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गांव-गांव में मौजूद हैं शराब के सप्लायर
बिहार में शराबबंदी को सफल बनाने के लिए सरकार की सख्ती का फरमान ऊपर से जरूर है, लेकिन पुलिस की लापरवाही या मिलीभगत से इसकी खपत पर कोई खास असर नहीं दिखता। गांव-गांव में शराब के सप्लायर सक्रिय हैं। शराब के धंधेबाजों से पुलिस के मार खाने की सूचनाएं भी समय-समय पर सामने आती रहती हैं। कुछ पकड़े भी जाते हैं, पर धंधा रुकता कहां है? शराबबंदी के कारण अवैध शराब बनाने वाले चांदी काट रहे हैं। अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में अवैध कारोबारी शराब बनाने का पैमाने का ख्याल नहीं रखते। नतीजतन शराब जहरीली हो जाती है। सारण जिले के बाद पूर्वी चंपारण जिले में ऐसी ही जहरीली शराब से करीब ढाई दर्जन लोगों की मौत के बाद एक बार फिर इसे लेकर सियासत गरमा गयी है।
20 हजार करोड़ रुपये का हुआ है नुकसान
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह शराबबंदी को नीतीश कुमार की जिद से अधिक कुछ नहीं मानते। उनका कहना है कि ऊंची कीमत अदा कर बड़े लोग तो क्वालिटी शराब पी लेते हैं, लेकिन नशे का आदी गरीब सस्ती शराब के चक्कर में मौत के सौदागरों के चंगुल में फंस जाता है। शराब से मौत के तांडव की ताजा घटना में मरने वाले भी ज्यादातर गरीब व दलित-पिछड़ी जातियों के लोग हैं। सरकार को शराबबंदी से 20 हजार करोड़ रुपये का चूना लग चुका है। पड़ोसी राज्यों से शराब आती है तो जाहिर है कि बिहार के पैसे से उन राज्यों का खजाना भर रहा है। शराबबंदी पूरी तरह से फेल है। जहरीली शराब पीने से मरा भी गरीब और नौकरी भी गरीब की ही जाएगी। चौकीदार सस्पेंड होंगे। उन्होंने सीएम नीतीश से सवाल पूछा है कि शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए आपने बड़ी राशि का प्रावधान बजट में किया है। पुलिस महकमे को आपने इसी काम में लगा दिया है। शिक्षकों तक को आपने इस अभियान से जोड़ रखा है। इन सबके बावजूद शराबबंदी की आपकी नीति क्यों सफल क्यों नहीं हो पा रही है ? जिद छोड़िए और हकीकत से रूबरू होइए।
शराबबंदी को लेकर उठते रहे हैं सवाल
शराबबंदी को लेकर पहली बार कोई सवाल खड़ा नहीं कर रहा है। महागठबंधन के एक घटक दल के नेता हैं पूर्व सीएम जीतन राम मांझी। वे कई बार शराबबंदी वापस लेने की मांग करते रहे हैं। कुछ नहीं तो थोड़ी-थोड़ी पीने की छूट सरकार से मांगते रहे हैं। शराब पीने, बनाने से लेकर बेचने तक के आरोप में गरीबों की गिरफ्तारी का मानवीय पहलू भी मांझी बताते रहे हैं। आरजेडी भी तब तक नीतीश कुमार को शराब के मसले पर कठघरे में खड़ा करता रहा, जब तक वे एनडीए के साथ थे। शराब पीने से होने वाली मौतों पर मुआवजे की मांग नीतीश सरकार से होती रही है। सारण जिले में शराब से मौतें हुई थीं तो बीजेपी ने मुआवजे की मांग की थी। तब नीतीश ने साफ कहा था कि ‘जो पियेगा, वो मरेगा। मुआवजा नहीं मिलेगा।’ तब उन पर दोहरे मानदंड का आरोप भी बीजेपी ने लगाया था। बीजेपी का कहना था कि ‘गोपालगंज में जहरीली शराब से मौतों के लिए सरकार ने मुआवजा दिया तो सारण में क्यों नहीं।’
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मौतों का आंकड़ा छिपा लेती है सरकार
बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम सुशील कुमार मोदी तो सरकार पर यह आरोप लगाते हैं कि सरकार मौत के आंकड़े छिपा लेती है। जहरीली शराब से मौत को छिपाने के लिए सरकार बहाने गढ़ती रही है। सारण जिले में जहरीली शराब से 100 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने राज्य सरकार पर आंकड़े छिपाने का आरोप लगाया था। मानवाधिकार आयोग ने तो जहरीली शराब से मरने वालों के आश्रितों को मुआवजा देने की भी सिफारिश की थी। राज्य सरकार ने अब तक उस सिफारिश पर ध्यान नहीं दिया। नीतीश ने कहा था कि शराब से मौत के मामले में मुआवजे के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जाएगी। आज तक कोई सर्वदलीय बैठक नहीं हुई।
शराब के सेवन से हर साल 30 लाख मौतें
शराब का सेवन सेहत के लिए खराब है। यह सिर्फ बिहार के सीएम नीतीश कुमार ही नहीं कहते, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जारी होने वाले शराब से नुकसान के आंकड़े भी यही तथ्य सिद्ध करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े बताते हैं 20 मरने वालों में एक शराब का आदी होता है। यानी एक मौत का करण शराब बनती है। शराब सेवन की वजह से दुनिया भर में हर साल 30 लाख लोगों की जान जाती है। एड्स, हिंसा और सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के सम्मिलत आंकड़ों से भी यह ज्यादा है। इस खतरे की चेतावनी तो शराब के बोतल पर भी दर्ज होती है। इसके बावजूद शराब आज के जमाने का फैशन है। कुछ सुरूर के लिए शौकिया पीते हैं तो कुछ गुरूर के लिए।
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नीतीश का दावा- घट रहे हैं पियक्कड़!
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने एक सर्वे के आधार पर कुछ समय पहले बताया कि बिहार में शराब पीने वालों की संख्या घट रही है। 1.82 करोड़ लोगों ने शराब पीनी छोड़ दी है। 99 प्रतिश महिलाएंम और 92 प्रतिशत पुरुष शराबबंदी कानू के पक्ष में हैं। सवाल उठता है कि अगर सर्वे के आंकड़े सच हैं तो बार-बार अवैध शराब से मौतों की घटनाएं क्यों हो रही हैं ?
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