Home Bihar नीतीश के पाला बदलने का प्रोसेस शुरू! बस तेजस्वी पर शिकंजा कसने की है देर, जानिए हकीकत

नीतीश के पाला बदलने का प्रोसेस शुरू! बस तेजस्वी पर शिकंजा कसने की है देर, जानिए हकीकत

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नीतीश के पाला बदलने का प्रोसेस शुरू! बस तेजस्वी पर शिकंजा कसने की है देर, जानिए हकीकत

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ओमप्रकाश अश्क, पटना: बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बारे में अब आम धारणा बन गयी है कि वे कोई भी फैसला अंतरात्मा की आवाज सुन कर ही करते हैं। बीजेपी के साथ जाना हो या उसका साथ छोड़ना, या फिर महागठबंधन के साथ सटने-हटने का निर्णय, हमेशा उन्होंने अंतरात्मा की आवाज ही सुनी है और उस पर अमल किया है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने जब पीएम फेस पेश किया तो नीतीश ने अंतरात्मा की आवाज सुन कर ही वर्षों पुराने बीजेपी से बने रिश्ते को झटके में तोड़ दिया था। नया साथी उन्होंने आरजेडी को बनाया। नीतीश कुमार ऐसे फैसले लेने के बाद जब भी मीडिया से मुखातिब होते हैं तो ये जरूर कहते हैं। अंतरात्मा की आवाज सुनकर फैसला लिया है। सियासी जानकार भी मानते हैं कि नीतीश कुमार की अंतरात्मा कब जाग जाए आज भी बताना मुश्किल है। जानकारों का मानना है कि हालांकि उनकी अंतरात्मा सियासी गुणा-गणित देखकर जागती है। इस बार एजेसियों ने लालू परिवार पर शिकंजा कसना शुरू किया है। बिहार के डेप्यूटी सीएम तेजस्वी यादव भी इस लपेटे में हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश की अंतरात्मा भीतर से कुछ कह रही है?

अंतरात्मा की आवाज पर ही आरजेडी से हटे थे

नीतीश कुमार की अंतरात्मा 2017 आते-आते उनकी अंतरात्मा फिर जाग गयी थी। जब सीबीआई ने तेजस्वी यादव के खिलाफ मामला दर्ज किया। तेजस्वी को जनता के बीच जाकर अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई देने की उहोंने शर्त रखी। चुनाव में गये बगैर तेजस्वी के लिए यह संभव न था। नीतीश को वे समझा नहीं पाये या नीतीश का इशारा समझ नहीं पाये। नतीजा हुआ कि झटके में नीतीश ने आरजेडी नीत महागठबंधन से रिश्ता तोड़ लिया। इतना ही नहीं, अंतरात्मा की आवास सुन कर ही फिर उस बीजेपी के साथ सरकार बना ली, जिसके सर्वमान्य नेता नरेंद्र मोदी तब पीएम के रूप में अपने पहले कार्यकाल का तीसरा साल पूरा करने वाले थे। उसी नरेंद्र मोदी के कारण नीतीश ने बीजेपी से वर्षों पुराने रिश्ते तोड़ लिये थे।

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क्या फिर नीतीश कुमार की अंतरात्मा जागेगी?

अब सवाल उठता है कि 2017 में जिस वजह से नीतीश ने आरजेडी से रिश्ता तोड़ा था, आज भी तो वैसी ही स्थिति है। ऐसे में क्या नीतीश कुमार की अंतरात्मा फिर जागेगी ? वे वैसा ही निर्णय लेंगे, जैसा उन्होंने 2017 में लिया था ? वैसे भी नीतीश ने आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन से 2025 तक अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने की मियाद मांग ली है। उन्हें कोई खतरा तो नजर नहीं आता, सिवा नैतिकता को छोड़ कर। राजनीतिक शुचिता, ईमानदारी और नैतिकता की बात करने वाले नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ा संकट यही है कि वे 2017 वाला रास्ता अपनाएं कि 2025 तक महागठबंधन के सहारे अपनी कुर्सी सुरक्षित देखते हुए नैतिकता को तिलांजलि दे दें।

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लालू परिवार की आपदा, नीतीश के लिए अवसर

आपदा को अवसर में बदलने का स्लोगन भले पीएम नरेंद्र मोदी ने दिया हो, पर संयोग ऐसे बन रहे कि यह नीतीश के लिए फिट बैठ सकता है। लालू परिवार अभी केंद्रीय जांच एजेंसियों की आपदा में उलझा है। रह-रह कर तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी सौंपने का जो अभियान आरजेडी की ओर से चल रहा है, उससे बचाव की संजीवनी सीबीआई-ईडी जैसी एजेंसियों ने आसानी से नीतीश को उपलब्ध करा दी है। सीएम की कुर्सी के लिए अब न तेजस्वी की ओर से कोई हड़बड़ी दिखती है और न उनके समर्थकों के फिलवक्त मुंह खुल रहे हैं। प्रथमदृष्टया 2025 तक नीतीश की कुर्सी पर अचानक उत्पन्न होने वाले खतरे की आशंका अब खत्म हो गयी है।

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नीतीश के पास प्लान बी लेकर खड़ी है बीजेपी

बीजेपी भले अब जोर देकर कहती है कि एनडीए में नीतीश कुमार के लिए दरवाजे बंद हो चुके हैं, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे सच नहीं मानते। इसके दो कारण गिनाये जा रहे हैं। पहला यह कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। अवसर और आवश्यकता के अनुसार राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं। अपनी धुर विरोधी महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के साथ जब बीजेपी सरकार बना सकती है तो नीतीश कुमार के साथ क्यों नहीं। नीतीश तो बीजेपी के लिए परखे हुए साथी हैं। दूसरा कारण यह कि नीतीश के पलटीमार स्वभाव से बीजेपी पहले से ही वाकिफ है। बीजेपी का प्रयास होगा कि जिस तरह 2017 में सीबीआई के सवाल पर नीतीश ने आरजेडी से अपने को अलग कर लिया था, वैसा रास्ता इस बार भी वे अपना लें।

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CBI-ED की सक्रियता नीतीश के लिए तो नहीं

सीबीआई-ईडी की सक्रियता अचानक बढ़ गयी है। लालू यादव परिवार के पुराने मामले उखाड़े जा रहे हैं। महागठबंधन से नीतीश को अलग करने के लिए कहीं बीजेपी की यह सुनियोजित चाल तो नहीं है। इसलिए कि 2017 में इसी फार्मूले के आधार पर नीतीश को बीजेपी ने महागठबंधन से पिंड छुड़ाने के लिए बाध्य किया था। यह भी हो सकता है कि नीतीश ने ही बीजेपी को यह तरकीब सुझायी हो कि ऐसा होने पर उन्हें अलग होने का आधार मिल जाएगा। बहरहाल, बाकी वजहों को छोड़ भी दें तो इतना तो तय है कि सीबीआई जांच ने ही 2017 में नीतीश के लिए आरजेडी से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया था। बीजेपी को बिना मेहनत आसानी से नीतीश जैसा दमदार साथी भी मिल गया था। इस बार भी 2017 जैसे ही हालात हैं। देखना है कि नीतीश की अंतरात्मा से इस बार क्या आवाज निकलती है।

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