Home Bihar दास्तान-ए-बरबीघा विधानसभा सीट, जहां सियासी गणित तय करते हैं भूमिहार और कुर्मी वोटर, जानिए पूरी कहानी

दास्तान-ए-बरबीघा विधानसभा सीट, जहां सियासी गणित तय करते हैं भूमिहार और कुर्मी वोटर, जानिए पूरी कहानी

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दास्तान-ए-बरबीघा विधानसभा सीट, जहां सियासी गणित तय करते हैं भूमिहार और कुर्मी वोटर, जानिए पूरी कहानी

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शेखपुरा : कोई आपसे सवाल करे कि बिहार की सियासत का कड़वा सच क्या है? आप उसे बेझिझक जाति अधारित राजनीति जैसा जवाब दे सकते हैं। बिहार सरकार के जातिगत जनगणना के पीछे की मंशा पर बहस जारी है। इस बीच ये सवाल उठकर खड़ा होता है कि जब देश के बाकी राज्य विश्व के पैमाने पर विकास के मायने तय कर रहे हैं। उस वक्त बिहार जातीय जनगणना में उलझा हुआ है। सरकार के मद में शिक्षकों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है। जातिगत जनगणना पर 500 करोड़ राज्य सरकार खर्च कर रही है। सियासी जानकार मानते हैं कि बिहार में राजनीति की ‘र’ और सियासत के ‘स’ की शुरुआत ही जातीय फैक्टर ‘ज’ से शुरू होती है। बिहार में बड़े से बड़े नेता खुद को कितना भी समाजवाद का पैरोपकार बतायें। उनकी कहानी की शुरुआत जातिय राजनीति से होती है। बिहार में विकास का पैमाना चुनाव के वक्त काफी पीछे छूट जाता है। वोटरों में जाति को लेकर एक अलग तरह का नशा है। क्षेत्र में बेरोजगारी हो, विकास कार्य ठप हो, निर्माण कार्य अधूरा हो। इस मसले पर कोई भी व्यक्ति आपसे बातचीत करते नहीं दिखेगा। उसे सिर्फ उम्मीदवार की जाति से मतलब है। वो तपती हुई धूप में। कड़ाके की ठंड में। चुनाव के दिन मतदान केंद्र पर जरूर जाएगा। वोट डालेगा और गर्व से कहेगा कि मैंने अपने जाति के उम्मीदवार का समर्थन किया है।

विधानसभा सीट का सियासी गणित

शेखपुरा जिले के अंतर्गत आने वाली बरबीघा सीट की स्थिति कुछ अलग नहीं है। अलग है, तो बस विधानसभा क्षेत्र की वो समस्याएं। जो वर्षों से हल नहीं हुई हैं। स्थानीय जानकार कहते हैं कि विधानसभा क्षेत्र की समस्या के निदान के लिए चुनाव में वादे होते हैं। बाद में जातीय समीकरण की आग में विकास के मुद्दे जलकर खाक हो जाता हैं। चारों तरफ बस जातीय समीकरण की गूंज शुरू हो जाती है। बरबीघा सीट की ये बीमारी दशकों से चली आ रही है। यहां की आम लोगों की समस्या आज तक चुनाव में मुद्दा नहीं बनी है। थोड़ा बरबीघा के जिले शेखपुरा के बारे में पहले जान लेते हैं। शेखपुरा का कोई वास्तविक इतिहास किसी भी पुस्तक या रिकॉर्ड में नहीं है। शेखपुरा के विभिन्न स्रोतों के इतिहास से एकत्रित ज्ञान के अनुसार महाभारत काल की समाप्ति से जिले का संबंध है। मान्यता है कि महाभारत काल में एक राक्षस लड़की हिडिम्बा जिले के पूर्वी खंड पर स्थित पहाड़ी पर रहती थी। जिसके साथ एक पांडव पुत्र भीम ने शादी की और एक वीर पुत्र घटोत्कच को जन्म दिया। हिडिम्बा नाम के बाद उस पहाड़ी को लोग गिरिंदा कहा जाता था। गिरिहिन्दा गांव अभी भी जिले में स्थित है। ये रहा शेखपुरा का पौराणिक परिचय। अब हम इसके राजनीतिक इतिहास पर एक नजर डालते हैं।

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सीट का इतिहास

बरबीघा विधानसभा सीट 1951 में वजूद में आने के बाद कांग्रेस के कब्जे में रही। कांग्रेस का उस समय पर पूरे देश पर शासन था। कांग्रेस को लोग पसंद करते थे। पहले चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। उसके बाद 1962, 1967 में भी कांग्रेस ने यहां जीत का परचम लहराया। बरबीघा सीट पर विधानसभा के कुल 15 चुनाव हुए, जिसमें से कांग्रेस ने 10 चुनावों में जीत हासिल की। चूंकी लालू की सरकार को 90 के दशक में कांग्रेस का समर्थन प्राप्त रहा। 2005 में जब नीतीश लहर चली, तब कांग्रेस को 2005 और 2010 के चुनाव में हार मिली। हालांकि, कांग्रेस ने 2015 में जबरदस्त वापसी की। उस समय बिहार में महागठबंधन के साथ कांग्रेस भी थी और बंटवारे के हिसाब से ये सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। 2015 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहे वरिष्ठ नेता राजो सिंह के पोते सुदर्शन कुमार को टिकट मिला। सुदर्शन ने जीत हासिल की। बरबीघा विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 2 लाख 95 हजार 253 है। बरबीघा में 84.39 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि 15.61 फीसदी लोग शहरों में निवास करते हैं। विधानसभा क्षेत्रों में समस्याओं की अंबार है, लेकिन उस पर किसी का ध्यान नहीं है। कांग्रेस के जमाने में नेता पैसे और आवंटन का रोना रोते थे। स्थानीय लोग कहते हैं कि सुशासन बाबू की सरकार में अब इस विधानसभा क्षेत्र पर ध्यान नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि 2020 के बाद विधानसभा क्षेत्र में निर्माण कार्यों में तेजी आई है। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि जो भी नल-जल और मुख्यमंत्री के सात निश्चय के तहत काम हुआ है, उसमें लूट खसोट मची हुई है।

