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पटना/रांची. बिहार से भाजपा के बड़े नेता रहे शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस से चुनाव लड़कर इन दिनों तृणमूल कांग्रेस में सियासी जमीन तलाश रहे हैं. ममता बनर्जी की पार्टी ने उन्हें लोकसभा उपचुनाव में अपना प्रत्याशी भी बना दिया है. संभव है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के ‘प्रभाव’ को देखते हुए ‘बिहारी बाबू’ चुनाव जीत भी जाएं. तृणमूल को उन्होंने क्यों चुना, यह समझना कठिन नहीं है. ‘शत्रु’ राजनीति में सक्रिय रहने के लिए ठौर ढूंढ रहे हैं और यह उन्हें तृणमूल कांग्रेस में मिला, सब जानते हैं. लेकिन ममता बनर्जी को बिहारी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा में क्या नजर आया कि उन्हें लोकसभा भेजने की घोषणा कर दी, यह समझने वाली बात है.
यहां यह बता दें कि शत्रुघ्न सिन्हा से भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए थे. वो बिहार के पटना साहिब से कांग्रेस के टिकट पर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं सके. वहीं, राजनीतिक जानकार बताते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा को तृणमूल कांग्रेस आसनसोल लोकसभा सीट प्रत्याशी में इसलिए उतार रही है क्योंकि इस क्षेत्र में कोयला खदान श्रमिकों, कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों, स्क्रैप डीलरों और मुस्लिम आबादी की मिलीजुली संख्या है. इस लोकसभा क्षेत्र में लगभग 50 प्रतिशत मतदाता हिंदी भाषा बोलते हैं. ऐसे में शत्रुघ्न सिन्हा के टीएमसी में शामिल होने के मायने समझे जा सकते हैं.
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गौरतलब है कि बंगाल में भाजपा के बढ़ने के पीछे गैर बंगाली आबादी का बड़ा महत्व है. खास तौर पर बिहार-झारखंड की सीमा से लगे क्षेत्रों में इनका अधिक प्रभाव है. ऐसे भी पूरे परिप्रेक्ष्य में देखें तो वर्ष 2016 विधान सभा चुनाव में बीजेपी को केवल तीन सीटों पर जीत मिली थी और 2021 में 77 सीटों पर जीत मिली. इसे वोट प्रतिशत में जाने तो 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर लगभग 10 प्रतिशत था. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का आंकड़ा 40 प्रतिशत पार कर गया. 18 सीटें भी भाजपा ने जीत ली. इसी तरह बीजेपी को इस विधान सभा चुनाव में में 38.1 प्रतिशत वोट मिले.
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