवैध हथियारों के विस्तार पर काफी हद तक रोक लग सकती थी। राणा कहते हैं कि कर्पूरी जी के मुख्यमंत्री रहते पक्ष-विपक्ष के विधायकों को को-ऑपरेटिव बनाकर सस्ते दर पर भूखंड आवंटन की प्लानिंग की गई। कर्पूरी ठाकुर इसके विरोध में उतर गए। उसके बाद पक्ष-विपक्ष के लगभग सभी विधायकों ने इसका समर्थन किया। उसके बाद उन्हें मजबूरन स्वीकृति देनी पड़ी।

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‘दलितों के लिए चिंतित रहे’
कर्पूरी ठाकुर ने अपने शासन काल में सामाजिक न्याय के तहत पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण, मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करना, शराब की बिक्री को बंद करना। ये सभी योजनाएं उन्होंने अपनी दृढ़ता से लागू की। संयुक्त बिहार की गरीब जनता के प्रति कथनी-करनी में वो पूरी तरह खरे उतरते रहे। उन्होंने अपने जीवन काल में परिवार, अपने बेटों को कोई राजनीतिक फायदा नहीं पहुंचने दिया। कर्पूरी ठाकुर के लिए कार्यकर्ता ही उनका परिवार बने रहे। गौतम सागर राणा ‘साक्ष्य’ को बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर विलक्षण प्रतिमा के धनी से। सुनने के अलावा, पढ़ना और उसका नोट्स बनाना एक साथ करते रहे। उन्होंने अनेकों बार अब्दुल बारी सिद्दीकी से कुछ सुनते, स्वयं पढ़ते और मुझे नोट्स देते। इस क्रम में उस नोट्स को संपादित भी करते थे।

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‘सादा जीवन- उच्च विचार’
गरीबी और अभाव को अपने जीवन में उतारकर सर्वहारा के लिए जीने वाले नेता का नाम रहा कर्पूरी ठाकुर। गौतम सागर राणा कहते हैं कि आज भी संयुक्त बिहार की धरती पर कर्पूरी जी के पांवों के निशान मौजूद हैं। ये बिहार में चिरकाल तक बने रहेंगे। गौतम सागर कहते हैं कि गरीबों, वंचितों के लिए हाड़तोड़ मेहनत करने वाले कर्पूरी ठाकुर सादा जीवन और उच्च विचार के सिद्धांतों पर चलते रहे। उनकी अध्ययनशीलता, हास-परिहास और विनोदप्रियता अव्वल दर्जे की रही। उनके सानिध्य का कोई भी नेता आज भी उन्हें याद कर भावुक हो जाता है।

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‘आत्म समीक्षा का विषय’
गौतम सागर राणा कहते हैं कि मैंने गांधी-लोहिया को नहीं देखा। सिर्फ पढ़ा-सुना है। इन दोनों व्यक्तित्वों और उनके विचार के मिश्रण का अक्स कर्पूरी ठाकुर में दिखता था। कर्पूरी ठाकुर का जीवन कबीर दास के दोहे की तरह रहा। जिसमें कबीर दास लिखते हैं। दास कबीर जतन से ओढ़े, जस की तस धर दीनी चदरिया। राणा साफ कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर के साथ रहे साथियों के लिए उनका जीवन और उनका आचार व्यवहार एक कसौटी है। उनका जीवन आज भी आत्म समीक्षा का विषय है।

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