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रिपोर्ट- विक्रम कुमार झा
पूर्णिया. इनदिनों दुनिया भर के मुल्कों में फीफा वर्ल्ड कप की धूम थी. जिसे देखो टीवी और मोबाइल से चिपककर फीफा वर्ल्ड के लुफ्त उठा रहा था. दूसरे देशों की तरह भारत में भी फुटबॉल प्रेमियों की भरमार है. मगर क्या आपको मालूम है, कि बिहार के पूर्णिया से लगे झील टोले में फुटबॉल को लेकर दीवानगी ऐसी कि यहां रहने वाला कोई बच्चा रोनाल्डो तो कोई मेस्सी है. मूलभूत सुविधाओं के आभाव के बावजूद यहां के बच्चे अंडर 14,17 व 19 ही नहीं बल्कि नेशनल में अपना दमखम दिखा चुके हैं. बच्चों का सपना है कि वे न सिर्फ भारत को फीफा वर्ल्ड की दहलीज तक ले जाए.
फुटबॉलर गांव के नाम से जानते हैं लोग
दरअसल दौड़ के साथ इन बच्चों की सुबह जबकि ट्रेनिंग के साथ इनकी शाम समाप्त होती है. हम बात कर रहे हैं पूर्णिया के उस झील टोला की जो शहर से महज तीन किलोमीटर दूर बसा है. यहां के लोग इसे फुटबॉलर गांव के नाम से जानते हैं. झील टोला का इतिहास बहुत पुराना है. 200 की आबादी वाले इस गांव का हर बच्चा रोनाल्डो और मेस्सी है. फुटबॉल के प्रति युवकों की दीवानगी को देखते हुए 1980 के दशक में गांव के कुछ लोगों ने सरना फुटबॉल का गठन किया था. तब से लेकर अब तक एक से बढ़ कर एक फुटबॉल खिलाड़ी यहां से निकले. पिछले 40 सालों से यह सिलसिला यूं ही जारी है. यहां के खिलाड़ी अंडर-14, अंडर-17 और अंडर-19 के साथ ही नेशनल टीम में हिस्सा ले चुके हैं.
आपके शहर से (पूर्णिया)
पढ़ाई के साथ खेलते है फुटबाल
एकलव्य सेंटर पूर्णिया के प्रशिक्षक रजनीश पांडे कहते हैं कि यहां से कई खिलाड़ी राज्य और देश स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं. इसी गांव के सुमन कुजुर राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुके हैं. फुटबॉल का जुनून ऐसा कि उनका दो बार पैर भी टूट गया. लेकिन फुटबॉल खेलना उन्होंने कभी बंद नहीं किया. पांच साल पहले अमित लकड़ा जूनियर नेशनल सुब्रतो कप में खेलने जम्मू गये थे. इसी गांव के राहुल तिर्की और सौरव तिर्की दोनों सगे भाई हैं. अभी हाल ही में संतोष ट्राफी के कैंप में शामिल हुए हैं. सरना क्लब के सचिव शुभम आनंद ने बताया कि फुटबॉल यहां की दिनचर्या में शामिल है. कोई पढ़ाई के साथ-साथ खेलता है तो कोई काम के बाद खेलता है.
उचित प्रोत्साहन और संसाधन का अभाव
गांव के लोग बताते हैं कि सरकार की ओर से कभी कोई मदद नहीं मिलती. आज भी कई खिलाड़ी बेहतर खेल रहे हैं लेकिन उचित प्रोत्साहन और संसाधन के अभाव में अपनी मुकाम तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. गांव के सीनियर खिलाड़ियों और समाज के लोगों की मदद से यह क्लब चलता है. खासतौर से जो खिलाड़ी बाहर जॉब में हैं, वे काफी सहयोग करते हैं. खेलों के प्रति युवाओं के रूझान से अच्छी बात यह है कि इस गांव का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहा है.
रोनाल्डो, नेमार और मेस्सी उनके आदर्श खिलाड़ी
यहां के युवाओं पर फीफा वर्ल्ड कप का फीवर सर चढ़कर बोल रहा है. क्रिकेट के दो-तीन नामचीन खिलाड़ियों के बाद भले ही उन्हें अन्य का नाम याद न हो पर फुटबॉल विश्व कप के अधिकांश खिलाड़ियों का नाम उन्हें कंठस्थ है. रोनाल्डो, नेमार और मेस्सी उनके आदर्श खिलाड़ी हैं. संजीव सोरेन बताते हैं कि क्रिकेट भले ही न देखें पर फुटबॉल देखना नहीं भूलते. मैच देखने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. नयी तकनीक की तो जानकारी मिलती ही है, साथ ही अच्छे खिलाड़ियों को देखकर प्रेरणा भी मिलती है. वे कहते हैं इनके हौसलों को थोड़ी प्रशासनिक मदद मिल जाए तो वे फीफा वर्ल्ड कप में न सिर्फ भारत की एंट्री बल्की देश को जीत की दहलीज तक पहुंचा सकते हैं.
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प्रथम प्रकाशित : 19 दिसंबर, 2022, 10:57 AM IST
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