Home Bihar बीजेपी के अंदाज में ही महागठबंधन की जवाब देने की तैयारी, हिंदुत्व के बदले एमवाई समीकरण का अस्त्र

बीजेपी के अंदाज में ही महागठबंधन की जवाब देने की तैयारी, हिंदुत्व के बदले एमवाई समीकरण का अस्त्र

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बीजेपी के अंदाज में ही महागठबंधन की जवाब देने की तैयारी, हिंदुत्व के बदले एमवाई समीकरण का अस्त्र

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के द्वारा रिपोर्ट किया गया रमाकांत चंदन | द्वारा संपादित ऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 18 फरवरी 2023, दोपहर 2:39 बजे

Bihar Politics : बिहार की राजनीति में 25 फरवरी का दिन अहम साबित होने जा रहा है। इस दिन न सिर्फ अमित शाह बिहार आ रहे हैं बल्कि महागठबंधन के सभी दल भी एक साथ बीजेपी को चुनौती देने के लिए उतरेंगे। क्या है पूर्णिया में महागठबंधन की रैली और अमित शाह के कार्यक्रमों के मायने, पढ़िए यहां…

नितीश तहज़ावी अगस्त 2022 शपथ
पटना: आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदुत्व की गोलबंदी का मकसद लिए सीमांचल से चुनावी शंखनाद 23 और 24 सितंबर को किया था। महागठबंधन उसी अंदाज में और उसी तेवर से भाजपा को जवाब देने की तैयारी कर रही है। इलाका भी सीमांचल ही है । महागठबंधन ने भाजपा को उसी की रणनीति से परास्त करने केलिए 25 फरवरी को पूर्णियां में रैली का आह्वान किया है। दरअसल राजद इस रैली को पहले करना चाहती थी मगर नीतीश कुमार की समाधान यात्रा को ले कर तारीख को 25 फरवरी तक खिसकाया गया। यह एक संयोग है कि इसी दिन भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह भी बिहार आने वाले हैं। पर उनके आने की वजह है स्वामी सहजानंद की जयंती समारोह जो भाजपा पटना के बापू सभागार में ममाने जा राही है।

क्या है महागठबंधन की रणनीति?

जातीय चेतना के आधार पर महागठबंधन की राजनीति की बात करें तो इधर हुए उपचुनाव में राजद के एमवाई समीकरण की धार कुंद हुई है। इसकी दो वजहे हैं, एक तो नरेंद्र मोदी का नारा सबका साथ सबका विकास ने इस समीकरण को कमजोर किया । दूसरा देश की सुरक्षा और संस्कृति की सुरक्षा के नाम पर हुई गोलबंदी ने भी एमवाई समीकरण को नुकसान पहुंचाया। तीसरी वजह यह है कि सीमांचल को चुने जाने के पीछे एक मकसद यह भी है कि ओवैसी फैक्टर की काट निकाली जा सके। पिछले चुनाव और उपचुनावों में ओवैसी ने महागठबंधन को ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।
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लालू-नीतीश की जोड़ी से अतिपिछड़ा पिछड़ा समीकरण दरका

पिछले दिनों हुए उपचुनाव में ऐसा कुढ़नी, मोकामा, गोपालगंज में भी देखने को मिला कि अतिपिछड़ा और पिछड़ा वोट दरक गया है। इसके पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि लगातार 15 साल नीतीश कुमार माइनस यादव पिछड़ों की राजनीति करते रहे हैं। यह राजनीति लगभग डेढ़ दशक में इतनी गहरी हो गई है कि केवल नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के एक साथ होने से वह दूरी कम नहीं होगी। इसलिए भी एक मंच पर दिखने को महागठबंधन ने यह रणनीति बनाई है। महागठबंधन के भीतरखाने से यह खबर आ रही है कि इस तरह की रैली वर्ष 2024 के पहले सभी जिलों में की जाएगी ताकि एमवाई और पिछड़ों-अतिपिछड़ों की राजनीति को पूरे तौर पर महागठबंधन के प्लेटफार्म पर उतारा जा सके।
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बिहार यात्रा और रैलियों का राज्य

बिहार में सियासी खेला चरम पर है। पार्टियां अपनी नीतियों को रैली और यात्रा के जरिए बताने निकल पड़ी है। लगभग तमाम दल यात्राओं के जरिए जनता की नब्ज टटोल रहे हैं।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समाधान यात्रा का समापन हो गया है। हम प्रमुख जीतनराम मांझी भी गरीब संपर्क यात्रा पर निकले हैं। कांग्रेस भी हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा के जरिये जनता को साथ जोड़ने की कवायद में है। माले भी महाधिवेशन के जरिये शक्ति प्रदर्शन दिखाने की कोशिश में है और इन सब के बीच महागठबंधन के ये तमाम साथी एक मंच पर साथ आने वाले हैं।अब तक अलग-अलग यात्रा पर निकले महागठबंधन के ये तमाम घटक दल अब 25 फरवरी को एक मंच पर आकर भाजपा को चुनौती देन के मूड में आ चुके हैं। लोकसभा चुनाव से पहले पहली बार नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी, तेजस्वी यादव और माले के तमाम नेता पूर्णिया में एक मंच पर दिखने वाले हैं। 25 फरवरी को होने वाली इस रैली पर विशेष तौर पर भाजपा की नजर है। इसी दिन गृहमंत्री अमित शाह भी बिहार आ रहे हैं।

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