Home Bihar नीतीश कुमार की पार्टी का आरोप: केंद्र सरकार संसद और संविधान की नहीं, बल्कि आर्डिनेंस और तानाशाह की है

नीतीश कुमार की पार्टी का आरोप: केंद्र सरकार संसद और संविधान की नहीं, बल्कि आर्डिनेंस और तानाशाह की है

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नीतीश कुमार की पार्टी का आरोप: केंद्र सरकार संसद और संविधान की नहीं, बल्कि आर्डिनेंस और तानाशाह की है

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Bihar Politics: बिहार में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को तानाशाही सरकार बताया है। जेडीयू का कहना है कि जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई है तब है तब से संसद के सत्र का न सिर्फ समय कम कर दिया गया है बल्कि अध्यादेश लाकर तानाशाही रवैया अपना रही है।

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नील कमल, पटना: जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक झा का कहना है कि जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है। तब से संसद का सत्र लगातार कम हो रहा है, साथ ही मोदी सरकार ने संसद में बिल पास करवाने के बजाय देश को अध्यादेशों के बल पर तानाशाही रूप से चला रही है। जनता दल यूनाइटेड ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार ने हास्यास्पद कारण देते हुए इस साल के लिए तय शीतकालीन सत्र 29 दिसंबर से 7 दिन पहले ही यानी 23 दिसंबर को खत्म कर दिया। जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा कि केंद्र सरकार का मानना है कि क्रिसमस और नया वर्ष आने वाला है, इसलिए संसद का सत्र पहले खत्म कर दिया गया है। जेडीयू प्रवक्ता ने बीजेपी को 2011 के शीतकालीन सत्र की याद दिलाते हुए बताया कि उस वर्ष संसद का शीतकालीन सत्र 29 दिसंबर तक चला था। हालांकि सत्र समय पूरा होने की तिथि 23 दिसंबर ही थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने सत्र की अवधि 8 दिनों तक बढ़ा दी थी।

कोविड काल के बाद से अब तक सदन ने नहीं चला पूरा सत्र

जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब मोदी सरकार द्वारा संसद का सत्र तय समय से पहले खत्म कर दिया गया हो। उन्होंने कहा कि कोविड काल के बाद से आज तक संसद का एक भी सत्र अपना तय समय पूरा नहीं कर पाई है। जदयू की ओर से यह भी कहा गया कि जो संसद साल 2011 के बजट सेशन के दौरान 50 दिनों तक चला था। वहीं संसद साल 2022 के बजट सेशन के दौरान मात्र 24 दिनों तक चला है। इसके अलावा साल 2022 में संसद मात्र 75 दिन चला, जबकि वर्ष 2011 में यह कुल 110 दिनों तक चला था।

संसद में पेश होने वाले बिलों की संख्या भी घटी

जदयू प्रवक्ता ने कहा कि एक तरफ संसद में पेश होने वाले बिलों ( विधेयक ) की संख्या में लगातार कमी हो रही है। दूसरी तरफ सरकार द्वारा गैर-संसदीय ढंग से आर्डिनेंस (अध्यादेशों ) की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। जेडीयू प्रवक्ता ने उदाहरण देते हुए बताया कि जहां साल 2022 में सरकार ने महज 29 विधेयक संसद में पेश किया था, वहीं साल 2011 में कुल 58 विधेयक पेश किये गए थे। इसी प्रकार साल 2014 से लेकर 2021 के दौरान 7 वर्षों में ही मोदी सरकार 84 अध्यादेश जारी कर चुकी थी। जबकि सरकार ने अपने दस वर्षों के कार्यकाल के दौरान मात्र 61 अध्यादेश ही जारी किया था।

अध्यादेश और विधेयक में मूल अंतर

जेडी प्रवक्ता ने अध्यादेश और विधेयक के बीच के अंतर को समझाते हुए कहा कि विधेयक संसद में संवैधानिक रूप से बहस करके, और मतदान होकर कानून का रूप लेती है। जबकि अध्यादेश के ऊपर न कोई बहस होती है और न ही मतदान होता है। जब संसद नहीं चल रहा होता है, तब सरकार बिना किसी से पूछे, बिना किसी से चर्चा किये, बिना किसी से सुझाव लिए अध्यादेश के रूप में तुगलकी फरमान जारी करती है। यानी यह सरकार संसद और संविधान की नहीं, बल्कि आर्डिनेंस और तानाशाह की है। लेकिन बीजेपी को भूलना नहीं चाहिए कि तीन काले कृषि कानून को भी सरकार ने अध्यादेश के द्वारा ही लागू करने की कोशिश की थी। लेकिन देश के किसानों के इस गैर-संवैधानिक मंसूबों को धूल चटा दिया था।

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