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1.नीतीश की टिप्पणी के मायने
-चंद्रशेखर का रामचरितमानस विवाद अभी थमा नहीं है।
-पूरे बिहार में रामचरितमानस विवाद पर आक्रोश है।
-नीतीश रामचरितमानस पर टिका-टिप्पणी का समर्थन नहीं करते।
– नीतीश को पता है कि ये एक चिंगारी है, जो भड़क गई तो घाटा होगा।
-अरवल में नीतीश ने ऐसी टिप्पणी से बचने की सबको सलाह दी।
– गया समाधान यात्रा पर पहुंचकर नीतीश ने संघ की तारीफ की।
– जेपी के बयानों को कोट करते हुए नीतीश का संघ की तारीफ करना।
-नीतीश संघ की तारीफ कर सियासी रूप से सेफ गेम प्ले कर रहे हैं!
– नीतीश को पता है कि संघ की बात बीजेपी कभी नहीं टाल सकती।
– भविष्य में संघ बीजेपी से समझौते का बड़ा माध्यम बनेगा।
2. ‘दुश्मनी जमकर करो’
नीतीश की ओर से आरएसएस की तारीफ किये जाने पर वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि बशीर बद्र का एक प्रसिद्ध शेर है। दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों। प्रमोद दत्त कहते हैं कि नीतीश कुमार दोनों दरवाजे खोलकर रखना चाहते हैं। जैसी परिस्थिति होगी, वैसा देखा जाएगा। उन्हें पता है कि सिर्फ मुस्लिम वोटों से कुछ नहीं होगा। हिंदुओं को साथ रखना जरूरी है। नीतीश कुमार गुलाम रसूल बलियावी और आरजेडी के चंद्रशेखर के बयान से आहत हैं। नीतीश इन विवादों से अलग अपना चेहरा पूरी तरह क्लीन रखना चाहते हैं। हिंदूओं में एक पैचअप वाला संदेश जाना जरूरी था। इसलिए नीतीश कुमार ने संघ की तारीख की। वहीं दूसरी ओर बिहार की राजनीति को नजदीक से समझने वाले जेडीयू के पूर्व वरिष्ठ प्रवक्ता नवल शर्मा कुछ और कहते हैं। उनका कहना है कि महागठबंधन अलग-अलग विचार वालों का बेमेल गठबंधन है। ये लोग सत्ता की चाशनी भोगने के लिए इकट्ठा हुए हैं। ये सभी दल स्वांतः सुखाय की राजनीति करते हैं। इस तरह की राजनीति में हितों का टकराव होना स्वभाविक है। नवल शर्मा कहते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीति केवल अपने पर केंद्रीत रही है। नीतीश की पुरानी फितरत रही है इस्तेमाल करना और फेंक देना।
3. नीतीश का बीजेपी और संघ प्रेम
-नीतीश ने हाल में अटल बिहारी वाजपेयी के लिए अपना प्रेम उड़ेलकर रख दिया।
– नीतीश ने कहा-श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी के साथ काम करने का मौका मिला यह मेरे लिए गर्व की बात है।’
– उन्होंने मुझे तीन-तीन विभाग दिए और मुझ पर भरोसा जताया।
-वे बहुत मानते थे और वह सारा काम बहुत प्रेम से करवाते थे।
-अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान हमने बहुत सारा काम किया और वह हर काम बहुत प्रेम भाव से करवाया करते थे। इस लिए हम उन्हें इस जीवन में भूल नहीं सकते।
– मैं तो छात्रजीवन से आरएसएस को जानता हूं। जब मीसा कानून के तहत गया जेल गया तो वहां गोविंदाचार्य से भेंट हुई थी।
-मैंने जेल में आरएसएस साहित्य का अध्ययन किया। ये अलग बात है कि जेपी और लोहिया से मैं ज्यादा प्रभावित रहा हूं।
-संघ तो 1925 से लगातार काम करता आ रहा है। ये एक बड़ा संगठन है। आप उनसे सहमत हों या नहीं लेकिन उनकी प्रतिबद्धता की सानी नहीं।
-पूर्वोत्तर में जो उन्होंने काम किया है, कोई कल्पना भी कर सकता है क्या ?
-वहां तो कई राज्यों में हिंदू आबादी बहुत कम है लेकिन वहां ये लगातार काम करते रहे हैं।
-जेपी कहा करते थे कि संघ के काम का सिर्फ आठवां हिस्सा जनता के बीच आता है, बाकी किसी को दिखाई नहीं देता। मैं जेपी से पूरी तरह सहमत था।
4. अचानक संघ से प्रेम क्यों ?
वरिष्ठ पत्रकार और युवा समाजसेवी धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि समाजवादी और समाजवाद कोई कंक्रीट वैचारिक धारा नहीं है। ये दक्षिणपंथ और वामपंथ के बीच में एक धारा बनाने की कोशिश में रहते हैं। परेशानी तब होती है जब मौसम के अनुसार वाम धारा में बहाव ज्यादा हो जाए या दक्षिणपंथ की धारा में बहाव ज्यादा हो जाए। दूसरा पक्ष ये है कि राजनीति की धारा जो भी हो, मुकाम सत्ता की प्राप्ति। नीतीश कुमार पिछले तीस साल से समयानुसार अपनी धारा को बदलते रहे और कोशिश सिर्फ यही थी कि सत्ता में काबिज रहें। पिछले 18 साल से हर धारा की पतवार को पकड़ कर बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। नीतीश कुमार का दूसरा राजनीतिक पक्ष ये है कि अपनी छवि को लेकर बड़े संवेदनशील रहते हैं। इनकी कोशिश होती है कि ये पंथनिरपेक्ष दिखें। इनकी कोशिश में बट्टा तब लग जाता है जब यह देखा जाता है कि सत्ता की कुर्सी पर जब-जब ये बैठे, इनको दक्षिणपंथी धारा ने ही सत्ता दिया। इनकी हसरत ये है कि दक्षिण और वाम दोनों को अगल-बगल बिठाकर आगे चलें। ऐसी स्थिति में इनकी जो राजनीतिक नाव है, वो डूबती हुई दिखती है। कहते हैं कि डूबते हुए को तिनके का सहारा। फिलहाल, इनकी डूबती नैया को आरएसएस से सहारा मिलता दिख रहा है। नीतीश कुमार एक ऐसे राजनेता हैं, जो हर विचारधारा की राजनीति में खुद को फिट बैठाने की कोशिश में लगे रहते हैं। दोबारा आरएसएस और बीजेपी की तारीफ उसी सियासत का हिस्सा है। नीतीश कुमार राजनीति के अंतिम सत्य को समझते हैं कि किसी भी प्रकार से कुर्सी नहीं जानी चाहिए।
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