Home Bihar पति की मौत से बौखलाई मेनका ने इंदिरा गांधी से कही थी तिलमिलाने वाली बात, खाने की टेबल पर खून का घूंट पीकर रह गई थी PM

पति की मौत से बौखलाई मेनका ने इंदिरा गांधी से कही थी तिलमिलाने वाली बात, खाने की टेबल पर खून का घूंट पीकर रह गई थी PM

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पति की मौत से बौखलाई मेनका ने इंदिरा गांधी से कही थी तिलमिलाने वाली बात, खाने की टेबल पर खून का घूंट पीकर रह गई थी PM

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पटना : आज भी लोग देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के बारे में जानना पसंद करते हैं। वरिष्ठ लेखक और पत्रकार रहे खुशवंत सिंह इंदिरा गांधी परिवार के काफी करीबी रहे। खुशवंत सिंह ने इंदिरा गांधी के परिवार में होने वाली एक-एक घटना को ‘सच प्यार और थोड़ी सी शरारत’ में विस्तार से लिखा है। खुशवंत सिंह गांधी परिवार की चर्चा करते हुए लिखते हैं कि उपलब्धियों का यह दौर बहुत छोटा था। 23 जून, 1980 की सुबह संजय (गांधी) का दो सीट वाला विमान दिल्ली की दक्षिणी पर्वत-श्रेणी पर गिरकर चकनाचूर हो गया। उसमें संजय और उसके साथी पायलट कैप्टन सक्सेना की मौत हो गई। उस समय अमतेश्वर (संजय गांधी की सास) और उनकी बेटी अम्बिका इंग्लैंड में छुट्टियां मना रहे थे।

संजय गांधी का निधन
खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा कि संजय गांधी के निधन की खबर उन्हें स्वराज पॉल ने दी। खुशवंत सिंह कहते हैं कि पॉल एक व्यवसायी था, जिसने अपने को गांधी-आनन्द परिवार का कृपापात्र बना लिया था। अमतेश्वर और अम्बिका को विशेष रूप से किराए पर लिए गए एअर इंडिया के विमान से वापस दिल्ली भेजा गया। खुशवंत सिंह लिखते हैं कि इंदिरा गांधी को मेनका की उपस्थिति घर में धीरे-धीरे चिढ़ाने लगी। इंदिरा गांधी मेनका गांधी के हर काम में नुक्स निकालने लगीं। इंदिरा गांधी ने खुशवंत सिंह को बताया कि जो लोग संवेदना प्रकट करने आते हैं, मेनका उनसे बदतमीजी से पेश आती है।

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दोनों परिवार अंधविश्वासी
खुशवंत सिंह ने एक वाकये की चर्चा करते हुए लिखा कि मार्गरेट थैचर के सम्मान में जो औपचारिक दावत दी गई, उसमें राजीव और सोनिया, मुख्य अतिथि के साथ प्रमुख मेज पर बैठे। मेनका को धवन और उषा के साथ स्टाफ के लिए लगाई गई मेज पर बैठाया गया। खुशवंत सिंह कहते हैं कि जब मैंने मेनका से इस बारे में बात की तो उसने शिकायत की कि उसके साथ पैर की धूल की तरह बर्ताव किया जाता है। मेनका गांधी ने इंदिरा गांधी को ‘एक फटीचर बोरी’ (वन ओल्ड बैग) कह दिया। खुशवंत सिंह कहते हैं कि संजय गांधी का परिवार यानि इंदिरा गांधी और संजय के ससुराल वाले काफी अंधविश्वासी थे। उन्होंने इंदिरा परिवार में हुई एक घटना के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं कि संजय की मौत के कुछ दिन बाद मैं जोरबाग में अमतेश्वर के घर गया। मैंने देखा कि एक पंडितजी धोती और खड़ाऊं पहने संस्कृत श्लोक गुनगुनाते हुए बाहर निकल रहे हैं। उनके पीछे अपने सिर पर पानी से भरा घड़ा रखे एक आदमी चल रहा था और उस आदमी के पीछे अमतेश्वर आनन्द थीं। ‘यह सब क्या है ?’ मैंने उससे पूछा?

