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दरअसल, कुढ़नी विधानसभा सीट नीतीश कुमार के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी। बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद पहली बार बीजेपी और जेडीयू आमने-सामने थे। नीतीश कुमार के उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को सात दलों का समर्थन प्राप्त था। यूं कहे तो जेडीयू और आरजेडी के वोट प्रतिशत के सामने बीजेपी कहीं नजर नहीं आ रही थी। सियासी पंडित भी मानकर चल रहे थे कि जेडीयू इस सीट को निकाल लेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
समीकरण नहीं आयी काम
जातीय समीकरण को देखें तो बिहार में 15 फीसदी के यादव हैं, 17 फीसदी के करीब मुसलमान है। ये आरजेडी के कोर वोटर माने जाते हैं। वहीं, कुर्मी-कोयरी 8 फीसदी के आसपास हैं, जिस पर नीतीश कुमार दावा करते हैं। वहीं, निषाद समाज लगभग तीन फीसदी हैं। इस तरह सभी को मिला दें तो 43 फीसदी हो जाता है, जो महागठबंधन के पक्ष में थे। ऐसा कहा जा रहा था।
वहीं, अगर कुढ़नी की बात करें तो यहां पर करीब तीन लाख वोटर हैं। कुशवाहा ( कोयरी )- 38 हजार के आसपास, निषाद- करीब 25 हजार, मुस्लिम- 23 हजार के करीब, यादव- 32 हजार, भूमिहार 18 हजार के आसपास, अन्य सवर्ण और दलित 20-20 हजार के आसपास हैं। साफ है कि कुढ़नी से सबसे अधिक कुशवाहा वोटर हैं। नीतीश कुमार कु्र्मी समाज से आते हैं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा कोयरी समाज से। यही नहीं, जेडीयू उम्मीदवार मनोज खुद कुशवाहा समाज से आते हैं, बावजूद इसके जेडीयू को कुढ़नी में करारी हार मिली।
तो बीजेपी की रणनीति काम कर गई
बीजेपी भी मान कर चल रही थी जेडीयू और आरजेडी के वोटर्स एक साथ आ गए तो कुढ़नी सीट निकालना मुश्किल है। ऐसे में कुढ़नी में नई रणनीति पर काम किया गया। शायद बीजेपी की वो रणनीति काम आ गई, जो भविष्य में बिहार में अजमाना चाहती है। दरअसल, बीजेपी की रणनीति थी कि 15 फीसदी सवर्ण वोटर, 26 फीसदी ओबीसी और 16 फीसदी दलित वोटर्स को एक साथ कर लिया जाए तो बिहार में महागठबंधन को हराया जा सकता।
नीतीश की पार्टी को हराकर समीकरण के लिए रास्ता खोल दिया
कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी का प्रयोग सफल रहा। कुढ़नी में बीजेपी उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता ने जेडीयू उम्मीदवार मोनज कुशवाहा को 3645 वोटों से हराकर इस समीकरण के लिए रास्ता खोल दिया है। संभव है कि आने वाले समय में इसी तरह का प्रयोग बीजेपी पूरे बिहार में भी करे।
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