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रिपोर्ट- मो. सरफराज आलम
सहरसा. बिहार के गया जिले का तिलकुट पूरे हिंदुस्तान में फेमस है. तिलकुट की ब्रांडिंग भी गया जिला के ही तौर पर देश भर में की जाती है. लेकिन, अब गया का तिलकूट खाने के लिए न तो गया जाने की जरूरत है और न ही अपने जान-पहचान वालों के मध्यम से वहां से मंगाने की. सहरसा का बाजार भी तिलकुट की सौंधी खुशबू से महक उठा है. गुड़ के चट्टे और तिल के लच्छे फेंटते दिखने वाले कारीगर गया जिले से ही आ गए हैं. बताया जाता है कि गया के कारीगरी अब सहरसा में अगले 45 दिनों तक रहेंगे और तिलकुट का कारोबार करेंगे. खासतौर से मकर संक्रांति के दिन बिहार में तिल और गुड़ खाने का रिवाज भी है. इस कारण से तैयारी अभी से ही शुरू कर दी गई है.
90 क्विंटल का सजेगा बाजार
गया से आए कारीगर बताते हैं कि वह लोग अब अगले 45 दिनों तक यहां रहेंगे. इस दौरान वेलोग हर दिन 2 क्विंटल तिलकुट तैयार करेंगे. इस तरह से सहरसा जिला में तकरीबन 90 क्विंटल तिलकुट बनाया जाएगा. तिलकुट बनाते समय इन कारीगरों का हाथ इतना तेज चलता है मानो हाथ नहीं, मशीन चल रहा हो. कारीगर कन्हैया कुमार ने बताया कि वह हर साल सहरसा आते हैं. उनके साथ 4 से 5 लोग और होते हैं, जो तिलकुट बनाने में उनकी मदद करते हैं. 45 दिन तक सहरसा में रहकर 90 क्विंटल तिलकुट बना लेंगे.
40 वर्षों से मंगाते हैं गया से कारीगर
इस बाबत स्वास्तिक तिलकुट दुकान संचालक रोहित कुमार ने बताया कि वे 40 वर्षों से गया के कारीगरों के द्वारा तिलकुट बनवाते हैं. जिसे लोग काफी पसंद करते हैं. गया के कारीगर के हाथों के बने तिलकुट का स्वाद ही अलग होता है. तभी इतनी मात्रा में तिलकुट हमारे दुकान से हर साल बिक जाती हैं. कन्हैया बताते हैं कि वे लोग तिलकुट के के आइटम बनाते हैं, जिसमें चापड़ी, कटोरी, गुल्लक, काजू, तिल पापड़ी, साथ ही साथ खोवा का भी तिलकुट शामिल है.
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प्रथम प्रकाशित : 19 दिसंबर, 2022, दोपहर 12:32 बजे IST
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