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हाइलाइट्स
फाइलेरिया उन्मूलन के लिए स्वास्थ्य विभाग ने शुरू की तैयारी.
दिव्यांगजनों वाली योजना का लाभ फाइलेरिया के मरीजों को भी.
हाथीपांव के मरीजों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है बुरा प्रभाव.
गोपालगंज. अब फाइलेरिया के मरीजों को भी दिव्यांगजनों की श्रेणी में रखा जायेगा. स्वास्थ्य विभाग ने फाइलेरिया मरीजों की रोकथाम के लिए समुदाय स्तर पर लोगों को जागरूक कर अभियान की शुरुआत की है. सिविल सर्जन डॉ बीरेंद्र प्रसाद ने कहा कि विश्व में विकलांगता का दूसरा बड़ा कारण फाइलेरिया है. फाइलेरिया के कारण हाथी पांव हो जाता है और जिला में ऐसे कई मरीज हैं जो इस गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की हर कोशिश जारी है.
लोगों को यह जानकारी देनी जरूरी है कि हाथीपांव होने का कारण मच्छर है. मादा मच्छर क्यूलेक्स के काटने से फाइलेरिया होता है. फाइलेरिया से बचाव के लिए साल में एक बार दवा सेवन कार्यक्रम चलाया जाता है. ऐसे कार्यक्रमों में लोगों की सहभागिता आवश्यक है. हाथीपांव से ग्रसित मरीजों के लिए अच्छी खबर है. राज्य आयुक्त निःशक्ता के दिशा-निर्देश पर हाथी पांव से ग्रसित मरीजों को दिव्यांगता की श्रेणी में शामिल किया जायेगा.
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हाथीपांव के मरीजों को गंभीरता के आधार पर श्रेणी तय कर दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी किया जायेगा. इसके लिए ग्रेड तय किए गए हैं. राज्य तथा केंद्र सरकार द्वारा दिव्यांगजनों को मिलने वाली योजनाओं का लाभ अब हाथीपांव से पीड़ित लोगों तक भी पहुंच सकेगा. राज्य आयुक्त निःशक्ता अधिनियम को लागू किये जाने के बाद यह प्रभावी होगा. रेलवे यात्रा, आरक्षण या ऐसी ही अन्य प्रकार का लाभ ऐसे मरीजों को मिल सकेगा.
मानसिक स्थिति पर पड़ता है प्रभाव
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकार डॉ. सुषमा शरण ने बताया कि फाइलेरिया बीमारी से संबंधित स्पष्ट कोई लक्षण नहीं होता है. बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्याएं हो जाती हैं. इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसील (अंडकोष में सूजन) और भी कई अन्य तरह से फाइलेरिया के लक्षण देखने व सुनने को मिलते हैं. इस बीमारी में सबसे पहले हाथ और पांव दोनों में हाथी के पांव जैसी सूजन आ जाती है. फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है. कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं. फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है.
कामकाज में पूरी तरह से अक्षम हो जाते हैं मरीज
फाइलेरिया बीमारी बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक अपंगता बढ़ती चली जाती है. इसी कारण इसे निग्लेक्टेड ट्रापिकल डिजीज की श्रेणी में शामिल किया गया है. दिव्यांगता बढ़ने के साथ ही उक्त व्यक्ति कामकाज में पूरी तरह से अक्षम हो जाता है. नौकरी पेशा या व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति के अपंग होने की स्थिति में परिवार पर इसका बुरा असर पड़ता है.
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पहले प्रकाशित : 20 जनवरी, 2023, 11:06 पूर्वाह्न IST
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