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2019 में 50 प्रतिशत से अधिक वोट थे एनडीए के
2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम का आकलन करें तो पता चलता है कि उस वक्त के एनडीए को 50 फीसदी से अधिक वोट आए थे। इसमें बड़ी भूमिका जेडीयू की भी थी, क्योंकि 2019 में जेडीयू भी एनडीए का हिस्सा था। उसे करीब 22 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 8 तो आरजेडी को 15 प्रतिशत वोट आए थे। अभी तीनों दल महागठबंधन का हिस्सा हैं। यानी अकेले 45 प्रतिशत वोट शेयर इनके पास है। वाम दलों और अन्य छोटे दलों के कुछ वोट भी जरूर होंगे। लोकसभा चुनाव में मिले मतों को आधार मानें तो तकरीबन 50 प्रतिशत वोट अभी महागठबंधन के पाले में हैं। यानी 2019 में जो स्थिति एनडीए की थी, वही अब महागठबंधन की है। एनडीए की बात करें तो बीजेपी को 23.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। एनडीए के साझीदार लोक जनशक्ति पार्टी के पक्ष में 7.9 प्रतिशत पड़े थे। यानी आज की तारीख में एनडीए के खाते में अभी 30-31 प्रतिशत वोट ही दिखते हैं।
2019 में बीजेपी को मिले थे 23.6 प्रतिशत वोट
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 23.6 प्रतिशत वोट मिले थे। उसके सभी 17 उम्मीदवार जीत गए थे। जेडीयू भी 17 सीटों पर लड़ा था, लेकिन उसके 16 उम्मीदवार ही जीते। जेडीयू का वोट शेयर 21.8 प्रतिशत था। लोजपा ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 7.9 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उसकी सभी सीटें निकल गयी थीं। हालांकि वोट शेयर के मामले में लोजपा चौथे नंबर पर थी। तीसरे नंबर पर आरजेडी था। एनडीए में बीजेपी और लोजपा के अलावा जेडीयू भी साथ था। समेकित रूप से एनडीए को 53.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।
RJD को लोजपा से अधिक वोट, पर एक भी सीट नहीं मिली
महागठबंधन की बात करें तो आरजेडी को 15.4 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 7.7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ एक सीट मिली थी, पर आरजेडी का खाता ही नहीं खुला। इस तरह बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में 39 पर एनडीए ने कब्जा कर लिया था। महागठबंधन की इन दो पार्टियों की तरह ही बाकी घटक दलों का भी प्रदर्शन खराब रहा। इस बार आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस, वाम दल और हम (से) समेत सात दल साथ हैं। आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के ही कुल वोट शेयर 2019 के हिसाब से 44-45 प्रतिशत होते हैं। अन्य सहयोगी दलों के मतों को शामिल कर लें तो यह करीब 50 प्रतिशत या थोड़ा अधिक होता है।
बीजेपी को जोड़-तोड़ और इलेक्शन मैनेजमेंट का सहारा
प्रथमदृष्टया महागठबंधन बिहार में एनडीए पर भारी दिखता है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो 2019 के नतीजों के उलट इस बार परिणाम आ सकता है। चुनावी सर्वेक्षण भी इसी ओर इशारा करते आ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को अपने आधार वोट के अलावा इलेक्शन मैनेजमेंट से ही करिश्मा की गुंजाइश दिखती है। बीजेपी पहली कोशिश यह करेगी कि छोटे दलों को किसी भी तरह अपने पाले में करे। दूसरी कोशिश बीजेपी यह कर सकती है कि महागठबंधन के वोट बैंक में कैसे सेंध लगायी जाये। उपेंद्र कुशवाहा ने जब जेडीयू छोड़ नयी पार्टी बनायी तो वे 24 घंटे के अंदर ही बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल से मिले। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि नीतीश के वोट काटने में कुशवाहा जरूर बीजेपी की मदद करेंगे। नीतीश के स्वजातीय और जेडीयू कोटे से केंद्र में मंत्री रहे आरसीपी सिंह के जरिये भी बीजेपी जेडीयू के वोट काटने की कोशिश जरूर करेगी। चिराग पासवान को पहले से ही बीजेपी ने Y श्रेणी की सुविधा देकर डोरे डाल दिये हैं। वीआईपी के मुकेश सहनी को भी Z कैटगरी की सेक्योरिटी देकर बीजेपी ने उन पर पाशा फेंक दिया है। हम (से) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को बीजेपी पटाने में लगी है। यह बात खुद नीतीश कुमार ने कही है और सफाई में जीतन राम मांझी ने मां की कसम खायी है। इस तरह बीजेपी ने छोटे और नीतीश से नाराज चल रहे दलों और नेताओं को अपने पाले में करने का प्रयास शुरू कर दिया है। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने अगर आरजेडी के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा दी तो यह भी बीजेपी के हक में ही जाएगा।
बीजेपी के पास भ्रष्टाचार सबसे बड़ा हथियार
देश भर में जिस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां एक्टिव हुई हैं, लालू यादव के परिवार पर सीबीआई की चार्जशीट उसी का हिस्सा मानी जा रही है। लालू परिवार तो पहले से ही जांच एजेंसियों की रडार पर है, इसलिए यह कहना भी तर्कसंगत नहीं होगा कि । आरजेडी नेता तेजस्वी महागठबंधन की बढ़ती ताकत देख कर केंद्र की बीजेपी सरकार ऐसा कदम उठा रही है। लालू परिवार के खिलाफ पहले से जांच एजेंसियों के पास मामले पड़े हैं। लालू प्रसाद यादव की सजा बढ़ाने के लिए सीबीआई अभी से सक्रिय हो गयी है। रोलवे में नौकरी के नाम पर जमीन मामले में तो समन ही जारी हो गया है। नीतीश कुमार पर सीधे करप्शन का कोई मामला नहीं बनता। उनके परिवार के किसी सदस्य पर भी करप्शन का कोई आरोप नहीं है। इसलिए उन पर भ्रष्टाचार के मामलों की आशंका नहीं है। लेकिन लालू परिवार पर खतरे की तलवार तो लटक ही रही है। नीतीश कुमार बार-बार यह कहते हैं कि करप्शन से कोई समझौता नहीं करेंगे। करप्शन के चार्ज जब तेजस्वी यादव पर लगे थे तो उन्होंने आरजेडी से नाता तोड़ने में तनिक भी देर नहीं की थी। इसलिए यह देखना भी दिलचस्प होगा कि अगर तेजस्वी पर फिर कोई आरोप लगता है या पुराने मामलों में जांच आगे बढ़ती है तो वे क्या करेंगे। हालांकि इस बार उनके आरजेडी का साथ छोड़ने की संभावना नहीं के बराबर है। इसलिए कि बीजेपी ने उनके लिए दरवाजे बंद कर दिये हैं और तेजस्वी पर लगे आरोपों को जान-समझ कर ही वे दोबारा आरजेडी के साथ आये हैं।
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