Home Bihar बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई गड़बड़ा देगा नीतीश कुमार का सियासी गणित

बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई गड़बड़ा देगा नीतीश कुमार का सियासी गणित

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बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई गड़बड़ा देगा नीतीश कुमार का सियासी गणित

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पटना:बाहुबली और पूर्व सांसद आनंद मोहन के जेल से रिहाई का प्रसंग धीरे-धीरे राजनीतिक रंग पकड़ता जा रहा है। दलित और बेहद गरीब परिवार से आने वाले गोपालगंज के पूर्व डीएम जी कृष्णैया की बर्बरता से हत्या के दोषी आनंद मोहन की जेल से रिहाई के फैसले ने राज्य से निकलकर देश भर के दलितों को गोलबंद करना शुरू कर दिया। राजनीतिक रंग में रंगा बिहार इस विवाद के बहाने वोट बैंक की दिशा में भी बढ़ने लगा है। R (Rajput) बनाम D (Dalit) की गोलबंदी की जद में राजनीति परवान पाने लगी है। हद तो यह है कि इस मामले में दलित नेता का विरोध या समर्थन ही नहीं. बल्कि एससी-एसटी आयोग ने भी संज्ञान ले लिया है।

क्या कहा जीतनराम मांझी ने

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आनंद मोहन की रिहाई को ले कर उभरे विवाद पर कहा कि आनंद मोहन अपराधी नहीं। वो बुरे इंसान नहीं हो सकते हैं। आनंद मोहन की बातों को देखने के बाद वह क्रिमिनल नेचर के इंसान नहीं लगते। उन्होंने एक नहीं बल्कि कई किताबें लिखी है। इसलिए मैं नहीं मानता हूं कि आनंद मोहन के छूट जाने से गरीब पर बहुत अत्याचार होगा।

मायावती ने क्या कहा?

पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती कहा किनीतीश कुमारके द्वारा कानून का संशोधन कर आनंद मोहन को जो जेल से बाहर जाने का रास्ता खोल दिया है वह कार्य ‘दलित विरोधी’ और गरीब विरोधी है। एक बेहद गरीब दलित परिवार के बेहद ईमानदार आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या की नृशंस हत्या के मामले में नियमों में बदलाव कर आनंद मोहन की रिहाई का आंध्र प्रदेश के महबूबनगर (अब तेलंगाना में ) के दलित परिवार और पूरे देश में इस कार्य की चर्चा नकारात्मक और दलित विरोधी फैसले के रूप में ले रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक बार फिर अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

एससी-एसटी आयोग ने किया विरोध

आनंद मोहन की रिहाई के लिए नीतीश सरकार की पहल का सबसे तीखा विरोध एससी-एसटी आयोग ने भी की है। आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदु बाला ने कहा कि बिहार सरकार दोषी है। बिहार में अपराधी को बचाने के लिए कानून बदल डाला। आनंद मोहन को बचाने के लिए सरकार क्या-क्या कर सकती है, ये समझ से परे है। ऐसे में क्या अनुसूचित जाति के लोग खुद को बिहार में सुरक्षित महसूस करेंगे। एससी-एसटी आयोग इस मामले का संज्ञान लेगा और सरकार को नोटिस करेंगे। हमें जवाब चाहिये कि किस नियम के तहत आनंद मोहन की रिहाई की जा रही है।

बहरहाल, आनंद मोहन की रिहाई को लेकर जब कानून संशोधन की बात चली, तभी यह आरोप राजनीतिक गलियारों में लगने लगा था कि राजपूत वोट बैंक की गोलबंदी को ध्यान में रख कर कानून में संशोधन किया जा रहा है। लेकिन तब यह किसी को भी यह भनक नहीं लगी कि सरकार के इस फैसले पर दलित की गोलबंदी होनी शुरू हो जायेगी। जाहिर है वोट बैंक का ही ख्याल अगर राजनीतिक दल करेंगे तो दलित का वोटबैंक 16 प्रतिशत है। इस बड़े वोट बैंक के आगे नीतीश कुमार की सरकार के इस फैसले पर प्रश्नचिन्ह खड़ा तो हो ही गया। अब देखना है कि राज्य सरकार इस विवाद से खुद को कैसे बाहर निकाल पाती है।

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