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भट्टी अभी सीमा सुरक्षा बल में तैनात हैं।
– फोटो : अमर उजाला
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संजीव कुमार सिंघल के 19 दिसंबर को रिटायरमेंट के बाद 1990 बैच के कड़क आईपीएस अधिकारी राजविंदर सिंह भट्टी को बिहार का नया पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बनाया जा रहा है। चंडीगढ़ के मूल निवासी भट्टी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं और बिहार उनके लिए नई जगह नहीं है। वह अपने पुराने कार्यक्षेत्र में लौट रहे हैं, लेकिन इस बार चुनौतियां बिल्कुल नई हैं।
शुरुआती दौर से चर्चित रहे आईपीएस राजविंदर सिंह भट्टी
आईपीएस के रूप में कॅरियर की शुरुआत भट्टी ने बिहार के ही नवगछिया से की थी। नवगछिया में प्रोबेशन के दौरान ही भट्टी इनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रूप में चर्चित हो गए थे। इसके बाद ट्रेनिंग के दौरान मुजफ्फरपुर में उनकी थर्ड डिग्री की चर्चा रहती थी। फिर एएसपी बाढ़ के रूप में भट्टी राजधानी तक चर्चा में तब आए, जब उन्होंने बाहुबली अनंत सिंह के विधायक भाई दिलीप सिंह को सदन के सत्र के दौरान ही पटना स्थित आवास से गिरफ्तार किया था। एसपी के रूप में भट्टी की पहली पोस्टिंग मधुबनी में तब हुई थी, जब वहां नरसंहार के बाद सवर्ण जातियां उबल रही थीं। वहां की स्थिति संभालने के बाद पटना में सिटी एसपी के रूप में पदस्थापित किए गए आर. एस. भट्टी ने एक के बाद एक कई चर्चित केस का टाइमलाइन देकर खुलासा किया। भट्टी अपनी पदस्थापना के साथ ही उस जिले के टॉप 10 क्रिमिनल को कंट्रोल करने का टास्क रखने के लिए चर्चित थे।
चुनौती 1.
पहले जैसे कुख्यात अपराधी नहीं, सीसीटीवी भरोसे पुलिस
भट्टी जिस दौर में बिहार में चर्चित रहे थे, उस समय से वर्तमान हालात में बहुत अंतर है। यह अंतर भट्टी के लिए चैलेंज होगा। पहले कुख्यात अपराधियों का जमाना था, लेकिन अब नए लड़कों का गिरोह बड़ी लूट, बैंक डकैती जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहा है। इसके अलावा, पहले जैसी हत्याओं का ट्रेंड भी नहीं है। अब एक-दो लोग छोटे कारणों से बाइक पर निकल हत्या जैसी संगीन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। पुलिस के पुराने सिस्टम में मुखबिरों की अहम भूमिका रहती थी, लेकिन कुछ वर्षों में पुलिस की पूरी निर्भरता सीसीटीवी पर है। जहां सीसीटीवी फुटेज मिले, पुलिस सफल होती है और ज्यादातर केस में नहीं मिलने के कारण उद्भेदन तभी होता है जब कांड का कारण किसी तरह सामने आ जाए। ऐसे में बिहार के डीजीपी के रूप में भट्टी को अपराधियों के ताजा ट्रेंड के हिसाब से नए रूप में उतरना होगा।
चुनौती 2.
मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘शराबबंदी’ पर भारी जहरीली शराब
नए डीजीपी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘शराबबंदी’ पर बहुत ज्यादा ध्यान देना होगा। भट्टी के लिए यह अलग तरह का चैलेंज इसलिए भी होगा, क्योंकि आबकारी में के. के. पाठक जैसे कड़क आईएएस अधिकारी को लगाने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्ण शराबबंदी को सफल नहीं बना सके हैं। चार दिनों के अंदर करीब 7 दर्जन लोगों की जहरीली शराब से मौत पर राज्य सरकार घिरी हुई भी है और लाचार भी दिख रही है। पुलिस थाने से स्पिरिट चोरी होकर जहरीली शराब बनाने की बात भी फिज़ा में है और जहरीली शराब के मृतकों के परिजनों पर ठंड से मौत बताने का पुलिसिया दबाव भी खबरों में है। राज्य सरकार शराबबंदी को सफल बनाने के लिए ड्रोन तक से निगरानी करवा रही है, फिर भी जहरीली शराब से मौतों के सिलसिले के बीच ही शराब से नई जगहों पर भी मौत की खबरें आ रही हैं। ऐसे में पुलिस की छवि सुधारते हुए शराब पर पूरी तरह से रोक का टास्क भी नए डीजीपी के लिए छोटा नहीं है।
चुनौती 3.
दमदार दाग: डीजीपी से कोई फर्जी जज बनकर काम करा ले
वर्तमान डीजीपी सिंघल पर सबसे दूर रहने का आरोप लगता रहा था और इसके अलावा वह पिछले दिनों चर्चा में तब आए थे, जब एक बिजनेसमैन ने फर्जी जज के रूप में बार-बार कॉल कर उनसे अपने आईपीएस मित्र का फेवर करा लिया था। जिस आईपीएस का पिछले डीजीपी ने फेवर किया, वह अबतक पुलिस गिरफ्त से दूर है। किसी डीजीपी से कोई फर्जी जज बनकर काम करा ले, यह शायद ही कहीं और हुआ हो। सिंघल के जाने के बाद भी बिहार पुलिस मुख्यालय पर लगा यह दाग शायद ही हट सके। इस दाग को धूमिल करना भी भट्टी के लिए जरूरी होगा। सीनियर आईपीएस अधिकारियों का कहना है कि इस दाग को धूमिल करते हुए आम लोगों के बीच रहना और कॉम्युनिटी पुलिसिंग जैसे कॉन्सेप्ट को बढ़ाना आर. एस. भट्टी के लिए अलग तरह का चैलेंज होगा।
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