Home Bihar ‘बिलइया के नजर मुसवे पर’…आनंद मोहन को आगोश में लेने को आतुर सियासी दलों की मंशा के पीछे का सच

‘बिलइया के नजर मुसवे पर’…आनंद मोहन को आगोश में लेने को आतुर सियासी दलों की मंशा के पीछे का सच

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‘बिलइया के नजर मुसवे पर’…आनंद मोहन को आगोश में लेने को आतुर सियासी दलों की मंशा के पीछे का सच

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पटना : बिहार की राजनीति इन दिनों समीकरण बनाने की दिशा में अग्रसर है। यह समीकरण चाहे जातीय हो या दलों के साधने का समीकरण राजनीत के शीर्ष नेताओं के लिए यह हॉट केक की तरह शामिल हो चुका है। ऐसा इसलिए कि भाजपा नीत केंद्र में एनडीए सरकार जहां नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार पीएम बनाने के समीकरण साध रही है तो वही विपक्ष नरेंद्र मोदी के विरुद्ध सत्ता का एक नया समीकरण बनाने में लगी है। राजनीति के इस आपाधापी में कोई परहेज करते दल या नेता नहीं दिख रहे हैं। गर दिख भी रहे हैं तो जातीय वोट को बढ़ाने में वे कैसे कारगर हैं। इस अभियान में अभी वीपीपा के सर्वमान्य नेता आनंद मोहन सब दलों या गठबंधन के लिए हॉट केक बने हुए हैं। कुल मिलाकर राजनीतिक दलों की नजर भोजपुरी कहावत को चरितार्थ करती है। ‘बिलइया के नजर मुसवे पर’ यानी लक्ष्य पर ध्यान होना। राजनीतिक दलों के लिए इन दिनों आनंद मोहन एक सियासी लक्ष्य बने हुए हैं। जिसे सभी पार्टियां साधना चाहती हैं।

नीतीश कुमार का जाहिर हुआ दो चरित्र

बिहार की राजनीति आज भी बाहुबली नेता और जातिगत समीकरण को साधने की जुगत से उबर नहीं पाया है। इस फलसफे पर इन दिनों आंनद मोहन सभी के लिए हॉट केक बने हुए हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उनमें एक हैं। दिलचस्प तो यह है कि बिहार में जब एनडीए की सरकार थी तो तब बतौर मुख्यमंत्री के प्रभारी मंत्री के रूप में विजेंद्र यादव ने सदन में आनंद मोहन की रिहाई को ना कहा था। तब तेजस्वी यादव ने जम कर नीतीश कुमार की आलोचना करते कहा था कि नीतीश कुमार राजनीतिक षडयंत्र के साथ कानून का उपयोग कर रहे हैं।

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नीतीश कुमार को वोट दिखाई देते हैं!

लेकिन आज नीतीश कुमार क्षत्रिय समाज के बड़े नेता आनंदमोहन के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रख रहे हैं। यह उजागर हुआ 23 जनवरी को पटना में महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि समारोह के दिन। उस दिन आनंद मोहन के समथकों ने उन्हें रिहा करने की मांग रखी थी। तब नीतीश कुमार ने घोषणा करते कहा कि आनंद मोहन को रिहा करने पर विचार किया जा रहा है। आनंद मोहन मेरे खास मित्र रहे हैं। मित्र को जेल से बाहर निकालने के बिहार सरकार हर संभव प्रयास कर रही है।

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बीजेपी नेता सुशील मोदी का बयान

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी आनंद मोहन के जेल जाने से दुखी होते कहा कि आनंद मोहन के साथ अन्याय हो रहा है। जब जेल में उनका आचरण सही था तो सजा समाप्त होने के बाद उन्हें बाहर कर देना चाहिए। सुशील मोदी के अलावा बिहार के सियासी जानकार मानते हैं कि आनंद मोहन के बिहार में प्रशंसक ज्यादा हैं। आनंद मोहन के एक इशारे पर वो किसी भी राजनीतिक दल को वोट दे सकते हैं। ये बात बिहार के सभी सियासी दलों को मालूम है। ऊपर से आनंद मोहन अपनी सजा पूरी कर चुके हैं। वैसे में यदि वो बाहर आते हैं तो पार्टियां ये भी कह सकती हैं कि आनंद मोहन की छवि अब साफ-सुथरी है। आनंद मोहन के जरिये राजपूत समाज के वोटों को साधने में आसानी होगी। इसलिए सियासी पार्टियों की नजर आनंद मोहन की पसंद पर भी है। आनंद मोहन के प्रति सभी पार्टियां सॉफ्ट कार्नर अपनाए हुए हैं।

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राजनीतिक विशेषज्ञों की क्या है राय

वरिष्ट पत्रकार अरुण पांडे आनंद मोहन प्रकरण पर कहते हैं कि यह सब जातीय समीकरण को पुष्ट करने के लिए किया जा रहा है। राजद वैसे भी राजपूत वोट पर अपना अधिकार जमा कर रखा था। तब उनके मददगार नेता में जगतानंद सिंह और रघुबंश बाबू दो बड़े नाम रहे थे। इनमें रघुबंस बाबू का निधन हो गया है। वैसे भी आनंद मोहन के पुत्र चेतन आनंद राजद के विधायक हैं। अभी राज्य में महागठबंधन की सरकार है इसलिए भी आनंद मोहन की तरफ नीतीश कुमार भी देख रहे हैं। रानाप्रताप की जयंती के दिन एक समारोह में तो नीतीश कुमार ने भी कहा कि उनकी रिहाई को ले कर सरकार पहल करेगी। एक समय था जब नीतीश कुमार की ही सरकार ने ना कहा था। यह जवाब सदन की कार्यवाही में दर्ज भी है। लेकिन अब एक नई लड़ाई भाजपा के विरुद्ध लड़नी है तो राजपूत मत को मजबूत करना है। सो,इसलिए वर्तमान सरकार ने आनंद मोहन को ले सॉफ्ट कॉर्नर रखने लगी है।

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