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साल 2010 का विधान सभा चुनाव
यह वह खास समय था जब सुधाकर सिंह का विद्रोह अपने पिता जगदानंद सिंह के निर्देश को भी पार कर गया। मसला 2010 के विधान सभा चुनाव में रामगढ़ चुनाव से किसे टिकट दिया जाए। सुधाकर सिंह भी यहां से चुनाव लड़ने को इच्छुक थे। जगदानंद सिंह के हाथ इसलिए बंधे थे कि साल 2009 के उप चुनाव में अंबिका यादव चुनाव जीते हुए थे। दावा भी अंबिका यादव का बन रहा था। तब जगदानंद सिंह ने मोर्चा संभाला और वह स्वयं अंबिका यादव के पक्ष में खड़े हुए। पुत्र की दावेदारी का जमकर विरोध किया। नाराज सुधाकर सिंह ने विद्रोही तेवर अपनाते हुए बीजेपी का दामन थामा और रामगढ़ से टिकट भी प्राप्त कर लिया। जगदानंद सिंह के लिए यह स्थिति बिल्कुल परेशान करने वाली थी। पर वह दल और लालू यादव के साथ खड़े रहे। अंततः पिता ने ही पुत्र के हारने की जमीं तैयार की और अंबिका यादव को जीत के रथ पर सवार कराकर आदर्श राजनीति के फलसफे पर एक उदाहरण की तरह प्रस्तुत हुए।
जब मीरा कुमार के विरुद्ध बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में किया प्रचार
पिता पुत्र के बीच विद्रोही तेवर का एक और वाक्या तब सामने आया जब 2004 का लोकसभा चुनाव मीरा कुमार कांग्रेस की उम्मीदवार के रूप में लड़ रही थीं। पिता जगदानंद सिंह मीरा कुमार का प्रचार कर रहे थे और सुधाकर सिंह बीजेपी का। यहां भी जीत पिता की हुई और मीरा कुमार विजयी हुईं।
वर्ष 2023 में फिर पिता पुत्र आमने सामने
और एक बार फिर पिता पुत्र आमने सामने हुए हैं। जगदानंद सिंह एक बार फिर अपने पुत्र से नाराज हैं। इस बार वजह बनी है उनके पुराने मित्र राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुधाकर सिंह की ओर से शिखंडी और नाइट वॉचमैन कहा जाना। सुधाकर सिंह के इस अमर्यादित बयान पर जगदानंद सिंह भड़क गए और बोले यह किसी भी मर्यादित नेता को शोभा नहीं देगा। इस तरह के बयान राजनीति की सारी हदें को तोड़ती हैं। इनके इस बयान पर दल ऐक्शन जरूर लेगी। उम्मीद है आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद इस मामले की संज्ञान लेंगे।
बहरहाल, एक बार फिर पिता पुत्र दो ध्रुव पर खड़े हैं। फैसला लालू जी को करना है। अब पिता पुत्र की लड़ाई में आरजेडी प्रमुख किसके साथ खड़ा होते हैं ,यह आने वाला समय बताएगा।
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