Home Bihar बीजेपी क्यों है उपेंद्र कुशवाहा को लपकने की ताक में? असल वजह छिपी है 2014 लोकसभा चुनाव में

बीजेपी क्यों है उपेंद्र कुशवाहा को लपकने की ताक में? असल वजह छिपी है 2014 लोकसभा चुनाव में

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बीजेपी क्यों है उपेंद्र कुशवाहा को लपकने की ताक में? असल वजह छिपी है 2014 लोकसभा चुनाव में

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रिपोर्ट द्वारा रमाकांत चंदन | द्वारा संपादित ऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 23 जनवरी 2023, सुबह 10:36 बजे

Bihar Political News in Hindi: बिहार की राजनीति में एक बात हमेशा तय होती है कि किसी के लिए भी किसी भी पार्टी के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। यूं समझिए कि दोस्ती और दुश्मनी की कोई मियाद नहीं होती। कुछ ऐसी ही बात फिलहाल बीजेपी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ दिख रही है।

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पटना: भारतीय जनता पार्टी की निगाहों में अब लक्ष्य सीधा है, जो है लोकसभा चुनाव 2024 में नरेंद्र मोदी के सर पर फिर से प्रधानमंत्री का ताज। इस प्रतिबद्धता की जो बैचनी है उसकी गिरह बिहार में खुलती है। यही वजह है कि पार्टी को मजबूत कर जाने वाले हर नामवर नेताओं पर भाजपा के रणनीतिकारों की नजर है। यूं ही नहीं भाजपा के शीर्ष नेताओं की जुबां से उपेंद्र कुशवाहा का नाम उतर नहीं पा रहा है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के सी आर चंद्रशेखर की रैली के बाद एक थर्ड फ्रंट का बनते दिखना भी भाजपाइयों के लिए परेशानी का सबब बन गया। और इस रैली से वंचित रहे बिहार के विपक्ष को देखते हुए उनकी उम्मीद बढ़ने लगी है। यह उम्मीद खासकर उन राजनीतिक दलों के नेताओं की तरफ जाती दिखती है जो कभी एनडीए की छतरी तले थे। इस उम्मीद का एक सिरा उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, जीतनराम मांझी हम और मुकेश सहनी की वीआईपी से भी बंध रहा है।

संजय जायसवाल और तारकिशोर प्रसाद की जुबान पर उपेंद्र क्यों?

राजनीति और गठबंधन की मजबूरी हर नेता को पुराने समीकरण याद दिला ही देती है। पूर्व उप मुख्य मंत्री तारकिशोर प्रसाद के इस बयान से इस बात को समझा जा सकता है जब उन्होंने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा भाजपा में आना चाहें तो उनकी एंट्री केंद्रीय नेताओं की सहमति से हो सकती है। यहां तक कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने भी इशारों में कहा कि जो भी लोग 1990 से 2005 तक बिहार को जंगल राज से मुक्त कराने में लगे रहे, वो कभी भी भाजपा में आ सकते हैं, उनके लिए रास्ता खुला है। मतलब साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति का एक सिरा उपेंद्र कुशवाहा की तरफ भी जा रहा है।
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आखिर क्यों भाजपा की नजर है कुशवाहा पर?

भले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी 2020 के विधानसभा चुनाव में कोई सीट जीत नहीं सकी। लेकिन उस चुनाव में यह तो दिखा कि कई विधान सभा क्षेत्र में उसके उम्मीदवार 5,000 से 15000 तक वोट प्राप्त कर पाए। यही वजह भी है कि नीतीश कुमार ने भी बहुत ही सहज भाव से उपेंद्र कुशवाहा को एक बार फिर स्वीकार लिया। और उपेंद्र कुशवाहा ने भी आगे बढ़ कर अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए आरएलएसपी का जदयू में विलय कर डाला। भाजपा के रणनीतिकार इसी वोट बैंक को अपनी ओर करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। यह अलग बात है कि कि 2019 के लोकसभा में कुशवाहा को एक भी सीट नहीं मिली। लेकिन भाजपा के पास 2014 लोकसभा की भी बानगी है कि उपेंद्र कुशवाहा ने तब 100 की स्ट्राइक रेट से तीन सीटें जीतीं थीं।

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