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बरबीघा की मूल समस्या

बरबीघा सियासी दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण सीट है। इस विधानसभा क्षेत्र में बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह का पैतृत गांव माउर पड़ता है। जातीय समीकरण के हिसाब से इस सीट पर सबसे ज्यादा मजबूती में भूमिहार वोटर हैं। विधानसभा क्षेत्र की 20 फीसदी से ज्यादा आबादी भूमिहार वोटरों की है। सीट पर कुर्मी यादव और पासवान जाति के लोग भी निर्णायक भूमिका में हैं। बरबीघा की मूल समस्या में प्रखंडों और जिला स्तर के कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार है। स्थानीय लोगों का कहना है कि आप का एक भी काम बिना पैसे दिये नहीं हो सकता है। आप प्रखंड कार्यालय और जिला प्रशासन के चक्कर लगाते रहिए लेकिन अधिकारी किसी की नहीं सुनते हैं। स्थानीय जानकारों के मुताबिक जिले को दबी जबान में घुसखोरी का स्वर्ग कहा जाता है। यहां के लोग कहते हैं कि यहां आने वाले अधिकारी मात्र एक खाट लेकर आते हैं, लेकिन जाते वक्त ट्रकों में सामान भरकर लेकर जाते हैं। जिले में पीडीएस सिस्टम, परिवहन और कल्याणकारी योजनाओं के लिए प्रखंड कार्यालय में रेट लिस्ट निर्धारित है। बिना घूस के आप कोई काम नहीं करा सकते हैं। महादलित और दलित बस्तियों के लोगों का कहना है कि उन्हें तो कार्यालय में प्रवेश करने में भी डर लगता है। पुलिस थाने का वही हाल है। जिसके पास पैसे हैं, उसी का काम पुलिस करती है। गरीब चिल्लाते रह जाते हैं पुलिस वाले टस से मस नहीं होते हैं। सुशासन का जरा सा भी असर बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में नहीं पड़ा है।

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रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा

ईट भट्टे पर काम करने वाले मजदूर भी जिले में रहना पसंद नहीं करते हैं। स्थानीय जानकारों की मानें तो जिले के ज्यादातर मजदूर पंजाब और दिल्ली में जाकर नौकरी करते हैं। मनरेगा में भ्रष्टाचार की स्थिति ऐसी है कि वार्ड पार्षद और स्थानीय प्रतिनिधि पोस्ट ऑफिस में जाकर मजदूर के हाथों से पैसे छीन लेते हैं। सियासी जानकार कहते हैं कि यहां मनरेगा में अलग खेल चलता है। मनरेगा के काम में मजदूरों को नहीं लगाया जाता है। उनके पासबुक अपने पास रख लिये जाते हैं। मजदूर मजदूरी के लिए नहीं जाता है। उसके नाम पर जब पैसा आता है। तब पोस्ट ऑफिस जाकर मजदूर पैसे निकालता है। स्थानीय जन प्रतिनिधि उसे कुछ सौ रुपये देकर बाकी पैसे ले लेते हैं। मजदूर इसलिए खुश हो जाता है कि उसे बिना मजदूरी का पैसा मिलता है। वहीं, स्थानीय जन प्रतिनिधि इसमें लाखों का घालमेल करते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जांच होगी, तो पूरा पोल पट्टी खुल जाएगा। बरबीघा इलाके में स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल है। कई चिकित्सा केंद्रों में बिस्तर का अभाव दिखता है। यहां के रहने वाले मजदूर दूसरे राज्यों में ईंट पाथने का काम करते हैं। बेरोजगारी के सवाल पर चुनाव में कोई नेता कुछ नहीं बोलते हैं। 2020 में बरबीघा से जेडीयू ने जीत दर्ज की। विधान सभा चुनाव 2025 में जनता किसे चुनेगी ये भविष्य के गर्त में है। 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 33.19 फीसदी वोट डाले गए थे। जेडीयू के सुदर्शन कुमार ने लोगों से वादा किया था कि कांग्रेस के गजानंद शाही को हराने के बाद वो विकास का ‘सुदर्शन चक्र’ चलाएंगे। लेकिन लोगों को अभी तक विकास चक्र के दर्शन नहीं हुए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि 2025 के विधानसभा चुनाव में जातीय फैक्टर फिर से हावी होता है या वोटर जागरूक होते हैं?

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