[ad_1]
आरजेडी से जेडीयू की नाराजगी को भुनाना चाहती है बीजेपी
बीजेपी के साथ बिहार में एलजेपी के दोनों धड़े एकमात्र सहयोगी हैं। केंद्रीय नेतृत्व छोटे और क्षेत्रीय दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव में सफलता के लिए जोड़ना चाहता है। जेडीयू उसका दमदार साथी रहा है। उसकी कमी जरूर बीजेपी को महसूस होती है। यही वजह है कि बीजेपी इस फिराक में है कि कैसे आरजेडी और जेडीयू के बीच दरार डाली जाए। चंद्रशेखर के बयान पर जेडीयू के तल्ख तेवर से बीजेपी उत्साहित है। इसे वह और हवा देने के फिराक में है। बयान पर सर्वाधिक मुखर जेडीयू नेता और कभी साथी रहे उपेंद्र कुशवाहा पर बीजेपी डोरे डाल रही है। कुशवाहा अपनी उपेक्षा से आहत हैं। एम्स में चेकअप के लिए भर्ती कुशवाहा से मिलने बीजेपी के नेताओं का जाना यही संकेत देता है।
आरजेडी-जेडीयू की मजबूरी है महागठबंधन में एका बनाए रखना
इधर आरजेडी और जेडीयू का शीर्ष नेतृत्व यह अच्छी तरह समझ रहा है कि महागठबंधन के बिखराव से उसे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। बिखराव से सर्वाधिक नुकसान 2024 के लोकसभा चुनाव में होगा। 2014 में अलग-अलग लड़कर दोनों दल अपना हस्र देख चुके हैं। उन्हें अकेले अपनी स्थिति का अंदाजा है। 2015 में असेंबली इलेक्शन साथ लड़ने का लाभ भी उन्हें अच्छी तरह पता है। इसलिए आपसी अनबन के बावजूद दोनों प्रमुख दल महागठबंधन की एका बनाए रखने की कोशिश करेंगे। चंद्रशेखर के बयान पर आपत्ति और सुधाकर के बयानों से तिलमिलाहट के बावजूद जेडीयू अलग होने की बात अभी सोच नहीं सकता।
नीतीश कुमार अपनी पाल बदलने वाली छवि से निजात चाहते हैं
नीतीश कुमार के सामने ऐसा कोई विकल्प नहीं है कि वे पाला बदल सकें। बीजेपी भले यह कहे कि नीतीश को वह अब नहीं अपनाएगी, लेकिन सच यह है कि वह साथियों की तलाश में है। नीतीश पलटू राम की अपनी छवि दुरुस्त करने के लिए अधिक उछलकूद करने से परहेज करेंगे। उनकी कुर्सी पर कोई खतरा भी कार्यकाल पूरा होने तक नहीं दिखता है। इसलिए कि उन्होंने पहले ही तेजस्वी यादव की मौजूदगी में 2025 के असेंबली इलेक्शन की लक्ष्मण रेखा खींच दी है। तेजस्वी की भी इसमें सहमति स्वीकृति है। इसलिए नीतीश को इधर-उधर ताक-झांक करने की अभी कोई मजबूरी भी नजर नहीं आती।
कुशवाहा के जाने या सुधाकर की बलि से एलायंस पर असर नहीं
महागठबंधन का शीर्ष नेतृत्व जानता है कि उपेंद्र कुशवाहा अगर बीजेपी में चले भी जाते हैं तो महागठबंधन की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला। इसलिए कि उनके जनाधार के बारे में सबको पता है। पिछले चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा को डेढ़-पौने दो प्रतिशत वोट ही मिले थे। इसी तरह सुधाकर सिंह को आरजेडी अगर शहीद करता है तो इसका भी कोई बड़ा नुकसान उसे नहीं उठाना पड़ेगा। आरजेडी को पता है कि बीजेपी से चुनाव लड़ कर सुधाकर हार गए थे। आरजेडी की वजह से ही वह विधायक बने हैं। यह अलग बात है कि सुधाकर सिंह को पार्टी से निकालने की कार्रवाई भी आरजेडी इतनी आसानी से नहीं करेगा।
सुधाकर सिंह ने कहा- किसी असंसदीय शब्द का इस्तेमाल नहीं किया
सुधाकर सिंह शो-काज नोटिस के बाद फिलवक्त चुप हैं। अलबत्ता उन्होंने यह जरूर कहा है कि उन्होंने नीतीश के लिए असंसदीय शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। विधानसभा में यह सिखाया जाता है कि कौन से शब्द संसदीय हैं और कौन असंसदीय। मैंने किसी असंसदीय शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। पार्टी ने शो काज दिया है तो वे उसका समय पर जवाब दे देंगे। उनके इस बयान से साफ है कि उन्होंने अपने बचाव की तरकीब ढूंढ निकाली है।
‘RJD के कुछ लोग सीधे तौर पर BJP को फायदा पहुंचा रहे’, उपेंद्र कुशवाहा का तगड़ा अटैक
कुशवाहा का पुनर्वास तो नीतीश कुमार की कृपा से ही हुआ है
जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के रहने, न रहने से जेडीयू की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। इसलिए कि 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी जमीन गंवा देने पर उन्होंने मजबूरी में जेडीयू के साथ अपनी पार्टी का विलय किया था। नीतीश कुमार की कृपा से ही उन्हें एमएलसी बनाया गया। पार्टी में मिले उच्च पद से वे भले अपने को बड़ा समझ रहे हों, लेकिन सच यही है कि उनके जनाधार के बारे में नीतीश को अच्छी तरह पता है। इसलिए अगर वे बीजेपी में जाते भी हैं तो जेडीयू की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।
(ओमप्रकाश अश्क)
[ad_2]
Source link