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राम और रावण पर चर्चा
शिक्षा मंत्री के इस बयान को लेकर महागठबंधन में ही विरोध के स्वर देखने को मिले। इस बीच, पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक जीतन राम मांझी ने बड़ा बयान दे दिया। उन्होंने राम को काल्पनिक बताते हुए यहां तक कह दिया कि कर्मकांड के आधार पर राम से रावण का चरित्र बड़ा है। कई लोग कहते हैं कि यह सीधे-सीधे हिंदुत्व की राजनीति को चुनौती देने जैसा है। वैसे, भाजपा इन बयानों को लेकर मुखर भी दिखा। भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते है कि इन दिनों हिंदू धर्म, हिंदू धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ हिंदू देवी-देवताओं को गाली देना और उनपर आरोप लगाना लेफ्ट- लिबरल और तथाकथित प्रोग्रेसिव- समाजवादी लोगों का फैशन बन गया है।
बिहार की सियासत का अलग रूप
राजद नेता, समाजवादी पार्टी के नेता और अब जीतन राम मांझी जिस तरह से बयानबाजी कर रहे हैं, वह वास्तव में निंदनीय है। हिंदू- सनातन मान्यता के भगवान के बारे में भला- बुरा कहकर ये लोग आम हिंदू जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर ये लोग इस्लाम या किसी अन्य धर्म के खिलाफ बयान देते हैं, तो उन्हें फतवे से सम्मानित किया जाएगा। दुर्भाग्य से हकीकत है कि ये लोग इसे उदारवाद, प्रगतिवाद और मुसलमानों एवं उनके वोट बैंक को खुश करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। वैसे, राजनीति के जानकार इसे बौद्धिक बहस से नहीं जोड़कर इसे राजनीति से जोड़ते हैं।
रामायण पर बहस से किसको लाभ?
राजनीति के जानकार अजय कुमार साफ शब्दों में कहते हैं कि राजद और मांझी इस बयान के जरिए भाजपा के कमंडल की राजनीति के हथियार को कुंद करना चाहती है। हालांकि इस बयान को हिंदुत्व पर हमला से भी जोड़ने का प्रयास किया जा रहा। ऐसे, में कुछ जानकार इसे राजद के लिए आत्मघाती भी बता रहे हैं। बहरहाल, राम, रावण और रामचरितमानस को लेकर राजनीति फिजाओं में बहस तेज है। आने वाले चुनावों में किस राजनीति दल को इससे लाभ होगा या नुकसान होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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