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इंदिरा गांधी को दोष देती थीं मेनका
खुशवंत सिंह ने लिखा कि मुझे बताते हुए संजय की सास अपनी मुस्कुराहट छिपा नहीं सकी। उन्होंने कहा कि वो जो मिसेज़ सक्सेना हैं, संजय के साथ मृत सह-पायलट की विधवा, उन्होंने मुझे फोन करके कहा कि दोनों लड़कों को उन्होंने सपने में देखा। वे शिकायत कर रहे थे कि वे बहुत प्यासे हैं क्योंकि वे जहां हैं वहां बहुत गर्मी है। खुशवंत सिंह कहते हैं कि संजय की सास ने गर्व से बताया कि मैंने इन पंडितजी से राय ली और इन्होंने सलाह दी कि हम लोग इंदिरा गांधी के घर के बाहर एक प्याऊ लगवा दें। मैं वहीं करने जा रही हूं। खुशवंत सिंह ने लिखा है कि संजय की मौत के बाद इंदिरा गांधी और मेनका के रिश्ते बिगड़ते चले गए। मेनका अपने मित्रों को विश्वास दिलाना चाहती थी कि वे ऐसा कुछ नहीं करती हैं। जिससे इंदिरा गांधी उत्तेजित हों। मेनका सारा दोष इंदिरा गांधी को देती थीं।

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मेनका से नफरत की बात
खुशवंत सिंह ने ‘सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत’ में चर्चा करते हुए लिखा कि मेनका गांधी जब भी इंदिरा गांधी से मिलती हैं। उसे ये संदेश देने की कोशिश की जाती है कि सबलोग मुझसे नफरत करते हैं। मेनका से कहा जाता था कि तुमने अपने पिता की हत्या की है। तुम्हारी मां कुतिया है। खुशवंत सिंह कहते हैं कि स्थिति ऐसी बिगड़ गई थी कि अब मेनका के एक सफदरजंग रोड में दिन गिने-चुने रह गए थे। अब लोग ये इंतजार कर रहे थे कि कब इंदिरा गांधी मेनका को घर से बाहर निकालती हैं। खुशवंत सिंह कहते हैं कि इंदिरा गांधी हर बात में निर्णय का अधिकार अपने सिवाय किसी दूसरे को नहीं देती थीं। पर इस बार एक अप्रिय आश्चर्यजनक घटना को झेलने की बारी उनकी थी।

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मेनका को घर से निकालने की प्लानिंग
खुशवंत सिंह ने ‘सच प्यार और थोड़ी सी शरारत’ में आगे लिखा कि मेनका ने बड़ी सावधानी से समय का चुनाव किया था। इंदिरा गांधी भारत उत्सव के लिए लन्दन गई थीं और सोनिया को अपने साथ ले गई थीं। राजीव अपनी स्थिति बनाने में बहुत व्यस्त था, और वह घर में रहने से कतराता था ताकि खाने के समय उसकी मुलाकात मेनका से न हो। मेनका और अकबर अहमद ने संजय विचार मंच की शुरुआत करने का फैसला किया। खुशवंत सिंह आगे कहते हैं कि इंदिरा गांधी को समझ में नहीं आ रहा था कि जो संगठन उनके बेटे के आदर्शों को प्रचार करने का दावा कर रहा है, उसके बारे में अपनी गैर रजामंदी कैसे व्यक्त करें? उद्घाटन समारोह (जिसकी मंजूरी मेनका के अनुसार इंदिरा गांधी ने दे दी थी) के अवसर पर मेनका के भाषण के ‘पाठ’ को राजीव गांधी ने तार से लन्दन भेजा। इंदिरा गांधी ने गांधी ने तय किया कि अपनी उपद्रवी बहू से छुटकारा पाने का वह मौका, जिसका उन्हें कई महीनों से इंतजार था, उनके हाथ आ गया है।

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