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रिपोर्ट- आशीष कुमार
पश्चिम चंपारण. आप कितने सफल होंगे यह आपकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है. इसका जीता जागता उदाहरण है मुकेश…5 साल की उम्र में दोनों हाथ गंवा दिया. इलाज के बाद 2 साल खुद को संभालने में लगा. खुद को अंदर से मजबूत किया. फिर अपनी कहानी खुद लिखी. ग्रेजुएट होने के बाद आज दिव्यांग बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देते हैं. आइए जानते हैं मुकेश के संघर्ष और सफतला की कहानी.
गन्ना पेरने के दौरान गंवाए दोनों हाथ
जगदीशपुर थाना क्षेत्र के छोटे से गांव बनहौरा में रहने वाले दिव्यांग मुकेश ने बताया कि वो पैदाइशी दिव्यांग नहीं थे. दरअसल छुट्टियों में जब वो अपने मामा के घर घूमने गए थे. तब क्रशर मशीन में गन्ना पेरने के दौरान उसने अपने दोनों हाथ गंवा दिया.तब उनकी उम्र महज़ पांच वर्ष थी. किसी तरह उसे अस्पताल ले जाया गया. जहां उसका इलाज हुआ. इलाज के बाद तकरीबन 2 वर्षों तक मुकेश ने खुद को संभालने की कोशिश की और एक दिन ऐसा आया जब उसने खुद को इस जिद्दी दुनिया में लड़ने के काबिल बना लिया. हालांकि दुर्घटना के बाद उसकी पढ़ाई छूट गई. वो पूरी तरह से टूट चुका था लेकिन महीनों की कोशिश के बाद उसने कटे हाथों से ही लिखना शुरू कर दिया. अब अपनी उड़ान भरने के लिए प्रयासरत है.
दिव्यांग बच्चों को मुफ्त में देते हैं शिक्षा
बता दें कि मुकेश के पिता ददन साह एक छोटे स्तर के किसान हैं जो वर्तमान में कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसके बावजूद भी वो दिव्यांग बच्चों को अपने कोचिंग में मुफ्त में शिक्षा देते है. दरअसल मुकेश गांव के एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं. साथ ही घर पर एक छोटे से कोचिंग का संचालक भी हैं. जहां तकरीबन 40 बच्चे पढ़ने आते हैं. उन 40 बच्चों में से 7 बच्चे दिव्यांग हैं. जिन्हें मुफ्त में पढ़ाते है. मुकेश का कहना है कि मैं नहीं चाहता कि जितनी तकलीफ और यातनाएं मैंने अपनी अबतक की जिंदगी में झेली है. किसी और बच्चे को झेलनी पड़े. वर्तमान में मुकेश 21 वर्ष का है और इतिहास से स्नातक पूरा करने के बाद बीएड की पढ़ाई पूरी कर रहा है.
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प्रथम प्रकाशित : 13 नवंबर 2022, 10:54 AM IST
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