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संघ प्रमुख मलखाचक पहुंचकर स्वतंत्रता सेनानियों को करेंगे याद।
– फोटो : अमर उजाला
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत चार दिवसीय प्रवास लिए शुक्रवार शाम पटना आए। शनिवार सुबह बक्सर में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निकल गए। लेकिन, उनका रविवार का कार्यक्रम चर्चा में है। वह आजादी के बाद से धीरे-धीरे गुमनाम होते गए ‘मलखाचक’ जा रहे हैं। लोग चौंक कर जानना चाह रहे कि आखिर ‘मलखाचक’ क्यों? बिहार की आज की आम जनता मलखाचक को भले नहीं या कम जानती हो, लेकिन एक दौर था जब अंग्रेज इस जगह पर बाकायदा रिसर्च करते थे। वह समझ नहीं पाते थे कि यह मलखाचक हिंसात्मक आंदोलन का गढ़ है या अहिंसात्मक आंदोलन की धुरी या फिर रचनात्मक कार्यों के लिए इसे जानें। इस जगह महात्मा गांधी और पंडित नेहरू का भी आना-जाना था और भगत सिंह भी यहां की सक्रियता के सिरमौर थे। रविवार को यहां भागवत पहुंच रहे हैं। वह यहां उन 350 स्वतंत्रता सेनानियों को याद करेंगे, जो आजतक गुमनाम या अंग्रेजों की फाइलों में लुटेरे के रूप में बदनाम थे। भागवत यहां 1942 अगस्त क्रांति के शहीद श्रीनारायण सिंह की प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे और वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र कुमार की पुस्तक ‘स्वतंत्रता आंदोलन की बिखरी कड़ियां’ का लोकार्पण भी करेंगे।
राजस्थान से आए मलखा कुंवर ने बसाया था मलखाचक
राजस्थान से पैदल चलते हुए मलखा कुंवर आरा होकर दानापुर पहुंचे थे और वहां से गंगा नदी को तैरते हुए कसमर पहुंचे थे। कसमर के नवाब को हराकर मलखा कुंवर ने अपने 8 भाइयों को यहां के एक-एक गांव में बसाया। खुद जहां बसे, उसका नाम आज छपरा जिले का मलखाचक है। मलखाचक के महेंद्र सिंह बताते हैं कि महात्मा गांधी 1924, 1925 और 1936 में यहां आए थे। इस गांख के रचनाकार मनोरंजन प्रसाद सिंह की रचना ‘फिरंगिया’ सुनकर बापू भी द्रवित हो उठे थे। महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ में इस गांव की रचनात्मकता की प्रशंसा की थी। उन्होंने लिखा था कि कैसे यहां के लोग खादी के जरिए सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ देश के लिए जन-जागरण की मुहिम चला रहे हैं। वह बताते हैं कि गांव के दक्षिण गंगा नदी के बलुआही कछार पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों ने रिवाल्वर से निशानेबाजी का अभ्यास किया था। भारत छोड़ो आंदोलन में मलखाचक के श्रीनारायण सिंह और हरिनंदन प्रसाद ने शहादत दी थी। संघ प्रमुख भागवत रविवार को श्रीनारायण सिंह की प्रतिमा का अनावरण भी कर रहे हैं।
मलखाचक की ऐश्वर्य गाथाएं, जो कई किताबों में हैं दर्ज
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले 1856 में वीर कुंवर सिंह के विश्वासी राम गोविंद सिंह उर्फ चचवा ने सोनपुर मेले में जालिम सिंह, जुझार सिंह और झुम्मन तुरहा के साथ मिल स्वतंत्रता आंदोलन में खुद को झोंकने का प्रण लिया था। राम गोविंद सिंह मलखाचक के ही थे।
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असहयोग आंदोलन में स्वयं को न्योछावर करने के लिए अंग्रेजी सरकार के दारोगा पद से इस्तीफा देने वाले पहले सरकारी कर्मी रामानंद सिंह भी मलखाचक के ही थे। उनपर अंग्रेजों ने इतने जुल्म किए कि मौत के समय शरीर पर 180 घावों के निशान थे।
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असहयोग आंदोलन में इस गांव के बसंत लाल साह ने अपनी दुकान से हजारों विदेशी कपड़े निकालकर उसकी होलिका जलाई थी। इसपर केस भी हुआ और जेल भी भेज दिया गया। नमक सत्याग्रह में भी इन्हें सश्रम कारावास की सजा मिली थी।
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मलखाचक के क्रांतिकारी रामदेनी सिंह बिहारी मूल के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी। इससे पहले बंगाली मूल के बिहारी खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। हाजीपुर स्टेशन पर क्रांतिकारियों के लिए डकैती का दोषी मानते हुए रामदेनी सिंह को फांसी की सजा दी गई थी।
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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को जिस गद्दार फणींद्र घोष की गवाही के कारण फांसी की सजा हुई थी, उसकी हत्या बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह ने की थी। बैकुंठ शुक्ल को मलखाचक ने लंबे समय तक छिपाए रखा।
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बताया जाता है कि गुलामी के दौर में सीआईडी के सब-इंस्पेक्टर वेदानंद झा की मधुबनी में हत्या की योजना मलखाचक में ही सूरज नारायण सिंह ने बनाई थी।
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मलखाचक की 11 साल की सरस्वती देवी और 14 साल की शारदा देवी ने दिघवारा थाने पर तिरंगा फहराया था, जिसपर अंग्रेजों ने इन्हें जेल की लंबी सजा दी थी।
संघ प्रमुख का बिहार प्रवास
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शनिवार को बक्सर में प्रख्यात संत स्वर्गीय मामाजी के पुण्य स्मरण में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे।
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रविवार को छपरा के मलखाचक में तीन कार्यक्रमों में रहेंगे। जासा सिंह मैदान में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों का सम्मान करेंगे।
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सोमवार को दरभंगा में संघ कार्यकर्ताओं के एकत्रीकरण को संबोधित करेंगे।
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