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Sitamarhi in History : बिहार के सीतामढ़ी जिले का सोनबरसा इलाका कभी एक विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था। इसी क्षेत्र के विधायक हुआ करते थे सिद्धेश्वर राय। कहा जाता है कि गरीबों को जमीन दिलाने के लिए उन्होंने एक मठ के महंत से अदावत ले ली। इसके बाद शुरू हो गया खूनी खेल…
विधायक रहते ही कर दी गई थी हत्या
विधायक सिद्धेश्वर राय सोनबरसा प्रखंड के जयनगर गांव के निवासी थे। उन्हें पहलवानी का बड़ा शौक था। यह शौक काफी पुराना था। वे हर वर्ष विभिन्न अवसरों पर कुश्ती प्रतियोगिता कराते थे और प्रतिभागियों को हर संभव पुरस्कृत भी करते थे। सामाजिक कार्यों में वे खूब दिलचस्पी लेते थे। इसके चलते सिद्धेश्वर राय जननेता बन गए थे। उनकी ख्याति क्षेत्र में हर वर्ग के लोगों में थी। वे 1957 में सोनबरसा विधान सभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और पहली बार में ही विधायक चुन लिए गए थे।
ऐसे शुरू हुई थी विधायक की अदावत
विधायक बनने के कुछ माह बाद ही सिद्धेश्वर राय की दोस्तियां के कबीर मठ के महंत जनार्दन गोसाई से अदावत शुरू हो गई। वे चाहते थे कि मठ के पास काफी जमीन है और उसमें से गांव के कुछ गरीबों को झोपड़ी बनाने के लिए मिले। यह बात महंत को नागवार गुजरी थी। इस मसले को लेकर दोनों आमने-सामने थे। कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था। मामला तब और गंभीर बन गया, जब वर्ष 1959 में सिद्धेश्वर राय की हत्या कर दी गई। हत्या कराने का आरोप महंत जनार्दन गोसाई पर लगा था। क्षेत्र में काफी तनाव उत्पन्न हो गया था।
हत्या के आरोपी महंत की भी हत्या
विधायक की हत्या ने कचहरीपुर के राजन राय को गहरा सदमा पहुंचाया और उन्हें अंदर से झकझोर कर रख दिया था। उस दौरान राजन राय एक तरह से विचलित हो गए थे। उनके दिलों दिमाग में सिर्फ और सिर्फ महंत जी का चेहरा घूमता था। राजन राय में बदले की भावना उत्पन्न हो गई थी। कहा जाता है कि घटना के बाद महंत जी वैशाली के सोनपुर मठ में छिप गए थे। राजन राय ने सोनपुर जाकर महंत जी की हत्या कर विधायक की हत्या का बदला लिया था। इस मामले में राजन राय को 20 साल जेल की सजा मिली थी। फिलहाल सजा काटकर राय रिहा हो चुके हैं। लेकिन उनके दिमाग में उक्त घटना आज भी ताजा है। राजन राय से बातचीत से लगा कि उन्हें महंत की हत्या का आज भी कोई पश्चाताप नहीं है। सोनबरसा निवासी सह पत्रकार वीरेंद्र यादव ने बताया कि सिद्धेश्वर राय की हत्या के बाद वर्ष 1959 में उपचुनाव हुआ, जिसमें उनके पुत्र राम नंदन राय जीते थे। फिर 1962 में चुनाव हुआ, जिसमें सिद्धेश्वर राय के छोटे पुत्र राज नंदन राय को विधायक बनने का मौका मिला था। बड़े भाई राम नंदन राय का निधन हो चुका है।
रिपोर्ट- अमरेंद्र कुमार
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