Home Bihar प्रशांत किशोर को थोड़ी किस्मत और थोड़े से अनुमान ने बनाया पॉलिटिक्स का ‘पीके’, कौन हैं ये… कहां से आए हैं?

प्रशांत किशोर को थोड़ी किस्मत और थोड़े से अनुमान ने बनाया पॉलिटिक्स का ‘पीके’, कौन हैं ये… कहां से आए हैं?

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प्रशांत किशोर को  थोड़ी किस्मत और थोड़े से अनुमान ने बनाया पॉलिटिक्स का ‘पीके’, कौन हैं ये… कहां से आए हैं?

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पटना: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जल्द ही खुद की पार्टी बिहार में शुरू कर सकते हैं। पीके यानि प्रशांत किशोर राजनीति में तब सुर्खियों में आए जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 2014 के लोकसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की। नरेंद्र मोदी अर्से बाद वैसे पीएम बने जिनकी पार्टी पूर्ण बहुमत लेकर सत्ता में आई। इसके बाद प्रशांत पटना में सीएम नीतीश से मिले और 2015 में ‘नीतीशे कुमार’ कैम्पेन की शुरूआत की। फिर वो दिल्ली में केजरीवाल, बंगाल में ममता बनर्जी और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की टीम से भी जुड़े। इस दौरान वो कुछ दिनों के लिए जेडीयू में भी शामिल हुए लेकिन वहां उनका सिक्का चल नहीं पाया। लोग तो कहते हैं कि प्रशांत किशोर की कामयाबी में किस्मत प्लस अनुमान का कॉकटेल है। वो वहीं दांव लगाते हैं जहां जीत पहले से ही करीब-करीब तय होती है। आखिर हैं कौन पीके और कहां से आए… जानिए हमारी इस खबर में।

पीके बिहार केरावाले
1977 में जन्मे प्रशांत किशोर रोहतास जिले के कोनार गांव के रहने वाले हैं। हालांकि बाद में पिता श्रीकांत पांडेय की नौकरी की वजह से पीके और उनका परिवार बक्सर में रहने लगा। प्रशांत किशोर के पिता श्रीकांत पांडे बिहार सरकार में डॉक्टर हैं और उनकी माता यूपी के बलिया जिले की रहनेवाली हैं। प्रशांत की पत्नी की नाम जाह्नवी दास है जो असम के गुवाहाटी में डॉक्टर हैं। दोनों को एक बेटा भी है। पिता के गांव से बक्सर आने के बाद प्रशांत की स्कूलिंग वहीं हुई। इसके बाद पीके ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और हैदराबाद चले गए। पीके के उपलब्ध बायोडाटा के मुताबिक उन्होंने इसके बाद पब्लिक हेल्थ में PG किया और संयुक्त राष्ट्र में काम किया। उनकी पहली तैनाती आंध्र प्रदेश में हुई और फिर उन्हें पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम को लेकर बिहार भेजा गया।

जब पीएम मोदी से मिले पीके
UN में काम करने के दौरान ही वो अफ्रीकी महाद्वीप गए जहां उन्होंने भारत के हाई डेवलप राज्यों में कुपोषण पर एक रिसर्च पेपर लिखा। इस रिसर्च में पीके ने गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में कुपोषण के ताजा हाल का जिक्र किया था। हालांकि इन राज्यों में गुजरात अच्छी स्थिति में था। उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे, उन्होंने भी ये रिसर्च पढ़ी और पीके को गुजरात में काम करने की पेशकश की।
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जब बीजेपी के लोकसभा कैम्पेन से जुड़े प्रशांत किशोर.
पीके ने साल 2013 में पॉलिटिक्स में बतौर रणनीतिकार एंट्री ली और CAG यानि सिटीजन फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस कार्यक्रम शुरू किया। पीके की इस कंपनी का फोकस खालिस सियासी थी। इसी दौरान उन्हें तत्कालीन पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के साथ जुड़ने का मौका मिल गया। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में वो मोदी के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक बनकर मैदान में उतरे। अब इसे किस्मत कहिए या अनुमान कि बीजेपी को चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला और प्रशांत किशोर की किस्मत चमक गई।
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2015 में CAG को बनाया आईपैक
प्रशांत को पता चल गया था कि भारतीय राजनीति में नेताओं के पास सबकुछ है सिवाए पार्टी में कॉरपोरेट नजरिए को छोड़कर। प्रशांत किशोर ने इसी पर फोकस करते हुए अपनी कंपनी CAG को इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी में बदल दिया यानि आईपैक (I-PAC)। इसके बाद वो नीतीश कुमार और महागठबंधन के चुनाव प्रबंधन में जुट गए। उन्होंने नीतीश के लिए पीएम मोदी की चाय पर चर्चा की तर्ज पर ‘एक बार फिर, नीतीशे कुमार’ कैम्पेन चलाया। इसके बाद फिर से किस्मत और अनुमान के कॉकटेल ने महागठबंध के साथ प्रशांत किशोर भी राजनीति में छा गए।
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नीतीश को किया जॉइन और जल्द ही रफा-दफा भी
इसके बाद ऐसा लगा कि अब नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर सदा के लिए एक दूजे के हो गए। पीके ने जेडीयू जॉइन की और उन्हें सीधे नीतीश के बगल वाली कुर्सी मिली। लेकिन बाद में जब नीतीश महागठबंध का साथ छोड़ NDA में फिर से वापस हुए तो प्रशांत किशोर की नाराजगी सोशल मीडिया पर दिखने लगी। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि पीके को लोकसभा चुनाव के बाद जब बीजेपी ने भाव नहीं दिया तो वो बेहद खफा हो गए थे। उसके बाद से ही वो बीजेपी का नाम तक नहीं सुनना चाहते थे, और जब नीतीश बीजेपी के साथ हुए तो प्रशांत किशोर ने अपने गुस्से को घुमा-फिराकर (CAA जैसे मुद्दे) दिखाना शुरू कर दिया। फिर क्या था, वही हुआ जो नीतीश के खिलाफ जानेवालों के साथ होता है। पीके को अपनी राह अलग करनी पड़ी।
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कैप्टन अमरिंदर- केजरीवाल-ममता से भी जुड़े
इसके बाद प्रशांत किशोर बारी-बारी के पंजाब के तत्कालीन सीएम कैप्टन अपरिंदर सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के साथ भी जुड़े। लेकिन ये भी बीजेपी और JDU की तरह एक प्रोफेशनल रिश्ता ही साबित हुआ। अब पीके नई राह पर हैं, उनकी उम्मीदें तो बहुत हैं लेकिन बिहार की सियासी मिट्टी में जड़े जमाना इतना आसान भी नहीं।

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