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बिहार : नीतीश कुमार की सभा में पहली बार कुर्सियां नहीं चलीं, भाजपा खुश है पर इतिहास देख लीजिए

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बिहार : नीतीश कुमार की सभा में पहली बार कुर्सियां नहीं चलीं, भाजपा खुश है पर इतिहास देख लीजिए

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मुजफ्फरपुर : ‘पाला’ बदलने के बाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी सभा को संबोधित करने कुढ़नी पहुंचे थे। यहां पर सोमवार को वोटिंग है। मगर उनका ‘स्वागत’ कुछ नौजवानों ने कुर्सियां फेंक कर कीं। बिहार बीजेपी इससे खुश है। उसे लगता है कि नीतीश कुमार पर उसके जुबानी हमले का असर हो रहा है। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है कि नीतीश की सभा में कुर्सियां चलीं हों। इससे पहले भी कई कुर्सियां अपना अस्तित्व खो चुकीं हैं। मगर नीतीश कुमार इन सब वायकों से ज्यादा विचलित नहीं होते हैं। कई बार को मंच से ही कुर्सी फेंकने वालों को हड़का चुके हैं। अपने हिसाब से अपनी उंगलियों पर सत्ता को नचाने में उनका कोई शानी नहीं है।

मुजफ्फरपुर के कुढ़नी में क्यों चली कुर्सियां?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुक्रवार को कुढ़नी उपचुनाव में प्रचार करने के लिए उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ केरमा हाई स्कूल मैदान पहुंचे। चुनावी सभा में सीएम नीतीश को सुनने आए युवाओं के बीच जमकर मारपीट होती रही। यहां पर कुर्सियां भी खूब चलीं। बीच-बीच में हाथापाई भी होती रही। इस घटना के कई वीडियो अब भी सोशल मीडिया पर वायरल हैं। मामला सीएम की सभा का था तो पुलिस कर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभाला। कुढ़नी में जेडीयू की टिकट पर मनोज कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। इसी सभा में CTET-BTET अभ्यर्थी और RJD-JDU के समर्थकों के बीच भिड़ंत हो गई। सीएम नीतीश और डेप्युटी सीएम तेजस्वी के मंच पर आते ही CTET-BTET अभ्यर्थी नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन की डिमांड करने लगे। साथ में तख्तियां भी लाए थे। तेजस्वी के बाद जब सीएम नीतीश ने बोलना शुरू किया तो कुर्सियां चलने लगी। हालांकि सीएम नीतीश ने मंच से उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की।

सीएम नीतीश और डेप्युटी सीएम तेजस्वी के मंच पर आते ही CTET-BTET अभ्यर्थी नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन की डिमांड करने लगे।

सुनील पाण्डेय

कुढ़नी में क्यों दांव पर नीतीश की दावेदारी?

बिहार की सत्ता में अगर लालू यादव चाह दें तो मैजिक नंबर हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। तेजस्वी यादव को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए सिर्फ तीन विधायक की जरूरत है। इसका मतलब ये नहीं कि उनके पास 119 का आंकड़ा है। मगर सियासी गुणा-गणित 119 तक जरूर ले जा रहा है। मैजिक नंबर 122 का है। आंकड़ों पर नजर डालें तो आरजेडी के 78, कांग्रेस के 19, लेफ्ट पार्टियों के 16 हम के 4, AIMIM के 1 और निर्दलीय 1 मिलाकर ये आंकड़ा 119 तक पहुंचता है। लालू यादव जैसे सियासत के माहिर खिलाड़ी के लिए मैजिक नंबर (122) को हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं है। वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड 45 विधायकों के साथ तीसरे नंबर पर है। लिहाजा उनके लिए कुढ़नी सीट जीतना ज्यादा जरूरी है। इसके अलावा वो (नीतीश कुमार) साबित करना चाहेंगे कि अब भी उनकी वोटरों पर पकड़ मजबूत है। लालू यादव भी नीतीश कुमार को कुढ़नी के बहाने तौल लेना चाह रहे हैं। लिहाजा उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए वाकओवर दे दिया। वरना इस सीट पर सही मायने में आरजेडी की दावेदारी बनती थी। यहां से आरजेडी के विधायक अनिल सहनी को अयोग्य ठहराया गया था।

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नीतीश की सभा में पहले भी चल चुकी हैं कुर्सियां

वैसे, ये कोई पहली बार नहीं है कि नीतीश कुमार की सभा में कुर्सियां फेंकीं गईं। इससे पहले भी कई ऐसे वाकये आए जब नीतीश की सभा में आए लोगों ने उनका विरोध किया। कई बार तो इन विरोधों की वजह से नीतीश कुमार अपना आपा खोते भी दिखे। हालांकि कुढ़नी में उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। अधिकार यात्रा के दौरान भी मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार पर कुर्सियां फेंकी गईं थीं। नवादा में उनकी सभा थी तो वो जैसे ही मंच पर चढ़ने लगे, वहां बैठे एक शख्‍स ने उन पर कुर्सी फेंक दी। हालांकि कुर्सी उनको नहीं लगी थी। इससे पहले दरभंगा, बेगूसराय और सुपौल में नीतीश कुमार की सभा में शिक्षकों और आम लोगों ने उन पर जूते फेंके थे। खगड़िया में तो उनका विरोध हिंसक भी हो गया था। जब वो बीजेपी के साथ सत्ता में भागीदार रहे तब भी उनका विरोध हुआ और आरजेडी के साथ आए तब भी। जो भी पार्टी विपक्ष में होती है, इन विरोधों में खुद के लिए मौका ढूंढती है। मगर नीतीश कुमार को एक अणे मार्ग से डिगा नहीं पाए।

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‘कुर्सियों’ में बीजेपी को क्यों दिख रहा अवसर?

बिहार की सत्ता पर पिछले 17 साल नीतीश कुमार काबिज हैं। उनका साथ कभी बीजेपी देती है तो कभी आरजेडी। पावर पॉलिटिक्स के कैलकुलेशन में नीतीश कुमार ने खुद को फिट कर लिया है। लिहाजा बिना उनकी सहमति के कुछ भी नहीं हो सकता। इस बात को कुर्सियां चला रहे CTET-BTET अभ्यर्थी समझ रहे थे। इसीलिए उनके निशाने पर नीतीश कुमार आ गए। तेजस्वी को अभ्यर्थियों ने इग्नोर कर दिया। विधायकों की संख्या के मामले में तीसरे नंबर पर खिसक चुकी JDU के मुखिया ज्यादा रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं। बीजेपी इस बात को बखूबी समझ रही है। सत्ता से बेदखल हो चुके बीजेपी के नेता खार खाए बैठे हैं। उन्होंने इस मुद्दे को लपक लिया। वैसे इस सभा में न सिर्फ CTET-BTET अभ्यर्थी अपनी बात कहते दिखे बल्कि शराबबंदी नीति और ताड़ी प्रतिबंध के खिलाफ भी लोग प्रदर्शन करते रहे। इनमें महिलाओं की संख्या भी ठीकठाक थी। इस तरह की घटनाएं बीजेपी की हौसला अफजाई कर रहीं हैं। बीजेपी को इसमें खुद के लिए मौका दिख रहा है।

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