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विश्वप्रिया ने कहा कि आर्सेनिक दूषित पेयजल का उपयोग त्वचा, फेफड़े, मूत्राशय और गुर्दे के कैंसर के साथ-साथ कई अन्य प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों का प्रमुख कारण है।’ चूंकि भागलपुर का चयन बिहार की स्मार्ट सिटी के लिए किया गया था इसीलिए इसके पीने योग्य पानी का वास्तविक समय पर आकलन अनिवार्य था। बिहार सरकार के कहने पर जीएसआई ने गंगा के तट पर (पटना से भागलपुर तक) आर्सेनिक के विशेष संदर्भ में पानी की गुणवत्ता की वैज्ञानिक जांच की।
पढ़िए क्या आया है रिपोर्ट में
रिपोर्ट के मुताबिक ‘गंगा के उत्तरी और दक्षिणी तट पर लगभग 900 वर्ग किमी को कवर किया गया था, जहां पानी में आर्सेनिक की काफी ज्यादा मात्रा के संकेत मिले। उत्तरी तट के लगभग 41 प्रतिशत नमूने और दक्षिणी तट के 26 प्रतिशत नमूने आर्सेनिक से दूषित पाए गए।’
विश्वप्रिया ने आगे बताया कि जांच की प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में हैंडपंप के माध्यम से निकाले गए भूजल के उपयोग के प्रति आगाह किया गया है और उन्हें पीने के प्रयोजनों के लिए दूषित पानी के उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में भी बताया गया है। उन्होंने कहा कि सितंबर में जीएसआई की स्टडी रिपोर्ट तैयार की जाएगी और राज्य सरकार से साझा की जाएगी।
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